ऊपर दिया गया चित्र उत्तराखंड के पौड़ी जिले के रिखणीखाल स्थिति सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र (सीएचसी) का है। आवारा पशुओं का अड्डा बने इस सीएचसी पर इस विकासखंड मुख्यालय के आसपास के 79 गांव निर्भर हैं। पलायन के बावजूद फिलहाल इन गांवों में करीब 17 हजार लोग रह रहे हैं। सीएचसी में कुल 3 डॉक्टर, एक फार्मासिस्ट, दो स्टाफ नर्स और सफाई कर्मचारी नियुक्त हैं। वे भी अपनी ड्यूटी के प्रति कितने सजग हैं, अस्पताल की स्थिति देखकर पता चल रहा है। कुल मिलाकर इस सीएचसी में मामूली बुखार की दवा को छोड़कर कोई स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध नहीं है। छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज के लिए भी इस क्षेत्र के लोगों को 85 किमी दूर कोटद्वार जाना पड़ता है।
मैटरनिटी सुविधाओं की बात करें तो पूरे राज्य में हालात बदतर हैं। बदरीनाथ केदारनाथ घाटी के लोगों को मैटरनिटी सुविधा श्रीनगर आकर ही उपलब्ध हो पाती है। यहां भी हालत ये है कि प्रसव के बाद यदि बच्चे को किसी तरह की समस्या हुई तो बाल रोग विशेषज्ञ न होने के कारण देहरादून भागना पड़ता है। कुमाऊं क्षेत्र में यह सुविधा हल्द्वानी में ही उपलब्ध हो पाती है। सुदूर गांवों से श्रीनगर, देहरादून, हल्द्वानी और कोटद्वार की दूरी 300 किमी तक है। इनमें कुछ ऐसे गांव भी हैं, जिनसे मोटर मार्ग तक पहुंचने के लिए 40 से 50 किमी पैदल चलना पड़ता है।
राज्य सरकार जब भी बजट पेश करती है तो उम्मीद की जाती है कि सबसे खराब स्थिति में चल रही स्वास्थ्य सेवाओं को कुछ बेहतर मिलेगा। लेकिन, 4 मार्च को पेश किया गया राज्य सरकार का वर्ष 2020-21 का बजट बताता है कि स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने के प्रति सरकार गंभीर नहीं है। हालांकि बजट में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के बड़े-बड़े दावे किये गये हैं, लेकिन इसके लिए बजट में मात्र 2427.71 करोड़ रुपये ही आवंटित किये गये हैं, जो कुल बजट का 4.8 प्रतिशत है और पिछले वर्ष आवंटित किये गये बजट की तुलना में मात्र 0.2 प्रतिशत अधिक है।
बजट में दावा किया गया है कि राज्य में पहले 1081 डॉक्टर थे, अब यह संख्या बढ़कर 2096 हो गई है। लेकिन, राज्य के ज्यादातर जिला अस्पताल, सीएचसी, पीएचसी और हेल्थ सेंटर्स आज भी या तो बिना डॉक्टर्स के चल रहे हैं या फिर उनमें जरूरत से बहुत कम डॉक्टर हैं। अस्पतालों में फार्मासिस्ट, स्टाफ नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ की भी यही स्थिति है। किसी समय राज्य की लाइफ लाइन कही जाने वाली 108 आपातकालीन सेवा को लेकर भी दावा किया गया है कि यह सेवा बेहतर हुई है और इसमें 139 नई एंबुलेंस शामिल की गई हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि यह सेवा अब बेहद लचर हालत है और इस सेवा से लोगों का विश्वास उठ गया है।
दिसम्बर, 2018 में राज्य सरकार ने हर व्यक्ति को 5 लाख रुपये तक की मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाने के दावे के साथ अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना शुरू की थी। इस योजना के लिए पिछले बजट में 150 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, लेकिन नए बजट में इसे घटाकर 100 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
स्वतंत्र टिप्पणीकार जयसिंह रावत स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आवंटित बजट को निराशाजनक बताते हैं। वे कहते हैं कि यदि राज्य में आज सबसे खराब स्थिति वाले क्षेत्र की बात करें तो वह स्वास्थ्य क्षेत्र है। हाल के दिनों में कर्णप्रयाग, जोशीमठ और पिथौरागढ़ में स्वास्थ्य सेवाएं न होने के कारण हुई गर्भवती महिलाओं के मौत का उदाहरण देते हुए वे कहते हैं कि राज्य के सुदूर गांवों तक प्रसव संबंधी सुविधाएं उपलब्ध करवाने की जरूरत है, लेकिन बजट में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए जो प्रावधान किया गया है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि सरकार का ऐसा कोई इरादा है। पिछले कई सालों से राज्य के दुर्गम क्षेत्रों के लिए एयर एंबुलेंस की बात कही जा रही है, लेकिन बजट में इस प्रस्तावित सेवा का जिक्र तक नहीं किया गया है। सुदूर गांवों में महिला डॉक्टर और मैटरनिटी सुविधाएं उपलब्ध करवाने के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।