बैठे ठाले: ककहरा

बैठे ठाले: ककहरा

पूरा फ्रिज खाली पड़ा था। वहां पर न जूस की बोतल थी और न ही दूध का बर्तन था। सब्जी, ब्रेड जैम, मक्खन-पनीर कुछ भी नहीं था
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स्मार्ट सोफे पर बैठते हुए स्मार्ट वॉच पर अपने स्टेप्स को काउंट करने के बाद उन्हें संतोष मिला कि आज उन्होंने सुबह के दस हजार स्टेप्स पूरे कर लिए थे। सामने स्मार्ट टेबल पर बच्चे के ककहरा की किताब पड़ी थी। उन्होंने बस यूं ही पन्ने उलटने शुरू कर दिए। बचपन की यादें! “क” से कमल, “ख” से खरगोश, “ग” से गिलास…। उन्होंने अपने आप से कहा, “अरे क्या आज भी वही कमल और खरगोश! आज हाई-टेक का जमाना है। अब पढ़ना चाहिए “ए” से एआई, “ड” से डेटा…।”

अचानक स्मार्ट वॉच के अलार्म ने उन्हें बताया कि उनके जूस पीने का वक्त हो गया है। जूस की बोतल निकालने के लिए उन्होंने अपने फ्रिज का दरवाजा खोला तो अंदर केवल पानी की कुछ बोतलें और बर्फ के ट्रे में कुछ बर्फ के टुकड़े पड़े थे। पूरा फ्रिज खाली पड़ा था। वहां पर न जूस की बोतल थी और न ही दूध का बर्तन था। सब्जी, ब्रेड जैम, मक्खन-पनीर कुछ भी नहीं था।

उन्होंने अपने स्मार्ट किचन की ओर कदम बढ़ाया पर यहां भी अलमारियां एकदम खाली थीं। दाल-चावल-आटा-मैदा-घी-सूजी-बेसन-मसाले-तेल कुछ भी नहीं था वहां पर। घर में खाने को कुछ भी नहीं है और उन्हें भूख लगी है।

“यह क्या मजाक चल रहा है!” उन्हें अब गुस्सा आ रहा था। आखिरकार उन्होंने अपने पड़ोसी के दरवाजे को खटखटाया जिसके साथ इस मल्टीस्टोरी में बरसों रहते हुए भी उनका नाम भी नहीं जानते थे।

“मेरे घर से खाने की चीजें अचानक गायब हो गईं हैं “उन्होंने खिसियानी हंसी हंसते हुए कहा, “क्या आप कुछ…...”

उनकी बात खत्म होने से पहले ही पड़ोसी ने कहा, “आजकल जब खाने की इतनी किल्लत है आपको पहले से इसकी व्यवस्था करनी चाहिए थी।”

“खाने की किल्लत। पहले से व्यवस्था। आप कहना क्या चाहते हैं?” उन्होंने झुंझलाते हुए कहा।

“किसान अब रहे नहीं जो हमारे लिए खाना-तेल-दूध-मसाले वगैरह उगाते, वह भी क्या दिन थे जब किसान होते थे, गांव और खेत होते थे, जब हमारी रसोई अनाज-तेल-मसालों से भरी रहती थीं” पड़ोसी किसी पुरानी याद में खो चुका था।

“किसानों को क्या हुआ? खेत-गांव कहां गए?” उन्होंने पूछा।

“उन्होंने प्रोफेशन स्विच ओवर कर लिया है। ज्यादातर किसान शहरों में मजदूर बन गए हैं। जब खेत ही नहीं होंगे, जब उनके पास जमीनें ही नहीं होंगी तब किसान आखिर कहां खेती करेंगे?”

“क्या मतलब? किसानों की जमीने कहां चली गईं?” उन्होंने पूछा।

“गावों की जमीन और किसानों के खेतों पर मॉल बन गए। हाउसिंग सोसाइटीस-क्लब और रिसोर्ट बन गए हैं। बीस-बीस, चालीस-चालीस लेन के हाईवे बन गए हैं। हमारी अपनी यह मेगा सिटी भी तो खेती की जमीन पर बनी है। किसान नहीं रहेंगे, खेत नहीं रहेंगे तो खाने को लेकर मारामारी तो मचेगी ही...अरे हां, माफ कीजिएगा पर मैं आपको कोई मदद नहीं कर सकता क्योंकि खुद मेरे पास बहुत कम खाना बचा है” इतना कहते हुए पड़ोसी ने दरवाजा बंद कर दिया।

भूख से बदहाल वह लड़खड़ाते कदमों से अपने फ्लैट में वापस आए और धड़ाम से सोफे पर गिर गए। इसके बाद उन्हें कुछ याद नहीं है। स्मार्ट फोन की अवाज से उनकी नींद खुली। उन्हें बहुत भूख लगी थी। उन्होंने पानी पीने के लिए फ्रिज खोला, पर फ्रिज तो पूरा पहले जैसा भरा हुआ था। उन्हें अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ। उन्होंने कांपते हाथों से जूस की एक बोतल को उठाया और एकबार में पूरा पी गए।

“शायद मैं कोई बहुत ही बुरा सपना देख रहा था” सोचते हुए उनकी नजर पास पड़े अपने बच्चे की किताब पर पड़ी। उन्होंने उसे उठाया और जोर-जोर से पढ़ने लगे, “क” से किसान, “ख” से खाना, “ग” से गेहूं, “घ” से घास, “च” से चावल …”ब” से बारिश, “न” से नदी, “ज” से जल-जंगल-जमीन... …

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