कहते हैं युद्ध से किसी का भला नहीं होता। ऐसा ही कुछ यूक्रेन और रूस के बीच बढ़ते टकराव में भी सामने आया है। कल अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा जारी नए विश्लेषण से पता चला है कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण शुरू होने के बाद से अब तक लगभग 48 लाख लोगों के रोजगार छिन गए हैं। यह यूक्रेन में संघर्ष से पहले कुल रोजगार का करीब 30 फीसदी है।
इतना है नहीं यूएन एजेंसी का कहना है कि अगर यह टकराव इसी तरह और अधिक बढ़ता है, तो इससे रोजगार को होने वाले नुकसान का आंकड़ा बढ़कर 70 लाख तक जा सकता है। मतलब कि इसकी वजह से करीब 43.5 फीसदी लोग बेरोजगार हो जाएंगें।
विश्लेषण में इस बात की भी सम्भावना व्यक्त की गई है कि यदि युद्ध तत्काल रोका दिया जाए तो इन परिस्थितियों से जल्द उबरा जा सकता है। यदि ऐसा हो पाता है तो अनुमान है कि इसकी मदद से 34 लाख रोजगार को फिर से बहाल किया जा सकेगा और रोजगार को होने वाली हानि को 8.9 फीसदी पर सीमित रख पाने में सफल रहेंगें।
गौरतलब है कि 24 फरवरी को शुरू हुए रूसी आक्रमण के बाद से यूक्रेन की अर्थव्यवस्था गम्भीर रूप से प्रभावित हुई है। इस दौरान करीब 52 लाख से अधिक लोगों ने पड़ोसी देशों में शरण ली है, जिनमें अधिकतर महिलाएं, बच्चे और 60 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्ग हैं।
पता चला है कि कुल शरणार्थियों में लगभग 27 लाख लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र काम करने की है। अनुमान है कि इनमें से 43 फीसदी यानी करीब 12 लाख या तो पहले काम कर रहे थे या फिर उन्हें अपने रोजगार को छोड़ शरणार्थी बनने को मजबूर होना पड़ा है।
सिर्फ यूक्रेन ही नहीं अन्य देशों में भी बढ़ सकती है बेरोजगारी
संकट की इस घड़ी में यूक्रेन सरकार हर संभव प्रयास कर रही है, जिससे राष्ट्रीय सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को जारी रखा जा सके। इसके तहत उन लोगों को भी मदद देने की कोशिश की जा रही है जो लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं।
देखा जाए तो यूक्रेन में छाए इस संकट से उसके पड़ोसी देशों मुख्य रूप से हंगरी, मोल्दोवा, पोलैण्ड, रोमानिया और स्लोवाकिया में भी रोजगार पर असर पड़ा है। आईएलओ का कहना है कि यदि टकराव की स्थिति और लम्बे समय तक जारी रहती है तो उससे यूक्रेनी शरणार्थियों को लम्बे समय के लिए दूसरे देशों में शरण लेनी होगी, जिसका असर उसके पड़ोसी देशों में रोजगार और उनकी सामाजिक सुरक्षा प्रणाली पर पड़ेगा। ऐसे में कुछ देशों में बेरोजगारी बढ़ सकती है।
युद्ध के हालात कितने बदतर हैं इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि यूक्रेन की सरकार को अपने नागरिकों से युद्ध में शामिल होने की अपील करनी पड़ी थी। विडम्बना देखिए कि यूक्रेन में जिन वैज्ञानिकों के हाथों में कभी कलम और लैब में परखनली हुआ करती थीं अब उन हाथों में घातक हथियार दिख रहे हैं।
वहीं दूसरी तरफ रूस के आर्थिक क्षेत्र और रोजगार में आए व्यवधान का असर मध्य एशिया के उन देशों में भी देखा जा सकता है, जिनकी अर्थव्यवस्था रूस पर निर्भर है। इसके चलते कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान जैसे देशों पर असर पड़ रहा है। गौरतलब है कि रूस में बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए आते हैं जोकि अपनी आय का बड़ा हिस्सा अपने देशों को भेजते हैं, लेकिन इस युद्ध के चलते इसपर असर पड़ा है।
युद्ध का असर भारत में भी कृषि उत्पादों पर पड़ा है। कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि भारत करीब 70 फीसदी सूरजमुखी तेल यूक्रेन और 20 फीसदी रूस से आयात करता था, लेकिन रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने के बाद आयात पर गंभीर असर पड़ा है।
यूएन एजेंसी ने आगाह किया है कि टकराव जारी रहने की स्थिति और रूस द्वारा लगाई पाबन्दियों से प्रवासी श्रमिकों के रोजगार पर असर हो सकता है, जिससे मध्य एशियाई देशों को आर्थिक क्षति हो सकती है। इस युद्ध का दंश वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी झेलना पड़ रहा है, इसके चलते कोविड-19 महामारी से उबरने की डगर और कठिन हो गई है।
इसकी वजह से वैश्विक स्तर पर रोजगार, आय और सामाजिक सुरक्षा पर असर पड़ने की सम्भावना है। इस युद्ध का असर दुनिया भर के कई देशों में खाद्य सुरक्षा पर भी पड़ा है, जिनमें अफ्रीका भी शामिल हैं। ऐसे में हम यही आशा करते हैं कि रूस और यूक्रेन के बीच चलता यह युद्ध जल्द से जल्द थम जाए, जिससे लोगों की जिंदगी दोबारा पटरी पर लौट आए।