कोविड-19 की दूसरी लहर ने ग्रामीण भारत को बड़ा नुकसान पहुंचाया

कोविड-19 गांवों में पहुंच चुका है। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इतना गहरा असर डाल सकता है कि पिछले साल की तरह उसे बचाना मुश्किल होगा
कोविड-19 की दूसरी लहर ने ग्रामीण भारत को बड़ा नुकसान पहुंचाया
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इस बार महामारी तेजी से गांवों में फैली। पिछले साल पहली लहर के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ा था और कृषि व गैर कृषि गतिविधियां आराम से चल रही थीं। किसानों ने रबी की बंपर पैदावार की थी जो मुख्य रूप से नकदी फसल होती है। किसान उसे बाजार में ठीक से पहुंचा पाए थे। समस्या कुछ समय बाद यानी रबी की फसल की कटाई के बाद तब शुरू हुई थी, जब उन्होंने खरीफ से पहले की फसल उगाई। राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान किसानों को यातायात और मार्केटिंग की समस्या के कारण दिक्कत आई। ये अल्पकालीन बागवानी फसल का समय था जिसकी उम्र ज्यादा नहीं होती। रिवर्स माइग्रेशन के कारण पंजाब जैसे राज्यों को मजदूरों की कमी का सामना करना पड़ा। लेकिन यह असर थोड़े समय के लिए था और पूरे देश में ऐसी समस्या नहीं आई। दक्षिण भारत तो इससे लगभग अछूता ही रहा। खरीफ का मौसम भी ज्यादा परेशानी भरा नहीं था।

इस साल भी रबी का खाद्यान्न उत्पादन अच्छा रहा और फसल थोड़ी बहुत परेशानियों के बावजूद फसल बाजार में पहुंच गई। मुझे असल चिंता अप्रैल में बोई जाने वाली और खरीफ फसल की है। कोविड-19 के गांवों में तेजी से पैर पसारने से मजदूरों की कमी गंभीर चिंता का विषय हो सकती है। आशंका है कि उत्पादन भी पिछले साल जितना नहीं रहेगा। हो सकता है कि किसान किसी तरह बुवाई कर लें लेकिन उपज में भारी कमी आ सकती है।

गैर-कृषि ग्रामीण गतिविधियों (बढ़ई का काम, निर्माण और साइकिल की मरम्मत) को बहुत नुकसान होने वाला है क्योंकि इसके लिए मानव संपर्क की आवश्यकता होती है। पिछले साल तेजी से बढ़ने वाले उपभोक्ता उत्पादों (एफएमसीज) जैसे जिन क्षेत्रों ने ग्रामीण मांग के आधार पर अपेक्षाकृत अच्छा प्रदर्शन किया था, इस बार उतना अच्छा नहीं करने जा रहे हैं। नुकसान का स्तर इस बात पर निर्भर करेगा कि ग्रामीण भारत में महामारी का भय कितनी तेजी से फैलता है और अपनी चपेट में लेता है। इस बार डर बहुत अधिक है, विशेष रूप से उन ग्रामीण भारत में जहां चिकित्सा सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं। यदि भय लगातार बना रहता है, तो नुकसान काफी होने वाला है। इसलिए हमें यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि ग्रामीण भारत देश की अर्थव्यवस्था को उस तरह से बचाए रखेगा जैसा उसने पिछले साल किया था। यही असली समस्या है।

कोविड-19 संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए पिछले साल लगाया गया राष्ट्रीय लॉकडान दो महीने से थोड़ा अधिक समय तक चला। इस दौरान आवश्यक सेवाओं के अलावा अन्य सभी आर्थिक गतिविधियां ठप रहीं। इस बार ऐसा नहीं है। यह सुनने में भले ही अच्छा लगे लेकिन दुर्भाग्य से इस बार लॉकडाउन को लेकर अनिश्चितता बहुत बड़ी है। पिछली बार नुकसान बड़ा था लेकिन एक निश्चित अवधि के लिए सीमित था। जैसे ही लॉकडाउन प्रतिबंधों में ढील दी गई, आर्थिक गतिविधियों ने बहुत तेजी से वापसी की। इस बार नुकसान आंशिक होगा, लेकिन यह लंबे समय तक बना रहेगा। एक एकीकृत उत्पादन या परिवहन प्रणाली में लोगों को पहले से योजना बनाने की जरूरत होती है। यदि आप सुनिश्चित नहीं हैं कि लॉकडाउन कब और कहां लगाया जा रहा है, तो यह अनिश्चितता की ओर ले जाता है और आपकी निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है। इससे निवेश पर असर पड़ेगा, जिसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।

अभी हमारे पास पर्याप्त सारे खाद्य भंडार हैं और वितरण और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला ठीक काम कर रही है। लेकिन हम नहीं जानते कि भविष्य में क्या होने वाला है क्योंकि बहुत कुछ रबी के बाद के मौसम में उत्पादन पर निर्भर करता है। बागवानी उत्पादन निश्चित रूप से बुरी तरह प्रभावित होने वाला है। बुवाई के आंकड़े ही बताएंगे कि स्थिति कितनी खराब होने वाली है।

देश की ग्रामीण गरीबी बद से बदतर होती जा रही है। मुख्यत: तीन कारणों से कोविड-19 ग्रामीण गरीबों को प्रभावित करने वाला है। सबसे पहले, रिवर्स माइग्रेशन के कारण। शहरी गरीबी का एक बड़ा हिस्सा अब ग्रामीण क्षेत्रों में लौट रहा है। पिछले साल हमने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद शहरी क्षेत्रों से मजदूरों का बड़े पैमाने पर पलायन देखा। इस साल सिर्फ लॉकडाउन ही नहीं, बल्कि वायरस का खौफ भी है, जिसकी वजह से बड़ी संख्या में मजदूर अपने गांव वापस जा रहे हैं। दूसरा कारण है बागवानी और खरीफ फसलों को नुकसान। कई फार्महाउस जो भूमिहीन मजदूरों को काम देते थे, डर के कारण इस बार ऐसा नहीं कर पाए हैं। इसका मतलब है कि बहुत से भूमिहीन मजदूर, जो पहले से ही गरीब हैं, अब और गरीब हो जाएंगे। तीसरा, जैसा कि मैंने पहले बताया, बहुत सी गैर-कृषि गतिविधियां इस बार गंभीर रूप से प्रभावित होने वाली हैं। अध्ययन दिखाते हैं कि महामारी के पिछले एक साल के दौरान ग्रामीण वेतनभोगी रोजगार में गिरावट आई है।

महंगाई पर असर

कुछ सप्ताह पहले तक मुझे अंदाजा नहीं था कि महामारी ग्रामीण भारत में बुरी तरह फैल जाएगी। उस समय मेरा डर सिर्फ आपूर्ति श्रृंखला पर केंद्रित था। लेकिन अब उत्पादन का संकट भी है। शहरी भारत को होने वाली खाद्य उत्पादों की आपूर्ति (अनाज के अतिरिक्त), आपूर्ति श्रृंखला बाधित होने और कम उत्पादन से प्रभावित होने वाली है। इससे बहुत जल्द महंगाई बढ़ेगी, खासकर खाद्य पदार्थ महंगे हो जाएंगे। भारत को सब्जियों जैसे खाद्य उत्पादों के आयात की जरूरत पड़ सकती है। गौर करने वाली बात यह है कि भारत परंपरागत रूप से बागवानी उत्पादों जैसे आलू और प्याज का निर्यातक देश रहा है। इससे वैश्विक बाजार पर गहरा असर पड़ेगा क्योंकि एक तरफ हम अंतरराष्ट्रीय बाजार में आपूर्ति बंद कर देंगे और दूसरी तरफ हम खुद खरीदार बन जाएंगे। इसका नतीजा यह निकलेगा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत आसमान छूने लगेगी।

सुधार के उपाय

महामारी के दौरान पिछले साल सरकार द्वारा शुरू किए गए कुछ महत्वपूर्ण उपायों में मुफ्त भोजन वितरण, सभी महिला जन धन खाताधारकों को तीन महीने के लिए 500 रुपए नकद हस्तांतरण और महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम की मजदूरी बढ़ाना शामिल थे। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत मुफ्त राशन लंबे समय तक जारी रहना चाहिए। कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि जन धन खातों के माध्यम से कमजोर परिवारों को नकद हस्तांतरण से लोगों को मदद मिली है, लेकिन इसने एक सीमित सीमा तक ही काम किया। इसे जारी रखना कोई बुरा विचार नहीं है। चूंकि पीडीएस की पहुंच बेहतर है, इसलिए नकद हस्तांतरण के लिए इस पर विचार किया जाना चाहिए। इसके बाद मनरेगा आता है।

हम जानते हैं कि मनरेगा कार्यों की मांग काफी बढ़ गई है। सवाल यह है कि एक बार मनरेगा साइटों का संचालन शुरू हो जाने के बाद क्या भय लोगों को वहां आने से रोकेगा? क्या हम मनरेगा साइटों को इस तरह से प्रबंधित करने में सक्षम होंगे जो कोविड-उपयुक्त हों? अगर नहीं तो मनरेगा पिछले साल की तरह ग्रामीण आजीविका को प्रभावी तरीके से सहयोग नहीं कर पाएगा। हमें तुरंत आपूर्ति श्रृंखला पर ध्यान केंद्रित करके उसे बेहतर बनाना होगा। हम जानते हैं कि पिछले साल क्या गड़बड़ी हुई थी। तब स्पष्टता और समन्वय का पूर्ण अभाव था। कम से कम इसे ठीक करना होगा। इस बार दो बातों पर ध्यान देकर इसे बेहतर किया जा सकता है। एक, केंद्र, राज्य और स्थानीय प्राधिकरणों को इस बात पर एकमत होना पड़ेगा कि किसकी अनुमति है और किसनी नहीं। पूरी स्पष्टता के साथ यह बात कानून व्यवस्था संभालने वाली मशीनरी तक पहुंचाई जानी चाहिए। यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिए कि इन निर्देशों के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान है।

कोविड-19 भारत की पहली ग्रामीण महामारी नहीं है। हैजा एक ग्रामीण महामारी थी। इसने कई लोगों की जान ले ली और बहुत लंबे समय तक बीमारियों का कारण बना। टाइफाइड के लिए भी यही सच था। वर्तमान महामारी के बारे में जो नई बात है वह यह है कि ये एक वायुजनित रोग है। चूंकि संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल रहा है, इसलिए भय बहुत अधिक है। यह सामाजिक रूप से भी विघटनकारी है। हमारी दीर्घकालिक आशा टीकाकरण है। अब तक हमने प्रक्रिया में काफी ढील दे दी है। हम जितनी तेजी से टीकाकरण शुरू करेंगे, हमारे लिए उतना ही बेहतर होगा, क्योंकि यह भय को दूर करने का एकमात्र तरीका है।

(स्निग्धा दास से बातचीत पर आधारित। प्रणब सेन राष्ट्रीय सांख्यकीय आयोग के अध्यक्ष एवं योजना आयोग में मुख्य आर्थिक सलाहकार रह चुके हैं। वर्तमान में वह अंतरराष्ट्रीय ग्रोथ सेंटर में भारत के कंट्री निदेशक हैं)

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