उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव: आवारा मवेशियों पर खर्च कर दिए 355 करोड़, लेकिन समस्या बरकरार

दस फरवरी से शुरू हो रहे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आवारा मवेशी मुद्दा बने हुए हैं। इस समस्या की पड़ताल करती दूसरी कड़ी-
आवारा मवेशियों को काबू करने के लिए गौशालाएं बनाई गई हैं, लेकिन इनमें खामियां गिनाई जा रही हैं। फोटो: अमन गुप्ता
आवारा मवेशियों को काबू करने के लिए गौशालाएं बनाई गई हैं, लेकिन इनमें खामियां गिनाई जा रही हैं। फोटो: अमन गुप्ता
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पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि उत्तर प्रदेश में आवारा मवेशियों की समस्या कितनी बड़ी है (पढ़ें- क्या आवारा मवेशी बन गए हैं चुनावी मुद्दा) । पढ़ें, अगली कड़ी - 

2017 में जब उत्तर प्रदेश में बूचड़खानों के खिलाफ कार्रवाई की गई और बेसहारा मवेशियों को छोड़ दिया गया तो राज्य सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए कई कदम उठाए। इसमें गौशालाओं, कांजी हाउस, गौसंरक्षण केंद्रों का निर्माण प्रमुख है। 

इसके लिए बकायदा 2018-19 में छुट्टा गोवंश के रखरखाव के मद पर सहायता अनुदान के तौर पर 17.52 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया। राज्य के बजट डॉक्यूमेंट बताते हैं कि यह राशि खर्च भी हो गई, जबकि इससे अगले साल यानी 2019-20 में 203.11 करोड़ रुपए इस मद पर खर्च किए गए। जबकि बजट में प्रावधान केवल 72 करोड़ रुपए का किया गया था। यही वजह रही कि अगले साल के बजट में 200 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया।

2019-20 में गौसंरक्षण केंद्रों के निर्माण पर लगभग 136 करोड़ रुपए के खर्च का प्रावधान किया गया, जिसे बढ़ा कर 2020-21 में 147.60 करोड़ रुपए कर दिया गया, लेकिन इस मद पर खर्च 115 करोड़ रुपए किए गए। इसके अलावा बुंदेलखंड गोवंश वन्य विहार की स्थापना पर 19.20 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। यानी कि अब तक उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक राज्य सरकार पिछले तीन साल में लगभग 355 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है।

इतना कुछ खर्च के बावजूद भी यह समस्या हल होती नहीं दिख रही है। पथखुरी गांव के प्रधान राजबहादुर बताते हैं कि ये समस्या एक गांव की नहीं है। हर गांव में आवारा मवेशी हैं। किसी भी पंचायत के पास इतने संसाधन नहीं हैं कि सभी को एक साथ एक जगह पर रखा जा सके। सरकार एक गाय पर प्रतिदिन 30 रुपए देती है, जिसमें उसका चारा, उनके रहने के लिए टीन शेड, पीने के पानी की व्यवस्था भी शामिल है। इतने में सब होना बहुत ही मुश्किल है। दूसरे गांवों के लोग रात में अपने यहां की गायें छोड़ जाते हैं। हमारे ही गांव में पहले से बहुत ज्यादा जानवर हैं। अगर हम उन्हें नहीं रखते, तो वे हमारी फसल चर जाएंगे और एक जगह बंद करके रखना चाहें, तो संसाधन कम हैं। ऊपर से महीनों बजट नहीं आता है, हम तो हर तरह से फंसे हुए हैं। 

गोहांड ब्लॉक के उमरिया गांव की गौशाला में लगातार गायों की मौत हो रही है। इसको जानने के लिए जब डाउन टू अर्थ ने वहां के व्यवस्थापक जयपाल सिंह से बात की वे कहते हैं, "इसके दो कारण हैं एक तो गायों को खिलाने के लिए हमारे पास सूखा चारा नहीं है, दूसरा ठंड बहुत है और बचाव के इंतजाम ही नहीं है, पूरा शेड खुला पड़ा है। अब इतनी ठंड में कई दिन की भूखी गायें मरेंगी नहीं तो क्या होगा? गांव के प्रधान से जब इस बारे में बात की तो वे कहते हैं कि हमारे पास फंड ही नहीं है? व्यवस्थापक को चार महीने से वेतन नहीं दिया है। गौशाला में लगने वाले चारा तो गांव वालों की उदारता से मिल जाता है। बाकी का खर्चा बड़े स्तर का जिसके लिए फंड की आवश्यकता है जो हमारे पास है नहीं।
धमना गांव के प्रदीप बताते हैं कि हमारे गांव में दो अस्थाई और एक नियमित गौशाला बनी हुई हैं। लेकिन सब राम भरोसे है। एक भी गौशाला में सभी गायों को खिलाने के लिए पर्याप्त चारा तक नहीं है। वे बताते हैं कि पिछले पंचायत चुनाव के समय हम भी चुनाव लड़ रहे थे। तब हमने अपनी पूरी फसल का भूसा गौशाला में दान करने का वादा किया था। चुनाव तो नहीं जीते, लेकिन पूरा भूसा जो दान करने के लिए बचाया हुआ था, वो सब हमने गौशाला को दान कर दिया है। हमारे गांव की गौशाला में बंद गायें अभी तक वही चारा खा रही हैं। प्रधान के पास चारा खरीदने के लिए बजट ही नहीं आया है और जो आया था, उसका इस्तेमाल टीन शेड और ठंड से गायों के बचाव के लिए जरूरी सामान खरीदने में खर्च हो गया।
सरकार का दावा है कि छुट्टा मवेशियों को पकड़ने के लिए एक हेल्पलाइन जारी की गई है, लेकिन अमेठी के टीकरमाफी निवासी किसान शेर बहादुर सिंह कहते हैं, "हमने सीएम हेल्पलाइन 1076 पर कई बार शिकायत भी की, उधर से शाम को मैसेज कर दिया जाता है कि आपकी समस्या का निस्तारण कर दिया गया है, लेकिन कोई निस्तारण नहीं होता है।

अमेठी के भगनपुर निवासी किसान बिपिन पाठक भी कई दिनों से चिकित्साधिकारी को फोन कर रहे हैं लेकिन आवारा पशुओं को पकड़ने कोई गाड़ी नहीं आ रही है। जब डाउन टू अर्थ ने भगनपुर की प्रधान शारदा देवी को फोन किया तो उनके पुत्र ने फोन उठाया और बताया, 'कुछ दिन पहले गांव से हमने 60 से 65 जानवर अमेठी की गौशाला में भेजा,  लेकिन आवारा पशुओं की संख्या बहुत ज्यादा है और नगरपालिका की एक ही गाड़ी है इसलिए गाड़ी उपलब्ध नहीं हो पा रही है। बाकी जो गौशालाएं बगल में हैं उनमें संख्या फुल हो चुकी है अभी भी गांव में सौ से डेढ़ सौ आवारा जानवर घूम रहे हैं। गांव में लोग बहुत परेशान हैं, मैं स्वयं किसान हूँ, परेशान हूँ।'

कितना बजट चाहिए?

दरअसल 2019 में हुई 20वीं पशुधन गणना के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 11 लाख 84 हजार 494 आवारा पशु हैं। जबकि 2012 की 19वीं पशुधन गणना के मुताबिक इनकी संख्या 10 लाख 9 हजार 436 थी। यानी कि उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की संख्या बढ़ गई, जबकि इन सात सालों में पूरे देश में आवारा पशुओं की संख्या 52.87 लाख पशुओं से घटकर 50.21 लाख हो गई।

सरकार पशुपालकों को 30 रुपए प्रतिदिन प्रति गाय देने का वादा कर रही है, लेकिन झांसी में गौ तस्करी रोकने और गौ सेवा के उद्देश्य से वृंदावन के महंत श्रीरामदास द्वारा स्थापित श्रीकामधेनु गौशाला के संचालक प्रिंस जैन मानते हैं कि वर्तमान समय में प्रदेश में सरकार द्वारा संचालित गौशालाओं में प्रति गायों के पीछे 30 रुपया प्रतिदिन दिया जा रहा है वह अपर्याप्त है।

प्रिंस कहते हैं कि 'एक गाय के लिए आठ किलो भूसा, पांच किलो हरा चारा और एक किलो दाना होना चाहिए। दूध देने वाली गायों का आहार बढ़ जाता है। एक क्विंटल भूसा ग्यारह सौ रुपया, एक पचास किलो चोकर की बोरी 900 रुपए और हरा चारा 10 रुपया किलो मिलता है। जिसमें लेबर, पानी और रहने के स्थान का खर्च अलग से लगता है। यानी यदि एक गाय को सम्पूर्ण आहार दिया जाय तो दो सौ से ऊपर का खर्च आता है जो कि तीस 30 रुपये में सम्भव नहीं है।'

वे आगे कहते हैं, 'आज से पांच साल पहले जो गेहूं का भूसा पांच से छः रुपये प्रति किलो था आज उस भूसे का दाम 13 रुपये किलो, जो चोकर की बारी 500 रुपये में थी अब वह 900 रुपये तक हो चुकी है। बिजली बिल, लेबर खर्च भी महंगा हो चुका है।'

अब ऐसे में यदि 200 रुपए का हिसाब लगाया जाए तो राज्य के लगभग 12 लाख पशुओं के रखरखाव पर सरकार को अपने सालाना बजट में लगभग 8760 करोड़ रुपए का प्रावधान करना होगा। 

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