पीलीभीत की प्रसिद्ध बांसुरी की धुन पर कोरोना का लॉकडाउन

लॉकडाउन की वजह से उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले की प्रसिद्ध बांसुरी कारोबार से जुड़े लोग भी रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहे हैं
पीलीभीत में बासुंरी बजाने वाले कारीगर बेसब्री से लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं। फोटो: रणविजय सिंह
पीलीभीत में बासुंरी बजाने वाले कारीगर बेसब्री से लॉकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे हैं। फोटो: रणविजय सिंह
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"लॉकडाउन ने धंधा पूरी तरह खराब कर दिया है। मैं रोज हजार पीस बांसुरी बनाता था तो दिन का 300 से 400 रुपए कमा लेता था, अब कमाई नहीं हो पा रही। मैंने अब तक मालिक से 5,000 रुपए उधार भी ले लिए हैं। पेट पालने के लिए कुछ न कुछ तो करना होगा।''

मोहम्मद रेहान (25)बांसुरी बनाने का काम करते हैं। रेहान के परिवार में पांच लोग हैं, जिनकी जिम्मेदारी उन पर ही है। फिलहाल लॉकडाउन की वजह से उनका काम ठप पड़ा हुआ है जिस कारण उनकी रोज की आमदनी नहीं हो पा रही।

रेहान की तरह उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले की प्रसिद्ध बांसुरी कारोबार से जुड़े ज्यादातर लोग रोजी-रोटी के संकट से जूझ रहे हैं। पीलीभीत के लाल रोड, बुजकसवान और बेनी चौधरी इलाके में करीब 150 परिवार बांसुरी बनाने का काम करते हैं। इनकी बनाई बांसुरी देश के कोने-कोने और विदेशों तक जाती है।

बांसुरी कारोबार से जुड़े मोहम्मद कमर (30) बताते हैं, ''मेरी फर्म में बनी बांसुरी मुम्बई, दिल्ली, पुणे और नासिक तक जाती है। इसके अलावा लोकल मार्केट में भी थोक में सामान जाता था, लेकिन अब तो पूरी तरह से सेल बंद है। हमारा कारोबार तब तक नहीं चलेगा जब तक बाजार नहीं खुलेंगे। फिलहाल तो मैं अपने स्टॉक में से बांसुरी तैयार करा रहा हूं, ताकि बांसुरी बनाने वाले कारीगर कुछ कमाते रहें, लेकिन यह लंबे वक्त तक नहीं चल सकता।''

मोहम्मद कमर की तरह ही कई कारोबारी अपने स्टॉक से बांसुरी तैयार करा रहे हैं, लेकिन यह काम भी आम दिनों से आधा रह गया है। पहले अगर एक कारीगर को दिन में हजार बांसुरी बनाने का काम मिलता था तो अब उसे 200 से 300 बांसुरी का काम ही मिल रहा है। यह काम भी सबको नहीं मिल रहा, कुछ कारोबारी हैं जो अपने स्तर पर कारीगरों को काम दे रहे हैं ताकि उनकी रोजी रोटी चलती रहे।

बांसुरी बनाने वाले रईस अहमद (27) के लिए भी लॉकडाउन तमाम दिक्कतें लेकर आया है। रईस बताते हैं, "हम रोज कमाने खाने वाले लोग हैं। बांसुरी बनाने का काम होता था तो दिन के 300 से 400 रुपये बन जाते थे। अब काम ही नहीं है। मैंने कई दिन अलग-अलग मालिकों से काम मांगा, लेकिन काम ही नहीं मिला। अब घर में रखे पैसे भी खत्म हो चुके हैं, जैसे-तैसे उधार से काम चल रहा है।"

रईस की तरह ही घरों में बांसुरी बनाने का काम करने वाले बहुत से लोग हैं जिनके पास अब काम नहीं है, जब काम नहीं है तो कमाई भी ठप हो चुकी है। इस हाल में इनके सामने अपना परिवार चलाने से लेकर खुद का पेट पालने तक की चुनौतियां खड़ी हो रही हैं।

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