गांवों में नकदी तक पहुंचा रहा है राजस्थान का यह स्वयंसेवी संगठन

स्वयंसेवी संगठन राजस्थान के विभिन्न हिस्सों में अपने-अपने स्तर पर लोगों की सहायता कर रहे हैं
राजस्थान में स्वयंसेवी संगठन श्रम सारथी के कार्यकर्ता राशन पैकेट्स तैयार करते हुए। फोटो: माधव शर्मा
राजस्थान में स्वयंसेवी संगठन श्रम सारथी के कार्यकर्ता राशन पैकेट्स तैयार करते हुए। फोटो: माधव शर्मा
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कोरोना संक्रमण के दौरान लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन में लोगों तक मदद पहुंचाने में स्वयंसेवी संगठन भी पीछे नहीं हैं। राशन के साथ-साथ कई स्वयंसेवी संगठन अलग-अलग तरीके से लोगों की मदद कर रहे हैं। लॉकडाउन में दक्षिणी राजस्थान में स्वयंसेवी संगठन श्रम सारथी उदयपुर के गोगूंदा, केलवाड़ा और सलूंबर क्षेत्र की 5 तहसीलों के 200 गांवों में 3400 राशन किट्स बांट चुका है।

संगठन की सीईओ रूपल कुलकर्णी ने डाउन-टू-अर्थ को बताया कि एक राशन किट में 6 सदस्यों के परिवारों के दो हफ्तों तक का सामान है। इसके साथ हमारा संगठन सबसे अलग काम गांवों में लोगों को कैश पहुंचाने का कर रहा है। हमने पे-नियर- बाय टेक्नोलॉजी के साथ टाई-अप किया है। इस टेक्नोलॉजी के माध्यम से हम हर रोज लगभग एक हजार लोगों तक पहुंच रहे हैं और 1500-3000 रुपए तक कैश निकलवा रहे हैं। इसका फायदा यह है कि नकदी निकालने के लिए गांवों की भीड़ बैंकों तक नहीं आ रही है। बैंकों में भीड़ भी नहीं हो रही है। इसके लिए हमने क्षेत्र के 14 बड़े रिटेलर्स को साथ लिया है।  एक दिन में 10-15 लाख रुपए तक की निकासी हो रही है।

कुलकर्णी बताती हैं कि इसके अलावा हमने फंसे हुए मजदूरों को भी नकदी पहुंचाई है। संस्था ने कैश रिलीफ संस्थान के साथ समझौता किया है। ये संस्था बिना किसी शर्त के कैश ट्रांसफर करती है। इसके जरिए हम उन लोगों तक पहुंच रहे हैं जिन तक ना तो कोई एनजीओ और ना ही सरकार की मदद पहुंच रही है। अब तक हम 374 लोगों के अकाउंट्स में कैश ट्रांसफर कर चुके हैं। प्रति वर्कर हमने लगभग 1000 रुपए ट्रांसफर किए हैं। ये सुविधा सिर्फ उन मजदूरों के लिए है जो लॉक डाउन के कारण फंस गए हैं।

श्रम सारथी संगठन के जनरल मैनेजर जुनेश थॉमस हमें बताते हैं कि इस पूरी  प्रक्रिया में हमारे 30-35 लोग काम कर रहे हैं। इसके अलावा समाज से भी लोग मदद कर रहे हैं। समाज के  इन लोगों के जरिए ही हम असली जरूरतमंद तक पहुंच पाते हैं। वे बताते हैं कि हमारी एक और संस्था बेसिक हेल्थ केयर सर्विसेज गांवों में मेडिकल इमरजेंसी में लोगों की मदद कर रही है। प्राइमरी हेल्थ केयर की सुविधाओं को गांवों तक पहुंचा रहे हैं।

ग्राविस संस्था

ग्रामीण विकास विज्ञान समिति (ग्राविस) राजस्थान के रेगिस्तानी ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठनों में से एक है। लॉक डाउन में यह संस्थान ऐसे गांवों में लोगों तक मदद पहुंचा रहा है जो बेहद दूर हैं। पश्चिमी राजस्थान में ऐसी कई गांव-ढाणियां हैं जहां सरकारी नुमाइंदे कभी नहीं पहुंच पाते हैं। संस्थान के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. प्रकाश त्यागी डाउन-टू-अर्थ को राहत अभियान के बारे में विस्तार से बताते हैं। वे कहते हैं, ‘ग्राविस तीन स्तर पर मदद पहुंचाने की कोशिश कर रहा है. रेगिस्तान के रिमोट एरिया में हने 25-30 गांवों के करीब 750 परिवारों को खाने की सामग्री पहुंचाई है।

इसके अलावा फूड हाइजीन के लिए सूप भी बांटा जा रहा है। ये जोधपुर, बाड़मेर और जैसलमेर के वे गांव हैं जहां अब तक किसी भी तरह की मदद नहीं नहीं पहुंची है। अगले एक हफ्ते में हमारी 100 गांवों के 3 हजार परिवारों में पहुंचने की योजना है।’ संस्थान का जोधपुर ग्रामीण में एक अस्पताल हैं, जिसे 24 घंटे सातों दिन के लिए खोला गया है। कोरोना संक्रमण के लिए ग्राविस जागरूकता अभियान भी चला रहा है। डब्ल्यूएचओ की गाइड लाइंस का हिंदी और अन्य साधारण भाषाओं में अनुवाद कराया। पेंपलेट छपवाकर करीब 10 हजार लोगों में ये पेंपलेट बंटवाए गए हैं।

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