बदल रहा मेवात, भाग-दो: लड़की का पढ़ा-लिखा होना शादी की पहली शर्त बना

मेवात में पंचायत चुनाव लड़ने के लिए जहां मां-बाप अपनी बेटियों को पढ़ा रहे हैं, वहीं पढ़ी-लिखी बहू को भी तलाश रहे हैं
मेवात के गांव सलम्बा की निवर्तमान सरपंच हलीमा का कहना है कि मेवात में महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ रहा है। फोटो: राजू सजवान
मेवात के गांव सलम्बा की निवर्तमान सरपंच हलीमा का कहना है कि मेवात में महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ रहा है। फोटो: राजू सजवान
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फारुना तब 22 साल की थी। ग्रेजुएशन कर रही थी। एक दिन परिवार वालों ने बताया कि उसके लिए रिश्ता आया है। शादी सात दिन के भीतर होनी है। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन जब बताया गया कि ससुराल में जाकर सरपंच का चुनाव लड़ना है तो तब समझ आया कि चुनाव की वजह से जल्दबाजी की जा रही है।

फारुना हरियाणा के मेवात (नूंह) जिले के नूंह ब्लॉक के गांव हुसैनपुर की पूर्व सरपंच हैं। वह बताती हैं कि उनका ससुराल पक्ष राजनीति में पहले से सक्रिय रहे हैं। लेकिन पिछले चुनाव में उनकी ग्राम पंचायत महिलाओं के लिए आरक्षित घोषित कर दी गई। साथ ही, तब पहली बार उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम शिक्षा अनिवार्य की गई थी। इसलिए उनका विवाह तुरत-फुरत कराया गया।

फारुना कहती हैं, “मैं टीचर बनना चाहती थी, राजनीति की ज्यादा समझ नहीं थी, लेकिन ससुराल आते ही मुझे निर्विरोध सरपंच चुन लिया गया। राजनीति की समझ आने लगी। परिवार के साथ-साथ पूरा गांव इज्जत करता था। अपने कार्यकाल के दौरान महिलाओं को किसी तरह की दिक्कत नहीं आने दी। शुरू-शुरू में मीटिंगों में शामिल होने और बोलने में शर्म आती थी, लेकिन बाद में अपनी बात रखने का हर संभव प्रयास किया।“

फारुना कहती हैं कि राजनीति में आने पर विश्वास बढ़ा है। पूछने पर कहती हैं कि अगर परिवार के लोगों ने कहा तो वह विधायक का भी चुनाव लड़ सकती हैं।  

फारुना के जेठ इमरान बताते हैं कि पिछले चुनाव में जब अचानक यह पता चला कि उनका गांव का सरपंच पद महिलाओं के लिए आरक्षित हो गया है तो सब लोग चौंक गए। क्योंकि उनके परिवार में कोई भी महिला आठवीं तक नहीं पढ़ी थी। गांव के दूसरे परिवारों से कहा गया कि वह अपनी परिवार की किसी महिला को चुनाव लड़ा सकते हैं।  लेकिन सबने कहा कि हमारा ही परिवार ही चुनाव लड़े, इसलिए बीटेक कर रहे छोटे भाई अब्बास की शादी करवाई गई। जबकि अब्बास शादी के लिए तैयार नहीं था।

इमरान कहते हैं कि यह किस्सा केवल हमारे परिवार या ग्राम पंचायत का नहीं है, बल्कि मेवात में अब लगभग 90 प्रतिशत शादियां तय होने की पहली शर्त यही होती है कि लड़की पढ़ी-लिखी होनी चाहिए। इसकी बड़ी वजह पंचायत चुनाव तो है ही, लेकिन इसके साथ-साथ आंगनवाड़ी या आशा कार्यकर्ता बनने के लिए भी मेवात की महिलाएं पढ़ रही हैं।

इमरान भी रेडियो मेवात से जुड़े हैं और मेवात में गांव-गांव जाकर प्रोग्राम करते हैं। वह कहते हैं कि पंचायत चुनाव में महिलाओं को आरक्षण देने और न्यूनतम शिक्षा अनिवार्य करने से हालात बहुत बदल गए हैं। यह मेवात की महिलाओं के लिए बहुत कारगर साबित हो रहा है।

रेडियो मेवात से जुड़ी फरहीन भी बताती हैं कि इस कानून ने एक बड़ा काम यह किया है कि अब पढ़ी लिखी लड़कियों से शादी के वक्त दहेज भी नहीं मांगा जाता। मेवात में शादी में दहेज बहुत मांगा जाता रहा है। लेकिन इस चलन में अब काफी कमी आ गई है।

गांव सलम्बा के सरपंच पद के लिए अफसाना भी चुनाव लड़ रही हैं। अफसाना की शादी 2020 में हुई थी। उस समय भी पंचायत चुनाव होने थे, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण चुनाव टल गए थे। अफसाना की सास हलीमा उस समय सरपंच थी। हालांकि हलीमा भी आठवीं पास थीं, लेकिन परिवार ने निर्णय लिया था कि इस बार ज्यादा पढ़ी-लिखी बहू को सरपंच पद के लिए लड़ाया जाए।

अफसाना का मायका जयपुर में है और वह वहीं 12वीं कर रही थी। अब पति के प्रयासों से वह दूरस्थ शिक्षा (डिस्टेंस एजुकेशन) से बीए कर रही हैं। हालांकि जब डाउन टू अर्थ ने उनसे बात करने की कोशिश की तो परिवार के बुजुर्ग पास होने के कारण वह ज्यादा नहीं बोल पाई। लेकिन इतना उन्होंने साफ-साफ कहा कि वह चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

पास बैठी उनकी सास हलीमा कहती हैं कि राजनीति में आने के बाद जिस तरह उनका आत्मविश्वास बढ़ा है, इसी तरह उनकी बहू का भी आत्मविश्वास बढ़ेगा।

हलीमा भी कहती हैं कि पंचायत चुनाव में महिलाओं को आरक्षण देने और उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम शिक्षा अनिवार्य करने से समाज में महिलाओं की स्थिति में काफी सुधार आया है। खासकर घरेलू हिंसा के मामले में महिलाएं मुखर हो रही हैं। हलीमा ने बताती हैं कि वह गांव के स्कूल को 12वीं तक कराने का प्रयासरत हैं, ताकि जो लड़कियां पढ़ने के लिए दूर तक नहीं जा पाती, उन्हें गांव में ही 12वीं तक की शिक्षा मिल पाए। 

नूंह ब्लॉक सदस्य के लिए चुनाव लड़ रही पूजा का आत्मविश्वास भी देखते ही बनता है। वह कहती हैं कि महिलाओं के लिए पढ़ाई-लिखाई बहुत जरूरी है और चुनाव लड़ने से उनका आत्मविश्वास बहुत बढ़ जाता है।

क्या है साक्षरता दर

मेवात यानी नूंह की 80 प्रतिशत आबादी मेव मस्लिम है। साक्षरता के मामले में यह जिला पिछड़ा माना जाता है। 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की औसत साक्षरता दर 54.08 प्रतिशत थी, जिसमें पुरुषों का प्रतिशत 69.94 और महिलाओं का प्रतिशत केवल 36.60 था। इससे पहले 2001 की जनगणना के मुताबिक मेवात में कुल साक्षरता दर 43.50 प्रतिशत था। इसमें पुरुषों की साक्षरता दर 61.20 प्रतिशत और महिलाओं की साक्षरता दर केवल 23.90 प्रतिशत थी।

2001 के मुकाबले जहां 2011 में मेवात में शिक्षा का स्तर सुधरा था, लेकिन इसके बाद और तेजी से सुधार हो रहा है। हरियाणा के आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 के मुताबिक मेवात देश के 115 आकांक्षी जिलों में शामिल है। 2018 के मुकाबले 2021 में मेवात में 27 प्रतिशत ओवरऑल इंप्रूवमेंट हुआ, जिसमें स्वास्थ्य एवं पोषण में 19 प्रतिशत, कृषि एवं जल संसाधन में 15 प्रतिशत, वित्तीय समावेशन एवं कौशल विकास में 33 प्रतिशत, मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर में 21 प्रतिशत वृदि्ध हुई है, लेकिन सबसे अधिक 48 प्रतिशत वृद्धि शिक्षा के क्षेत्र में हुई है।  

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