विश्व श्रमिक दिवस पर जानिए दुनिया में महिला श्रमिकों का क्या है हाल ?

2020 में महिलाओं पर जो संकट आया है, उसके चलते पुरुषों और महिलाओं के बीच जो असमानता की खाई है उसको भरने में लगने वाला समय 99.5 वर्षों से बढ़कर 135.6 साल हो गया है
विश्व श्रमिक दिवस पर जानिए दुनिया में महिला श्रमिकों का क्या है हाल ?
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कोरोनावायरस के चलते 2020 में महिलाओं की आय को 59,25,832 करोड़ रुपए (80,000 करोड़ डॉलर) से ज्यादा का नुकसान हुआ है। ऑक्सफेम के अनुसार यह नुकसान 98 देशों के कुल जीडीपी से भी ज्यादा है। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो पिछले साल महिलाओं की 6.4 करोड़ नौकरियां चली गई थी, जोकि पुरुषों से भी ज्यादा थी। इस वर्ष पुरुषों को 3.9 फीसदी का नुकसान हुआ था वहीं महिलाओं को होने वाला नुकसान 5 फीसदी था।

विश्लेषण के अनुसार एक तरफ जहां महिलाओं की नौकरी छिन गई थी, वही दूसरी ओर 2020 में अमेज़न को 51,85,103 करोड़ रुपए का फायदा हुआ था। वहीं इस वर्ष में अमेरिकी सरकार ने 53,44,360 करोड़ रुपए रक्षा बजट पर खर्च किए थे।

ऑक्सफैम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बूचर के अनुसार यदि नौकरियों की बात करें तो महिलाएं पहले ही कम वेतन, कम भत्तों, नौकरी की सुरक्षा जैसी समस्याओं का सामना कर रही हैं ऊपर से इस महामारी ने इस संकट को और बढ़ा दिया है। सरकारों ने भी इन पर ध्यान नहीं दिया जिसका नतीजा नौकरियों पर लगी महिलाओं की मजदूरी को हुए नुकसान के रूप में सामने आया है। इसके कारण संगठित क्षेत्र में काम पर लगी महिलाओं को 59 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की मजदूरी का नुकसान हुआ है।

हालांकि इसमें असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली करोड़ों महिलाओं की मजदूरी को हुए नुकसान को शामिल नहीं किया गया है। खेती में काम करने वाली, बाजार विक्रेता और कपड़ा उद्योग में लगी महिलाएं जिनका काम छिन गया या जिनके काम के घंटे घट गए थे वो इस विश्लेषण में शामिल नहीं थी।

बड़ी संख्या में महिलाएं खुदरा व्यापार, पर्यटन और खाद्य सेवाओं जैसे अनिश्चित क्षेत्रों में काम करती हैं जहां उन्हें कम मजदूरी मिलती है। इन क्षेत्रों पर महामारी का सबसे ज्यादा असर हुआ है। दक्षिण एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में ज्यादातर महिलाएं असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं। वहीं स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल के क्षेत्र में भी इनका योगदान 70 फीसदी का है।

महामारी से पहले भी हर दिन 1,250 करोड़ घंटे बिना वेतन के काम करती थी महिलाएं

वैश्विक स्तर पर देखें तो महामारी के समय पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नौकरी जाने और उनके काम के घंटे घटाए जाने की सम्भावना कहीं ज्यादा है। जिसका सबसे बड़ा कारण इन महिलाओं पर बढ़ती देखभाल की जिम्मेवारी है। इस महामारी के आने से पहले भी महिलाएं और लड़कियां हर दिन 1,250 करोड़ घंटे बिना वेतन के काम करती थी। जिनमें ज्यादातर काम घर की देखभाल और कृषि से जुड़े थे। यदि इसकी कीमत आंकी जाए तो यह 799,98,732 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष के बराबर है।

यह जो नुकसान पहुंचा है उसका असर आने वाले कई वर्षों तक रहेगा। अनुमान है कि इसके कारण 2021 में 4.7 करोड़ अतिरिक्त महिलाएं अत्यधिक गरीबी का सामना करने को मजबूर हो जाएंगी, जिनकी आय 140 रुपए प्रतिदिन से भी कम होगी । वर्ल्ड इकनोमिक फोरम का अनुमान है कि 2020 में महिलाओं पर यह जो संकट आया है उसके चलते पुरुष और महिला के बीच में असमानता की जो खाई है उसको भरने में लगने वाला 99.5 वर्षों का वक्त बढ़कर 135.6 साल हो गया है।

हालांकि कुछ देशों ने महिलाओं की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए हैं जिसमें बाइडन प्रशासन द्वारा बच्चों की देखभाल के लिए 3 लाख करोड़ रुपए का निवेश और अर्जेंटीना द्वारा बनाया नया कानून शामिल है। जिसके अनुसार जो महिलाएं बच्चों या विकलांगों की देखभाल भी करती हैं उनको कार्यक्षेत्र में छूट दी गई है। हालांकि केवल 11 देश ऐसे हैं जिन्होंने उन श्रमिकों के लिए काम के घंटे कम किए हैं और नियमों में ढील दी है जो देखभाल सम्बन्धी जिम्मेवारियां भी निभा रहे थे। वहीं 36 देशों ने परिवार के सदस्यों की देखभाल के लिए दिए गए अवकाश का भी भुगतान किया था।

बूचर के अनुसार जैसे-जैसे हम आर्थिक क्षेत्र में दीर्घकालिक सुधार की ओर बढ़ रहे हैं। देशों को चाहिए कि वो इस मौके का फायदा उठाएं और ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण करें जिसमें सभी के लिए समान अवसर हों। उन्हें लिंग, नस्लीय और जलवायु सम्बन्धी मुद्दों को ध्यान में रखते हुए आर्थिक सुधारों में निवेश करना चाहिए। जिसमें सार्वजनिक सेवाओं, सामाजिक सुरक्षा, निष्पक्ष कराधान को प्राथमिकता दी गई हो। साथ ही हर किसी के लिए मुफ्त वैक्सीन की भी व्यवस्था हो।

महिलाएं हमारे परिवार और समाज में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, वो समस्या के समय पड़ने वाले दबाव को आत्मसात कर लेती हैं। जिनसे समाज और परिवार कठिन समय में भी बचे रहते हैं। ऐसे में उचित और स्थायी आर्थिक सुधार वह है जिसमें महिलाओं को सशक्त किया गया हो। साथ ही उनके रोजगार और बिना वेतन के किए जा रहे देखभाल सम्बन्धी कार्यों को सही तौर पर मूल्यांकित किया जाए।

इसके लिए सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य सम्बन्धी बुनियादी ढांचे को मजबूत करना जरुरी है, क्योंकि महिलाओं के विकास के बिना इस महामारी से उबरना नामुमकिन हैं।

1 डॉलर = 74.07 रुपए

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