नए साल की शुरुआती सप्ताह में नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य की प्रगति रिपोर्ट जारी की है। इससे पता चलता है कि भारत अभी गरीबी को दूर करने का लक्ष्य हासिल करने में काफी दूर है। भारत आखिर गरीब क्यों है, डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है। इसकी पहली कड़ी में आपने पढ़ा, गरीबी दूर करने के अपने लक्ष्य से पिछड़ रहे हैं 22 राज्य । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, नई पीढ़ी को धर्म-जाति के साथ उत्तराधिकार में मिल रही है गरीबी । पढ़ें, तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के बीच रहने वाले ही गरीब । चौथी कड़ी में आपने पढ़ा घोर गरीबी से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं लोग । पांचवी कड़ी में पढ़ें वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की वार्षिक बैठक शुरू होने से पहले ऑक्सफैम द्वारा भारत के संदर्भ में जारी रिपोर्ट में भारत की गरीबी पर क्या कहा गया है? पढ़ें, छठी कड़ी में आपने पढ़ा, राष्ट्रीय औसत आमदनी तक पहुंचने में गरीबों की 7 पुश्तें खप जाएंगी । इन रिपोर्ट्स के बाद कुछ गरीब जिलों की जमीनी पड़ताल-
दो वर्ष पहले यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम और ओपीएचआई की वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक- 2018 की रिपोर्ट में सबसे गरीब जिला की श्रेणी में मध्यप्रदेश के अलीराजपुर का नाम सबसे नीचे आया। यहां की कुल आबादी में से 76.5 प्रतिशत लोगों को गरीब बताया गया। इस रिपोर्ट के बाद देश का ध्यान इस जिले की बदहाली की तरफ गया। हालांकि, दो साल बाद भी जिले की हालत में कोई सुधार नहीं दिख रहा है और यह बद से बदतर होने की तरफ अग्रसर है। जिले में आर्थिक विपन्नता होने की वजह से शिक्षा यहां के लोग स्वास्थ्य, पोषण और रोजगार हर मामले में काफी पीछे हैं। डाउन टू अर्थ की इस सीरीज में जानते हैं क्यों गरीबी की चपेट से नहीं उबर पा रहा अलीराजपुर।
अलीराजपुर जिला पश्चिमी मध्य प्रदेश में स्थित है। इस जिले की सीमाएं गुजरात व महाराष्ट्र राज्य की सीमाओं को छूती हैं। अलीराजपुर जिले में प्राथमिक रूप से भील, भीलाला, बारेला, मानकर, धाणक व कोटवाल जनजाति के लोगों की बहुलता है। यहां 87 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 4 प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं 9 प्रतिशत अन्य जाति के लोग रहते हैं। रोजगार का एकमात्र साधन खेती और जंगल पर निर्भरता है। हालांकि, आजीविका का संकट यहीं से शुरू होता है। कभी प्राकृतिक सम्पदाओं से भरा पूरा यह पूरा इलाका अब सूखी नदियों, खत्म होते जंगल की वजह से गरीब होता जा रहा है।
कम हो रहा घना जंगल, जंगलों से नहीं मिल रहा रोजगार
जिले में घने जंगल का क्षेत्र तेजी से कम होता जा रहा है। 2019 के वन क्षेत्र सर्वे में 211 घने जंगल पाए गए जो कि 2017 के सर्वे में 212 थे। इस वक्त जिले में हरियाली का प्रतिशत 21.51 है। वन खत्म होने की वजह से जिले का भूजल काफी नीचे जा रहा है और गर्मियों में यहां पानी की भीषण कमी होने की वजह से लोग पलायन करने को मजबूर होते हैं। मौसम में बदलाव की वजह से जिले में सामान्य से दोगुना अधिक बारिश हुई जिससे फसलों को काफी नुकसान हुआ। आदिवासियों को वन अधिकार कानून के तहत जंगल पर अधिकार देने के मामले में भी सरकार काफी पीछे रही है।
अलीराजपुर जिले में वन अधिकार कानून के तहत 11,475 दावे आए जिनमें से 3,634 दावों को निरस्त कर दिया गया। सामुदायिक वन अधिकार के दावे जो कि वन उपज इकट्ठा करने के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है, के मामले में जिले में 261 दावों में से 175 दावों को अमान्य कर दिया गया। इस वजह से कई इलाकों में आदिवासी वन उपज इकट्ठा करने से वंचित रह गए हैं। अलीराजपुर के जंगलों में आंवला और महुआ और बांस पाया जाता है। खनिज में मुरुम, रेत और पत्थर के खदान जिले में उपलब्ध हैं। यहां डोलोमाइट के पत्थर बड़ी मात्रा में हैं, और इसे पीसने के कारखाने भी मौजूद हैं। इस खदानों से इलाके के लोगों को रोज़गार कम फ्लोरोसिस और सिलिकोसिस जैसी बीमारियां अधिक मिल रही हैं।
भयंकर बेरोजगारी से बढ़ रहा पलायन, मनरेगा भी नाकाफी
जिले में रोजगार का भयंकर अभाव है और लोगों की आखिरी उम्मीद महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) भी पलायन रोकने में असफल है। इस इलाके के ग्रामीण बड़ौदा, अहमदाबाद, राजकोट, सूरत, मोरवी सहित महाराष्ट्र और राजस्थान के बड़े शहरों में मजदूरी की तलाश में जाते हैं। इसकी बड़ी वजह है कम मेहनताना और समय पर भुगतान न होना। मध्यप्रदेश में कुछ दिनों पहले मनरेगा में मजदूरों 174 रुपये से बढ़ाकर 176 की गई, फिर भी राज्य इस मामले में देश के सबसे कम मजदूरी देने वाला राज्य है।
अलीराजपुर जिले में वर्ष 2019-20 के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस वर्ष कुल 1,55,073 लोगों ने रोजगार की मांग की, जिसमें से 1,09,201 लोगों को ही 26,21,351 दिन का रोजगार प्रदान किया गया। परिवार के मुताबिक इस आंकड़े को देखें तो 71,697 परिवार में से 55,869 परिवार के किसी न किसी सदस्य को रोजगार मिला। सिर्फ 1,115 परिवार को ही इस साल 100 दिन तक का रोजगार मिल पाया है। अलीराजपुर जिले में 3,34,506 मजदूरों ने मनरेगा में पंजीयन करवाया है। अधिकतर मजदूर पलायान कर रहे हैं क्योंकि गुजरात में मजदूरों को 500 रुपए प्रतिदिन तक मजदूरी मिल जाती है। हालांकि, इस मजदूरी के लिए उन्हें खतरनाक फैक्ट्री या खदानों में काम करना पड़ता है जिससे वे सिलिकोसिस जैसी जानलेवा बीमारियों की चपेट में आ जाते है। अलीराजपुर के करीब दो दर्जन गांव सिलिकोसिस की चपेट में हैं।
अशिक्षा, खराब स्वास्थ्य से बढ़ रही गरीबी
शिक्षा के मामले में जिले का स्तर काफी खराब है। जनगणना के मुताबिक यहां महिलाओं में साक्षरता 27.1 प्रतिशत है जबकि पुरुषों में यह 55 प्रतिशत है। ग्रामीण इलाकों में यह दर क्रमशः 22 और 49.4 प्रतिशत है। मध्यप्रदेश में यह दर महिलाओं में 77.5 और पुरुषों में 88.7 है। शिक्षा के मामले में यह जिला सबसे पिछड़ा है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 की रिपोर्ट के मुताबिक जिले के 5 महीने से 59 महीने के बीच 74.5 बच्चों को एनिमिया की शिकायत है। 64.4 प्रतिशत महिलाओं को भी एनिमिया है। पांच साल तक के 52 प्रतिशत बच्चों का वजन कम है। 32 प्रतिशत शिशु बहुत पतले, और 11.3 प्रतिशत बच्चों में ठिगनेपन की समस्या है।
बाल श्रमिकों के मामले में अलीराजपुर मध्यप्रदेश का सबसे अधिक बाल श्रमिकों (14.8%) वाला जिला है। हालांकि इन आंकड़ों में एक अच्छी बात भी दिखती है वह है महिला पुरुष के बीत का अनुपात। सेक्स रेशियो के मामले में मध्यप्रदेश की औसत रेशियो की तुलना में अलीराजपुर का अनुपात 1011 है जो कि मध्यप्रदेश के अनुपात 948 से काफी अधिक है।
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