कोरोना से लॉकडाउन हुआ तो कामगार खाली हाथ हो गए। जिस दिल्ली को आसरा बनाया, उसने ही बेगाना कर दिया। न छत, न रोटी। गृहस्थी को गठरी में बांध पैदल ही अपने गांवों को निकल पड़े। बरेली-शाहजहांपुर बॉर्डर पर जब भूखे-प्यासे सैकड़ों लोगों को पुलिस-प्रशासन ने रोका तो दर्द फूट पड़ा। बोले कि पुलिस हमको टाइम बम बांधकर उड़ा दे।
दिल्ली से अपने-अपने गांवों को पैदल, रिक्शा, ठेले से निकले सैकड़ों लोगों को बरेली-शाहजहांपुर के बॉर्डर पर रोक दिया गया। फतेहगंज पूर्वी में लोगों को रोकने का सिलसिला दोपहर दो बजे ही शुरू हो गया। पहले शाहजहांपुर जिले के सीमावर्ती इलाके में खेड़ा बजेड़ा, नदिया, आलमपुर, जैतीपुर गांवों की तरफ जाने वाले रास्तों पर पुलिस खड़ी हुई थी। भीड़ बढ़ी तो पुलिस भी बढ़ गई। शाहजहांपुर की एसएसपी रीता सिंह ने अपने जिले के मजदूरों को भिजवा कर अन्य जिलों के मजदूरों को सीमा में घुसने से रोक दिया। लगभग एक हजार मजदूरों को तेज धूप में सड़क किनारे बैठा दिया गया। ये मजदूर सुबह 3-4 बजे दिल्ली से निकले थे। पैदल चलते-चलते पैर थक गए थे। गला सूख चुका था। बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे। कामगारों ने बड़ी गुहार लगाई, मगर अधिकारियों ने आगे नहीं बढ़ने दिया।
सुबह तीन बजे निकले आजमगढ़ को
दिल्ली से आ रहे विजय ने बताया कि उन्हें आजमगढ़ के गांव शाहपुर जाना है। एक ही गांव के 18 लोग एक फैक्ट्री में काम करते थे। फैक्टरी बंद हुई तो दिल्ली से निकलना पड़ा। यह लोग सुबह तीन बजे रिक्शों के माध्यम से निकले थे। दिल्ली में गन्ने का रस बेचने वाले मेवालाल सीतापुर के लिए घर से निकले थे। साथ में पत्नी और बच्चे भी हैं। दर्द के मारे इनके मुंह से शब्द नहीं फूट रहे थे। मीडिया को देखकर कहने लगे- साहब बड़ी-बड़ी गाड़ियां तो निकल रही हैं, हम गरीबों का रास्ता क्यों रोक दिया है? इनमें से कुछ लोग हरियाणा और पंजाब से भी आये हुए हैं।
छह बजे जाकर पाई ठहरने की व्यवस्था
प्रदेश सरकार ने रविवार को ही आदेश जारी कर दिया था कि प्रवासी मजदूरों को रास्ते में ही शेल्टर होम बनाकर ठहराया जाएगा। शाम छह बजे फतेहगंज पूर्वी पहुंचे एसपी देहात ने कामगारों को कृषक समाज इंटर कॉलेज में ठहराया। यहां भारी भीड़ के लिए अब भोजन की व्यवस्था की जाएगी।