प्रवासियों की अदालत का फैसला, रोजगार के साधन बढ़ाए सरकार

प्रवासियों की समस्याओं के निदान के लिए छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक अनोखे कार्यक्रम का आयोजन किया गया
छत्तीसगढ़ के रायपुर में जनता की अदालत का आयोजन किया गया। फोटो: अवधेश मलिक
छत्तीसगढ़ के रायपुर में जनता की अदालत का आयोजन किया गया। फोटो: अवधेश मलिक
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कोरोना महामारी के दौरान लॉकडाउन के समय लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूर अलग-अलग राज्यों में अपने घर-गांव पहुंचे, लेकिन उसके बाद क्या हुआ? क्या उनके हालात में बदलाव आए, अगर नहीं तो इसके लिए सरकार कितनी दोषी है। यह जानने के लिए बीते सप्ताह छत्तीसगढ़ की राजधान रायपुर के बैरन बाजार स्थित पॉस्टोरल हाउस में एक 'अदालत' लगी, जो चार दिन तक चली। इस अदालत की ज्यूरी 17 प्रवासी श्रमिक थे, जो राज्य के लगभग 2 लाख प्रवासियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। चौथे दिन इस ज्यूरी ने जनता का फैसला सुनाया। 

दरअसल, यह एक कार्यक्रम था, जिसे जनता का फैसला का नाम दिया गया था। इसका आयोजन चौपाल, नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया और सॉक्रेटस नामक संस्थाओं के द्वारा आयोजित किया गया। प्रवासी मजदूरों के ज्यूरी के सामने छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्री, अधिकारी, केंद्र सरकार के प्रवासी मजदूरों के लिए नीति बना रहे सदस्य, उद्योग जगत के प्रतिनिधि एवं सिविल सोसायटी के सदस्यों ने बेबाकी से अपनी राय रखी और प्रवासी मजदूरों के समस्या का निदान करने हेतु कारगर उपायों के बारें में चर्चा की। 

इनके नाम इस प्रकार से रहें - मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सलाहकार प्रदीप शर्मा, छत्तीसगढ़ के लेबर कमिश्नर एलेक्स पॉल मेनन, उमी डेनियल (एड एट एक्शन) , पार्था मुखोपाध्या (सीपीआर), आशीष कोठारी (कल्पवृक्ष), इंदु नेताम (आदिवासी समता मंच), नीति आयोग प्रवासी श्रमिक नीति निर्माण वर्किंग कमेटी के सदस्य राजीव खंडेलवाल, प्रदीप भार्गव पूर्व अध्यक्ष, सीआईआई वेस्टर्न रिजन, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री अमरजीत भगत जी और स्वास्थ्य और पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टीएस सिंह देव, डॉ. योगेश जैन (जन स्वास्थ्य सहयोग), एसएचआरसी के डायरेक्टर समीर गर्ग, अंबेडकर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर दीपा सिन्हा, रूबेन मासकरहानस (खाना चाहिए फाउंडेशन), राजेश उपाध्याय (जन साहस) मोहन भाई (मेंढ़ा लेखा), अमिताभ बेहार (ऑक्सफैम इंडिया), वेद आर्या (आरसीआरसी), मुख्यमंत्री के सलाहकार राजेश तिवारी, निखिल डे (एम के एसएस), रमेश शर्मा (एकता परिषद) , अंजली भारद्वाज (एस एन एस), मंजीत कौर बल ( समर्थ) , श्रीधरण (डीवाईएफ),पीवी श्रीविद्या (द हिंदू) रौनक परवीन (स्वान), इंदु नेताम तथा पं. रविशंकर शुक्ला यूनिवर्सिटी के प्रो. आर के ब्रम्हें, नमिता मिश्रा (एफईएस) आदि ने भी अपनी बातें रखी ।

प्रवासी मजदूरों के ज्यूरी ने फैसला लेने से पहले विभिन्न कानूनों, योजनाओं, अधिकारों और संभावनाओं के बारे में सीखा तथा उस पर गहराई एवं सामूहिक रूप से विचार-विमर्श कर 'ज्यूरी के दोस्तों' की मदद से स्थिति को समझने की कोशिश की। प्रवासी मजदूरों को परिभाषित भी किया गया। ज्यूरी ने पाया कि प्रवासी दो तरह के होते है एक जो स्वेच्छा से पलायन करते है एवं दूसरे जो दुर्गति के कारण पलायन करते हैं। ज्यूरी का मत था कि वे सभी लोग छत्तीसगढ़ मे ही रहना चाहते है और पलायन नहीं करना चाहते हैं। दुर्गति से होने वाले पलायन को रोकने के लिए सरकार को छत्तीसगढ़ मे रोजगार बढ़ाना चाहिए एवं राज्य के प्राकृतिक संसाधनों - जल, जंगल और जमीन पर स्थानीय लोगों को अधिकार देना चाहिए इसके साथ ही सभी को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करानी चाहिए।

ज्यूरी के फैसले की  प्रति मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को दी गई। मुख्यमंत्री बघेल ने फैसले को सकारात्मक कदम बताया और राज्य में प्रवासी श्रमिकों के हितों के लिए किए जा रहे प्रयासों के संबंध में ज्यूरी को अवगत कराया। और कहा कि राज्य सरकार चाहती है मजदूरों का पलायन रुके। 

 ज्यूरी के फैसले के महत्वपूर्ण बिंदु रहे -

  1.  भूमिहीन प्रवासी मजदूरों के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान मिलना चाहिए।
  2. वन उपज में और तेंदू, बांस, महुआ जैसे उद्योगों का प्रोत्साहन करना चाहिए और हमें उसमे शामिल करना चाहिए ताकि हमें काम करने के लिए बाहर न जाना पड़े।
  3. मनरेगा के तहत सभी को 150 से बढ़ाकर 200 दिन का रोजगार मिलना चाहिए ताकि पलायन कम हो।
  4. सामुदायिक वन अधिकार पट्टे सभी वनग्राम को मिलना चाहिए।
  5. राज्य के प्राकृतिक संसाधनों - जल, जंगल और जमीन पर स्थानीय लोगों को अधिकार होना चाहिए।
  6. मृत्यु मुआवजा: सभी प्रवासी मजदूरों की जीवन बीमा होनी चाहिए।
  7. संगठन: ज्यूरी ने कहा हमने महसूस किया है कि मजदूरों को सामूहिक रूप से काम करने की जरूरत है जिसके लिए प्रवासी श्रमिकों को संगठित होना है। प्रवासी मजदूर के संगठन को सरकार से मान्यता मिलनी चाहिए और संगठन की आवाज को सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए।
  8. अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम का कार्यान्वयन होना चाहिए जहां श्रमिकों के लिए पंजीकरण है, और ठेकेदारों और एजेंटों के लिए लाइसेंस लेना जरूरी है।
  9.  प्राथमिक नियोक्ता को न्यूनतम मजदूरी के अलावा, प्रवासी श्रमिकों को मिलने वाले सभी सुविधाओं एवं लाभों को मुहैया कराने के लिए जिम्मेदारी और जवाबदेही होनी चाहिए।
  10. कार्य स्थल पर नि:शुल्क आवास की व्यवस्था नियोक्ता द्वारा की जानी चाहिए। महिला प्रवासी श्रमिकों के लिए गंतव्य (कार्यस्थल) राज्यों में कामकाजी महिला हॉस्टल स्थापित किए जाने चाहिए। बच्चों के लिए क्रेच/झूलाघर नियोक्ता द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए।
  11. आंगनबाड़ी में पंजीकरण की पोर्टेबिलिटी होनी चाहिए। जिसमें आंगनबाड़ी की व्यवस्था, मातृत्व लाभ, स्वास्थ्य बीमा लाभ मिलनी चाहिए।
  12. कोई भी बच्चे जो स्कूल जाने की उम्र के हैं, उनको हॉस्टल में दखिला करने की व्यवस्था हो ताकी उनकी पढाई जारी रहे और हमें कहीं भटकना न पड़े जिससे आगे जाकर बच्चे हमारे जैसे मजदूर ना बने। बच्चे यदि प्रवासी मजदूरों के साथ गंतव्य राज्य पर जा रहे हो तो वहाँ मातृभाषा में पढाई की व्यवस्था होनी चाहिए।
  13. जब प्रवासी मजदूर पलायन कर जाते हैं तो मनरेगा जॉब कार्ड निष्क्रिय हो जाते हैं। प्रवासी मजदूरों के नाम का जॉब कार्ड निष्क्रिय नहीं होना चाहिए।
  14. प्रवासी मजदूरों हेतु  एक केंद्रीकृत हेल्पलाइन नंबर होना चाहिए।
  15. मतदान के अधिकार के संवैधानिक अधिकारों के लिए मालिक को प्रवासी श्रमिकों को छुट्टी देने का अनिवार्य प्रावधान होना चाहिए। सरकार को सारे प्रवासी मजदूरों के लिए पोस्टल बैलेट प्रबंध करने के लिए चिंतन करना चाहिए।

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