नोबेल बदेलगा अर्थशास्त्र का नजरिया?

व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र पर काम करने वाले आर्थिक विचारकों का मानना ​​है कि इंसान तर्कहीन होता है। नीतियों को इस तरीके से डिजाइन करने की जरूरत होती है।
तारिक अजीज / सीएसई
तारिक अजीज / सीएसई
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इस साल अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार रिचर्ड एच़ थैलर को देने की घोषणा की गई है। इस पुरस्कार ने थैलर के व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र की तरफ दुनिया का ध्यान खींचा और उसे मान्यता प्रदान की जिसे मुख्यधारा के अर्थशास्त्र में ज्यादा महत्व नहीं दिया गया। मुख्यधारा का अर्थशास्त्र मानता है कि मनुष्य निर्णय लेने के लिए उपलब्ध ज्ञान को ध्यान में रखकर खुद को तर्कसंगत निर्णय निर्माता के रूप में पहचानता है। इसके सभी सिद्धांत इस मूल धारणा पर आधारित हैं लेकिन थैलर ने इसे प्रतिमान को चुनौती दी। व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र पर काम करने वाले आर्थिक विचारकों का मानना ​​है कि इंसान तर्कहीन होता है। नीतियों को इस तरीके से डिजाइन करने की जरूरत होती है, जिससे वे तर्कसंगत निर्णय ले सके। अर्थशास्त्री रॉबर्ट सगडेन और नाथन बर्ग ने थैलर के काम के अनुभव और नैतिक आधार पर सवाल उठाया है। अब, जब नोबल समिति ने थैलर के काम को मान्यता दे दी है, तो कई अर्थशास्त्रियों ने व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र के प्रति वैश्विक रुख में आए इस बदलाव का स्वागत किया है। अक्षित संगोमला ने भारतीय संदर्भ में जाने-माने व्यवहारात्मक अर्थशास्त्री से इसकी प्रासंगिकता और उनकी काट में एक शोधार्थी से बहस की

“अन्य अर्थशास्त्र क्या है?”

― संजीत धामी
लीसेस्टर विश्वविद्यालय में
अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और
“नज” किताब के सहायक लेखक कास संसस्टीन के सहयोगी
 
रिचर्ड एच. थैलर को 2017 का नोबेल पुरस्कार अर्थशास्त्र के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। नव-वर्गीय अर्थशास्त्र असीम तर्कसंगतता और भावनाहीन विमर्श को मानता है। व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र स्पष्ट आर्थिक रूपरेखा का उपयोग करते हुए ही मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और तंत्रिका विज्ञान से उधार लेता है। इसकी व्याख्यात्मक शक्ति वर्तमान में किसी भी उपलब्ध विकल्प से काफी बेहतर है।  

थैलर ने लॉस एवर्सन यानि लोगों की इच्छा, जिसमें वह समान लाभ पाने के लिए समान हानि को ठुकराना अधिक पसंद करता है, (हानि, समान लाभ से मिलने वाले आनंद की तुलना में 2.5 गुना अधिक दुखद होता है) का इस्तेमाल दो महत्वपूर्ण पहेलियों को समझाने के लिए किया। सबसे पहले, किसी वस्तु का स्वामित्व, स्वामी का मूल्य बढ़ा देता है (एंडोमेंट प्रभाव);  वस्तु का साथ छोड़ना लॉस एवर्सन को बढ़ा देता है। यह बताता है कि क्यों इंसान और जानवर अपने क्षेत्रों को सुरक्षित रखने के लिए आक्रामक तरीके से लड़ते हैं।  

दूसरा, बॉन्ड से संबंधित इक्विटी पर रिटर्न बहुत अधिक है, यहां तक ​​कि इक्विटी पर अतिरिक्त जोखिम के एकाउंटिंग के बाद भी (इक्विटी प्रीमियम पजल)। थैलर ने दिखाया कि लॉस एवर्सन इक्विटी कीमतों में उतार-चढ़ाव में गिरावट का कारण बनता है, जो 2.5 गुना बढ़ाया जा सकता है, जिसके लिए बांड सापेक्ष प्रीमियम की आवश्यकता होती है। 1980 के दशक में, थैलर ने डेनियल केनमैन के साथ एक प्रयोग किया, जिसमें पता चला है कि इंसान की सामाजिक प्राथमिकताएं होती हैं, जो निष्पक्ष चिंता को महत्व देती हैं।   

जर्नल ऑफ इकॉनोमिक पर्सपेक्टिव्स में “अनामिलीज” (नव-वर्गीय मॉडल) नामक कॉलम के एक समूह में, थैलर ने व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र को लोकप्रिय बनाया। उन्होंने दिखाया कि जब लोग किसी खास समय में किसी वस्तु का चुनाव करते हैं, तब नुकसान की कटौती लाभ से कम होती है जैसे बड़े परिणाम, छोटे परिणाम के सापेक्ष होते हैं। उन्होंने यह भी दिखाया है कि जब कोई बोली लगाने वाला अनिश्चित लागत वाली वस्तु की नीलामी में बोली लगाता है, तो वो बोली दाता, जो सबसे कम लागत का अनुमान लगाता है, उच्चतम बोली लगाता है। लेकिन एक नाखुश विजेता को इसके लिए कहीं ज्यादा भुगतान करना पड़ता है।  

 एक मौलिक विचार के रूप में, थैलर ने दिखाया है कि लोगों के पास मानसिक खाता होता है जहां पैसा किसी और चीज से नहीं बदला जा सकता। इसके अलावा, लोग मेंटल एकाउंट के खतरे में होने (नकारात्मक बैलेंस) के खिलाफ होते हैं। इसलिए मेंटल एकाउंट को नकारात्मक बनाना व्यवहार को प्रभावित कर सकता है। नव-वर्गीय अर्थशास्त्र में बर्बाद लागत से कोई फर्क नहीं पड़ता। थैलर ने अपने नियोजक-कर्ता फ्रेमवर्क (प्लानर-डूअर-फ्रेमवर्क) में शॉर्ट-रन कर्ताओं की एक श्रृंखला को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे लंबे समय तक के योजनाकार के बीच एक गेम के रूप में मानवीय फैसलों के जरिए आर्थिक मॉडल में भावना और आत्म-नियंत्रण को पेश किया। यह व्यसन, अपर्याप्त बचत और टाल मटोल की व्याख्या कर सकता है।  

 अंत में, हार्वर्ड के कास संसस्टीन के साथ अपने हाल के काम में, जो उनकी किताब नज में अच्छी तरह से वर्णित है, उन्होंने कल्याणकारी अर्थशास्त्र में नई जमीन तलाशी है। उनका विचार-उदारवादी पितृत्ववाद, अपने कल्याण को बेहतर बनाने के लिए तर्कसंगत लोगों को एक सौम्य धक्का देता है। लेकिन ये पूरी तरह तर्कसंगत लोगों पर प्रभाव नहीं डालता। ऐसे विकल्पों के कई उदाहरण हैं, जैसे ऑप्ट-इन या ऑप्ट-आउट, जिनका बचत, पेंशन और अंग दान पर भारी प्रभाव पड़ा है। थैलर को मिली नोबल मान्यता अंततः नव-वर्गीय अर्थशास्त्र में काल्पनिक प्राणियों, ईकोन्स को छुपा लेती है और व्यवहारात्मक अर्थशास्त्र आधारित अर्थशास्त्र के एक नए युग को पेश करती है।  

 “बाकी सब कुछ हमेशा समान नहीं होता”

― स्वस्ति पचौरी
सामाजिक क्षेत्र की पेशेवर, 2012-2014
के दौरान प्रधानमंत्री रूरल डेवलपमेंट
फेलो थीं

अन्य चीजें समान या सब कुछ समान, ये आर्थिक सिद्धांत की सार्वभौमिक धारणा है। समाजशास्त्रियों और मनोवैज्ञानिकों के लिए थैलर को मिला नोबेल आनंद का एक क्षण है। यह इस बात पर जोर देती है कि अर्थशास्त्र क्यों मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय विचारों के समावेश के कारण मानवीय बन रहा है।  

 हालांकि, क्या सौम्य धक्का हमेशा विकासशील देशों में काम करता है? धक्का देने का सिद्धांत हमारे सामने व्यवहारात्मक हस्तक्षेप प्रस्तुत करता है, जो फायदेमंद होते हैं। अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि लोग उनके लिए जो सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है की तुलना में सबसे सुविधाजनक विकल्प चुनते हैं, जिससे वे तर्कहीन प्रलोभन में आते हैं। इसे स्वच्छ भारत मिशन से समझा जा सकता है, जहां मनोदशा बदल कर शौचालय बनवाना बहुत बड़ा काम है।  

 हालांकि, एक आकार सभी को फिट बैठता है की बात विकेन्द्रीकृत प्रतिमान के विचार के खिलाफ हो सकता है।  

 सार्वजनिक नीति प्रसार की मरम्मत के लिए 2015 में योजना आयोग हटा दिया गया और नीति आयोग के माध्यम से सहकारी संघवाद के विकेन्द्रीकृत सिद्धांतों का पुनरुत्थान हुआ। राज्यों को स्वायत्तता देने के विचार के साथ इस थिंक टैंक का गठन किया गया था। हालांकि, इसने बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सहयोग से सरकारी योजनाओं में आने वाले व्यवहारात्मक बाधाओं के समाधान लिए, एक नज यूनिट बनाई।  

 समाधानों का प्रस्ताव देकर व्यवहार को प्रभावित करना, ताकि समुदाय निर्देशित परिणामों की दिशा में आगे बढ़े, ये लोकतांत्रिक नहीं है, बल्कि जबरन और विनिर्माण सहमति के समान है।  

 हस्तक्षेप को पर्याप्त सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक अनुपूरक की आवश्यकता होती है। इस तरह का समग्र दृष्टिकोण प्लानर्स और बेनिफिशिएरी के बीच बायनरीज को कम करने का प्रयास करता है। एक स्वतंत्रतावादी पितृत्ववाद के सीमित अनुप्रयोग, जहां लोगों को एक विकल्प से वंचित नहीं किया जाता है, में नज (धक्का देने) के इस्तेमाल से लक्ष्य को पूरा करने की कोशिश की जाती है।  

 उदाहरण के लिए, पिछले नवंबर में 86 प्रतिशत मुद्रा को अमान्य घोषित करके देश को कैशलेस समाज की ओर प्रेरित किया गया, जबकि अनएकाउंटेबल कैश वाले लोगों को दंडित करने से ग्रामीण और जनजातीय आबादी के लिए गंभीर असुविधा हुई।  

 हालांकि, इस महत्वाकांक्षी योजना का मकसद ठीक था, व्यवहार में बदलाव की अचानक उम्मीद से पारिस्थितिक तंत्र तबाह हो गया। ई-मनी के इस्तेमाल को प्रेरित कर व्यवहार को डिजिटाइज करने के लिए लोगों को गहरी सहानुभूति की आवश्यकता थी। बुजुर्ग की दुर्दशा को समझना जरूरी था, दिव्यांगों, गरीबों की तकलीफ को समझना जरूरी था। इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिए पहले महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की आवश्यकता थी और डिजिटल भुगतानों के उपयोग के बारे में जागरूकता फैलाने की जरूरत थी। इस तरह नज के भारतीयकरण के परिणामस्वरूप असंगठित क्षेत्र पंगु हो गया, जो हमारे 90 फीसदी वर्क फोर्स (कर्मचारियों) को रोजगार देता है की 90 प्रतिशत से अधिक है।

 सरकार द्वारा नज का एक सफल उदाहरण पीएम उज्ज्वला योजना है, जिसके माध्यम से बीपीएल परिवार लकड़ी के चूल्हे से एलपीजी की तरफ आ गए। ये एक व्यवहारात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक बदलाव है जो महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए है। इस मामले में, बीपीएल परिवारों (ग्रामीण क्षेत्रों में एक चुनौती) के लिए सस्ती सिलेंडर पुनर्विक्रय विकल्प एक व्यवहार्य नज के रूप में माना जा सकता है।

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