मिलिए उन महिलाओं से, जिन्होंने बदली बिहार चुनाव की तस्वीर!

बिहार चुनाव में नीतीश कुमार की जीत में महिलाओं की भूमिका को बेहद अहम माना जा रहा है
मिथिला पेंटिंग करती रेखा झा। फोटो: सत्यम कुमार
मिथिला पेंटिंग करती रेखा झा। फोटो: सत्यम कुमार
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राखी झा, उम्र 26 वर्ष, मिथिला पेंटिंग कलाकार और मधेपुर की निवासी हैं। कहती हैं, “हम मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। मम्मी-पापा तो पढ़ाना चाहते थे, लेकिन पैसा नहीं थे। 2018 में इंटर पास किया तो सरकार से 10,000 रुपए मिले। यही पैसा आगे की पढ़ाई का सहारा बना।”

“फिर स्नातक में प्रथम आने पर 50,000 रुपये की सहायता राशि मिली। इसी से मैंने सौराठ (मधुबनी) में उस एकमात्र संस्थान में नामांकन कराया जो मिथिला पेंटिंग में डिग्री देता है। वहाँ मैंने मिथिला कला सीखी।”

“हर सेमेस्टर मुझे 9,000 रुपये की स्कॉलरशिप मिलती रही, जिसके दम पर मैं आज भी पढ़ाई जारी रख पा रही हूँ। इसी आत्मविश्वास से मैं दिल्ली ट्रेड फेयर में अपना स्टॉल लगा सकी और मुझे वहाँ ‘वैदेही सम्मान’ भी मिला।”

“उद्यमी योजना के तहत 50,000 रुपए का लोन भी मिला। अब मैं मिथिला पेंटिंग से खुद कमाती हूँ और परिवार की आर्थिक मदद करती हूं।”

“चुनाव से ठीक पहले  खाते में 10,000 रुपए आए। मैं इन्हें अपने रोजगार में लगा रही हूं। अगर इसका ठीक से उपयोग किया तो अगले चरण में 2 लाख रुपए तक की सहायता राशि भी मिल सकती है। इससे मैं अपना पूरा बिजनेस खड़ा कर लूंगी और परिवार को मजबूत करूंगी।”

आखिर में राखी झा मुस्कुराते हुए कहती हैं – “हम तमाम महिलाएं नीतीश जी को ही वोट देंगी।जो सरकार हमें पढ़ाती है, कला सिखाती है, रोजगार देती है – उसे हम कैसे छोड़ दें?"

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के परिणामों की घोषणा के साथ ही राजनीतिक विश्लेषकों ने राखी जैसी महिला मतदाताओं की स्थिर और एकजुट भागीदारी को सबसे प्रमुख कारण बताया था।

चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, राज्य की कुल मतदाता सूची में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 47 प्रतिशत (3.51 करोड़) है। इस बार उनका मतदान प्रतिशत पुरुषों से औसतन 8.8 प्रतिशत अधिक रहा (महिला: 71.6 प्रतिशत, पुरुष: 62.8 प्रतिशत)। 52 सीटों पर महिला मतदान 60 प्रतिशत से ऊपर रहा, जबकि 19 सीटों पर यह पुरुषों को 10 प्रतिशत तक पछाड़ गया। नतीजों में साफ दिखा कि जहां महिला मतदान अधिक था, वहां एनडीए उम्मीदवारों की जीत का अंतर भी बड़ा रहा।

2005 में सरकार बनने के बाद से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शिक्षा, सुरक्षा, आजीविका, स्वास्थ्य, और स्थानीय शासन सभी में महिलाओं को केंद्र में रखकर नीति बनाई। इनमें से कई योजनाओं का असर आज भी ग्रामीण-शहरी महिलाओं के जीवन में गहराई से महसूस होता है।

मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना (2006): 9वीं कक्षा की लड़कियों को मुफ्त साइकिल। आंकड़े बोलते हैं: शिक्षा विभाग के अनुसार, 2007-2024 तक 56 लाख से अधिक लड़कियां लाभान्वित हुई। लड़कियों का नामांकन 13 प्रतिशत बढ़ा, ड्रॉपआउट दर 22 प्रतिशत से घटकर 7 प्रतिशत रह गई। यह प्रगति यूनिसेफ की 2016 रिपोर्ट से साफ झलकती है, जहां ड्रॉपआउट दर 2006 के 11.4 प्रतिशत से घटकर 2014-15 में 2.1 प्रतिशत हो गई।

पंचायती राज में 50 प्रतिशत महिला आरक्षण

2006-07 में बिहार सरकार द्वारा पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला न केवल ऐतिहासिक था, बल्कि यह ग्रामीण भारत की राजनीति का एक मील का पत्थर साबित हुआ। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में लिया गया यह कदम महिलाओं को पहली बार राजनीतिक नेतृत्व की मुख्यधारा में लाया, जहां वे सिर्फ नाममात्र की प्रतिनिधि नहीं, बल्कि वास्तविक निर्णयकर्ता बन सकीं।

दरभंगा जिले की पंचायत समिति सदस्य अल्पना प्रियदर्शिनी इस परिवर्तन की जीती-जागती मिसाल हैं। वे कहती हैं: “आज हम लोग घर से निकल पा रहे हैं, बिहार की राजनीति में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रहे हैं। यह सब नीतीश बाबू के कारण ही हुआ है।

शराबबंदी

2016 में बिहार में शराबबंदी लागू होने के बाद से यह नीति महिलाओं में काफी लोकप्रिय है। 2023 में चाणक्य लॉ विश्वविद्यालय और एएन सिन्हा इंस्टिट्यूट द्वारा कराए गए एक सर्वे में पाया गया कि एक करोड़ 82 लाख लोगों ने शराब छोड़ दिया है। बिहार में 99 प्रतिशत महिलाएं और 93 प्रतिशत पुरुष शराबबंदी के पक्ष में हैं।

दरभंगा की शांति देवी कहती हैं कि शराबबंदी के बाद घर में झगड़ा बंद हुआ है। पहले शाम होते ही डर लगता था, लेकिन अब बच्चे आराम से बाहर से पढ़-लिखकर घर आ सकते हैं। नीतीश जी का यह बहुत बड़ा काम है।

 जीविका और आर्थिक सशक्तिकरण

बिहार चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की थी कि बिहार सरकार “मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना” के तहत उन सभी पात्र महिलाओं को 10 हजार रुपए की सहायता दी जाएगी, जिन्होंने इस योजना के लिए आवेदन किया है और निर्धारित शर्तों को पूरा करती हैं। सरकार ने इसकी किस्तें भेजने का शेड्यूल भी जारी कर दिया था। अब तक 1.30 करोड़ से अधिक महिलाओं को यह राशि मिल चुकी है। इस आर्थिक सहायता का उपयोग महिलाएं अपने-अपने हिसाब से रोज़गार और आजीविका के छोटे-छोटे साधन बनाने में कर रही हैं।

दरभंगा जिले के मांऊबेहट पंचायत निवासी संजू देवी (आयु 44 वर्ष) पिछले आठ साल से जीविका दीदी हैं। वह बताती हैं, “24 अक्टूबर को खाते में दस हजार रुपया आया। मैंने उसी से गांव में ही महिलाओं की श्रृंगार सामग्री और चूड़ी की छोटी-सी दुकान खोल ली। हमारे गाव में आज भी कॉस्मेटिक की दुकान बहुत कम हैं और जहां होती भी है, वहां पुरुष ही बैठते हैं। मैंने सोचा – क्यों न हम खुद ही महिलाओं की दुकान चलाएं? 

संजू देवी आगे जोड़ती हैं, “अगर सरकार दो लाख रुपए की आर्थिक सहायता दे दे, तो मैं गांव में पक्की, बड़ी दुकान खोलूंगी। उसमें और ज्यादा सामान रखूंगी – बिंदी, मेहंदी, नेल पॉलिश, हर तरह का श्रृंगार सामान।” हंसते हुए कहती हैं: “अब घर में किसी से पैसे माँगने की जरूरत नहीं पड़ती। मन में जो सम्मान है न, वह सबसे बड़ा है।”

नीतीश कुमार का नाम लेते ही कहती हैं:  “जो हमें इतना मजबूत कर दिया, वोट उसी को न देंगे भला?”

मधेपुर निवासी (मधुबनी) रेखा देवी बताती हैं कि वह पिछले नौ वर्षों से जीविका से जुड़ी हुई हैं। वह कहती हैं कि “पिछले महीने 24 अक्टूबर को मेरे खाते में 10,000 रुपए आए। मैंने उसी राशि में से 2,500 रुपये लगाकर तीन बकरियां खरीदी हैं। यह 10,000 रुपए मेरे लिए एक सहारे की तरह साबित हुए। इससे मुझे भरोसा मिला कि मैं भी छोटा व्यवसाय शुरू करके आगे बढ़ सकती हूं।”

रेखा देवी 45 वर्ष की हो चुकी हैं और अब अपना स्वरोजगार शुरू कर रही हैं। वह बताती हैं कि जीविका समूह की अन्य दीदियों को अपने-अपने छोटे उद्यम के माध्यम से आगे बढ़ते देखकर उन्हें भी अपने लिए कुछ करने की प्रेरणा मिली। वह कहती हैं कि “पहले पैसे की कमी थी, लेकिन अब हौसला मिला है कि अगर मैं मेहनत से काम करूं तो भविष्य में 2 लाख रुपये तक की मदद भी मिल सकती है।” 

बोधगया निवासी ब्यूटी कुमारी (आयु 35 वर्ष) पिछले दो वर्षों से जीविका समूह से जुड़ी हुई हैं। अक्टूबर माह में उनके खाते में आई दस हजार रुपए की राशि ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। वह बताती हैं “इस धनराशि से मैंने एक सिलाई मशीन खरीद ली। घर बैठे कपड़े सिलती हूं, ऑर्डर लेती हूं और मेरे पास आय का स्थायी स्रोत बन गया है। अब मैं बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा सकती हूं और घर के खर्च में हाथ बटा सकती हूं।”

दो पुत्रियों की मां ब्यूटी आगे कहती हैं, “हम जैसी महिलाओं के लिए बाहर नौकरी ढूंढ़ना बहुत कठिन था। घर-बच्चों की देखभाल भी करनी होती है और बाहर काम कहां मिलता है? इन दस हजार रुपए ने मुझे अपना काम शुरू करने का अवसर दे दिया।”

पटना की सामाजिक शोधकर्ता काजल कश्यप बताती हैं कि ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के लिए नीतीश सरकार की 10,000 रुपए वाली सहायता योजना बिल्कुल एक अपेक्षित सहारे की तरह काम कर रही है। वहीं दूसरी ओर, पढ़ी-लिखी और नौकरी-पेशा महिलाएं महागठबंधन की तुलना में नीतीश कुमार के साथ खुद को अधिक सहज महसूस करती हैं।

पटना के राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन बताते हैं कि भाजपा और राजद दोनों ही पारंपरिक रूप से स्वर-प्रधान (वॉकल) पार्टियां रही हैं, जहां महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के लिए बहुत अधिक जगह नहीं बन पाती थी। इसके उलट, नीतीश कुमार की रैलियों और उनकी राजनीतिक शैली में महिलाओं के लिए एक सहज और सुरक्षित माहौल दिखाई देता है।

महेंद्र सुमन के अनुसार, “इसी वजह से इस चुनाव में बड़ी संख्या में महिलाओं ने अपना वोट नीतीश कुमार के पक्ष में डाला।” यह जनादेश न सिर्फ नीतियों की जीत है, बल्कि बिहार की आधी आबादी के सशक्तिकरण का प्रमाण भी।

कल पढ़ें, ऐसी ही कुछ महिलाओं के बारे में

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