आर्थिक सर्वेक्षण ने कहा, “हे राजन्! महंगाई, बेरोजगारी और गरीबी अति प्रबल हो चुकी है। जुमलों के अनर्गल प्रलाप से इनकी शक्तियां तेजी से बढ़ती ही जा रही हैं, अगर यही हाल रहा तो जनता जनार्दन के श्राप से आने वाले चुनावों में आपका सिंहासन उलट सकता है। इस स्थिति के निवारण का उपाय केवल अर्थ-मंत्रालय के पास ही है।
अर्थ-मंत्रालय के सुझाव पर समुद्र मंथन के प्लान पर काम तेजी से शुरू हो गया। मन्दराचल पर्वत रूपी अर्थ-मंत्रालय भवन को मथनी तथा वासुकी नाग रूपी एनएनएसओ डेटा को नेती बनाया गया।
समुद्र मंथन से सबसे पहले इनकम-टैक्स का हलाहल विष निकला। उस विष की ज्वाला से लोग जलने लगे। तब सभी ने मिलकर सैलरीड मिडिल-क्लास से प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना पर सैलरीड मिडिल-क्लास उसे पी गया। यहां एक समस्या आ गई। अपनी घटती इनकम के चलते न तो सैलरीड मिडिल-क्लास से इनकम-टैक्स नामी विष निगला गया और न ही किसी देश-निर्माण के सरकारी फरेब के चलते वह उसे उगल सका। विष मिडिल क्लास के गले में अटक गया।
एक बार फिर से समुद्र मंथन प्रारम्भ हुआ। दूसरा रत्न कामधेनु गाय थी जिसे कार्पोरेट सेक्टर ने रख लिया। इससे धन्ना सेठों को हजारों-करोड़ों की कर छूट मिलने लगी, उनके द्वारा सरकारी बैंकों से लिए हजारों-लाखों करोड़ के ऋण भी माफ हो गए। फिर उच्चैः श्रवा घोड़ा निकला। उसके बाद ऐरावत हाथी निकला, जाहिर है जिसे देवराज ने ग्रहण किया। कहते हैं उस सफेद हाथी को पालने में आने वाले दिनों में देश की जनता कंगाल हो गई।
वह समाजवादी दिन थे। आम जनता ने धन्वन्तरि के हाथ से इस घट को छीन लिया। कार्पोरेट सेक्टर और धन्ना सेठों के पास इतनी राजनैतिक शक्ति नहीं थी कि वह जनता से लड़ सके इसलिए वे निराश खड़े देखते रहे। उनकी निराशा को देखकर कालांतर में मीडिया ने मोहिनी रूप धारण कर लिया जिसके रूप और यौवन को देखकर टैक्स-पेयर जनता से लेकर टैक्स-चोर अमीर दोनों हक्के-बक्के रह गए।
किसी ने कहा, “हे सुन्दरी! तुम कौन हो? आओ शुभगे! तुम्हारा स्वागत है। हमें अपने सुन्दर कर कमलों से अमृतपान कराओ।”
इस पर विश्वमोहिनी मीडिया ने कहा, “अच्छे बच्चों की तरह आप सब मिलकर अमृतपान कर लो।”
भोलीभाली जनता मीडिया के धोखे में आ गई। वे बोले, “सुन्दरी! हमें तुम पर पूर्ण विश्वास है। तुम जिस प्रकार बांटोगी, हम उसी प्रकार अमृतपान कर लेंगे। तुम ये घट ले लो और हम सभी में अमृत वितरण करो।”
विश्वमोहिनी मीडिया ने धन्ना-सेठों और कार्पोरेट सेक्टर को एक पंक्ति में बिठाया और जनता को दूसरी पंक्ति में। उसके बाद मीडिया आम जनता को कभी मंदिर-मस्जिद में उलझाती तो कभी नेहरू-पटेल-जिन्ना-पाकिस्तान पर। आम जनता इन बेवजह के विषयों पर आपस में लड़ती, उधर दूसरी ओर उसने सारा फंड कार्पोरेट सेक्टर के धन्ना-सेठों में बांट दिया।
मीडिया की इस चाल को विपक्ष ने समझ लिया और वह कार्पोरेट ड्रेस पहनकर उनकी पंक्ति में जा बैठा। जब अमृत उसके कंठ में पहुंच गया तब किसी ने कहा कि यह तो विपक्ष है।
तुरंत विपक्ष के सिर को उसके धड़ से अलग कर दिया गया। अमृत के प्रभाव से विपक्ष पूरी तरह खत्म नहीं हुआ। आज भी चुनाव नामक ग्रहण के वक्त यह जनता को भड़काता रहता है।
मीडिया आज भी जनता को उनके असली मुद्दों से भटका रही है। अमृत पान करने से अमीर और अमीर होते जा रहे हैं। आम जनता अब अपने रोजगार- शिक्षा-स्वास्थ्य-मकान आदि की बात नहीं करती। देवराज की कुर्सी अब सुरक्षित है।