लॉकडाउन से बिगड़े हालात तो मास्क सिल कर चला रही हैं घर का खर्च

महिलाओं का कहना है कि सितंबर में मास्क बना कर घर खर्च लायक पैसा मिल गया, लेकिन आगे क्या होगा?
झारखंड के रांची शहर में मास्क सिल कर घर का खर्च चला रही हैं महिलाएं। फोटो: मो. असगर खान
झारखंड के रांची शहर में मास्क सिल कर घर का खर्च चला रही हैं महिलाएं। फोटो: मो. असगर खान
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27 साल की जसीमा खातून रांची के कांटाटोली स्थित मन्नान चौक में रहती हैं। कोरोनावायरस संक्रमण के कारण लगे दूसरे लॉकडाउन के बाद से उनके लिए एक कमरे का किराया दे पाना भी मुश्किल हो रहा था। वो कहती हैं, “पहला लॉकडाउन तो झेल लिया, लेकिन दूसरे वाले ने तो भुखमरी के हालात पैदा कर दिए। बच्चों की पढ़ाई छुड़वा दी। हमारे शौहर का काम कभी-कभी होता है तो अब बच्चों को पढ़ाएं या खिलाएं, या घर का किराया दें।”

लेकिन बीते सितंबर में जसीमा ने घर का सारा काम करते हुए 20 दिनों में एक हजार से भी अधिक कपड़े के मास्क बनाए, जिसके बदले में उन्हें 6000 रुपए मिले हैं। इससे उनमें अब काम की ललक बढ़ गई है और वो चाहती हैं कि अगर इस तरह काम उन्हें हर महीने मिल जाए तो वो अपने तीनों बच्चों को फिर से पढ़ाना शुरू कर देंगी। 

जसीमा के पति इरशाद घर-पोताई का काम करते हैं, जो कोरोना की दूसरी लहर के बाद से ठप पड़ा है। वहीं पैसों की जरूरत के आगे 12 साल का उनका सबसे बड़ा बेटा फैसल काम करने लगा है. जबकि दस साल का जीशान और 9 साल की आलिया को पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

मन्नान चौक की ही रहने वाली 38 साल की फिरदौसी अनवर भी किराए के घर में रहती हैं। उनके शौहर 60 वर्षीय खलील अहमद बीते छह साल से बीमारी के कारण बिस्तर पर हैं। दो बेटी और एक बेटा है, जिनकी उम्र 13, 12 व 11 वर्ष है। फिरदौसी अनवर कहती हैं, “माली तंगी तो कई साल  से है, लेकिन लॉकडाउन के बाद से ये बहुत ज्यादा बढ़ गई है। सितंबर में मास्क बनाने का काम मिला था, जिससे काफी मदद मिली, लेकिन क्या हर बार ऐसी मदद मिल पाएगी, बोलिए.” फिरदौसी ने 22 दिनों में 1400 मास्क बनाए, जिससे उन्हें घर बैठे 7000 हजार रुपया मिला।

इसी मोहल्ले से सटे मौलाना आजाद कॉलोनी में 40 साल की नजरून निशा नाले से लगे अपने 10 बाई 12 के एक कमरे में तीन बच्चों संग रहती हैं। पति मजदूरी, तो कभी बजार हाट में दूसरों का बैल, बकरी पहुंचाया करते हैं, लेकिन इस दूसरे लॉकडाउन के बाद से फिलहाल उनका काम मंदा पड़ा है। वह कहती हैं, “लॉकडाउन ने हमलोगों की हालत को बदतर बना दिया। राशन तक नहीं जुटा पा रहे हैं। हमारे तीन बच्चे हैं, जिनमें दो के दो-दो सौ रुपए हर महीने फीस देनी होती है। 15 साल की बड़ी वाली बेटी के हर साल तीन हजार रुपए फीस भरनी है।”

राहत की बात यह है कि नजरून निशा को भी घर बैठे मास्क बनाने का काम मिला। वो कहती हैं कि उन्होंने सितंबर में 20 दिनों के भीतर लगभग हजार मास्क बनाए। इससे जो 5000 रुपए मिला उससे बच्चों का बकाया फीस चुकाई। उनके मुताबिक ऐसा काम मिलता रहे तो इन्हें बहुत मदद मिलेगी। 

इसी तरह रांची के कांटा-टोली स्थित गली, मोहल्ले में रहने वाली 21 साल की अख्तरी, 47 साल की राबिया खातून, 30 साल की अर्शी, 35 साल की तबस्सुम, 25 साल की हिना, 30 साल की शाहिना खातून समेत 53  मुस्लिम महिलाओं ने सितंबर माह में 20-25 दिन के अंदर लगभग 50 हजार मास्क बना दिए। इसके बदले उन्हें 5 से 10 हजार रुपए तक मिलें, जिनसे रोजमर्रा की जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने में काफी मदद मिली।

इन्हें मास्क बनाने का काम देने वाली रांची स्थित गैर-सरकारी संगठन बिंदाराई इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च स्टडी एंड एक्शन (बिरसा) की फरजाना फारूकी ने बताया, “ये सभी मुस्लिम महिलाए हैं, जो पसमांदा और काफी गरीब परिवार से आती हैं। इनमें से अधितकर के पति रेजा-कुली, ठेला चालक, घर पोताई का काम करते हैं।

दूसरे लॉकडाउन के दौरान राशन वितरण के समय हमलोग इनकी आर्थिक बदहाली को जान पाएं। इसीलिए जो महिलाएं थोड़ा बहुत सिलाई जानती थीं, उन्हें सितंबर महीने में मास्क बनाने के लिए सारे सामान दिया गया। जिसको इन्होंने 25 दिनों के अंदर तैयार कर दिया। बिरसा इन मास्क को झारखंड के विभिन्न गांवों में आदिवासी-दलितों के बीच निःशुल्क बांटेगा।”

गौर करने वाली बात यह है कि ये सभी गृहणी महिलाए हैं, जिन्होंने घर का काम करते हुए मास्क बनाया है. साथ ही साथ किसी काम के बदले इन्हें मिलने वाली राशि में ये सबसे अधिक है। 

आने वाले दिनों में बिरसा इन पसमांदा मुस्लिम महिलाओं को निःशुल्क सिलाई ट्रेनिंग देने की योजना बना रहा है. ताकि वे इस तरह का कार्य भविष्य में पेशेवर ढंग से कर सकें।

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