कोरोनावायरस फैलने के बाद चीन से आई 5500 करोड़ रुपए की कच्ची दवाएं

चीन में लॉकडाउन के बाद एपीआई का आयात सामान्य तो हुआ, लेकिन कम आयात के बावजूद भारत को कीमत अधिक चुकानी पड़ रही है
कोरोनावायरस के बाद से चीन से एपीआई के आयात में कमी आई है, लेकिन कीमत बढ़ रही है। फोटो: pxfuel
कोरोनावायरस के बाद से चीन से एपीआई के आयात में कमी आई है, लेकिन कीमत बढ़ रही है। फोटो: pxfuel
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केंद्र सरकार ने 18 सितंबर 2020 को जानकारी दी कि चीन में लॉकडाउन खुलते ही भारत में दवाओं के कच्चे माल (जिसे एपीआई -एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट- कहा जाता है) की आपूर्ति शुरू हो गई थी और मार्च से अगस्त के बीच लगभग 5,500 करोड़ रुपए का एपीआई आयात किया जा चुका है।

राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में रसायन एवं उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने बताया कि दवा के निर्माण के कई एपीआई चीन से आयात किए जाते हैं। सीडीएसओ के विभिन्न बंदरगाह कार्यालयों के आंकड़ों के अनुसार मार्च में 4448.9 टन एपीआई चीन से आयात किया गया, जिसकी कीमत लगभग 795 करोड़ रुपए थी। इसी तरह अप्रैल में 897 करोड़ रुपए की कीमत के 5,341 टन एपीआई आयात किया गया। इसके बाद मई-जून में आयात में कमी आई। जुलाई में आयात में तेजी आई और पिर अगस्त में आयात में कमी आई है।

यहां यह उल्लेखनीय है कि सीमा पर लगातार तनाव की खबरों के बीच सरकार बार-बार कहती रही है कि चीन से व्यापारिक रिश्ते खत्म किए जाएंगे, लेकिन एपीआई आयात में कुछ गिरावट के बाद फिर से तेजी बनी हुई है।

दिलचस्प बात यह है कि केंद्र सरकार कह रही है कि उसके पास चीन द्वारा एपीआई पर वसूले जा रहे किसी तरह के अतिरिक्त शुल्क की शिकायत नहीं आई है, लेकिन सरकार के आंकड़े बताते हैं कि मई 2020 में एपीआई का आयात तो कम किया गया, लेकिन कीमत अधिक चुकानी पड़ी। जैसे कि अप्रैल 2020 में चीन से 5,341 मीट्रिक टन एपीआई का आयात किया गया, जिसका मूल्य 897.57 करोड़ बताया गया है, लेकिन मई में केवल 3,961.4 टन एपीआई आयात किया गया, जबकि इसका मूल्य कम होने की बजाय बढ़ गया और 949.42 करोड़ रुपए कीमत की एपीआई का आयात हुआ बताया गया है। इसी तरह जून-जुलाई में भी आयात कम हुआ, लेकिन कीमत ज्यादा देनी पड़ी।

महीना                 आयात की मात्रा, टन में               मूल्य करोड़ में 

मार्च, 2020             4,448.9                            795.02

अप्रैल, 2020           5,341.7                             897.57 

मई, 2020             3,961.4                             949.42

जून, 2020             3,634.1                             973.42

जुलाई, 2020          4,812.1                            1,094.82

अगस्त 2020          4,023.5                             804.81

स्त्रोत: डीसीजीआई, सीडीएसओ

चीन से आयात होता है 72 फीसदी कच्चा माल

राज्यसभा में पूछे गए एक अन्य सवाल के जवाब में गौड़ा ने बताया कि भारत दवाइयों के उत्पादन के लिए विभन्न बल्क औषधि/सक्रिय औषधीय सामग्री (एपीआई) का आयात करता है। बल्क औषधि, माध्यमिक औषध के कुल आयात का दो तिहाई हिस्सा चीन से आयात किया जाता है। रसायन मंत्री ने बताया कि 2017 में 68.62 फीसदी कच्चा माल चीन से आयात हुआ, जबकि 2018 में 66.53 फीसदी और 2019 में 72.40 फीसदी कच्चा माल चीन से आया। 

आत्मनिर्भरता के प्रयास में जुटी सरकार

सरकार ने बताया है कि एपीआई और बल्क औषधियों के आयात पर निर्भरता कम करने और आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए औषध विभाग ने दो योजनाओं की शुरुआत की है। एक- भारत में महत्वपूर्ण मुख्य प्रारंभिक सामग्रियों /ड्रग इंटरमीडिएट और एपीआई के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना और दूसरा- बल्क औषधि पार्कों का संवर्धन। इन दोनों योजनाओं के दिशानिर्देश 27 जुलाई 2020 को जारी किए गए हैं।

एपीआई क्या है

वि​श्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तैयार फार्मा उत्पाद यानी फॉर्मुलेशन के लिए इस्तेमाल होने वाले किसी भी पदार्थ को एपीआई यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रेडिएंट कहते हैं। एपीआई ही किसी दवा के बनाने का आधार होता है, जैसे क्रोसीन दवा के लिए एपीआई पैरासीटामॉल होता है, तो आपने यदि पैरासीटामॉल का एपीआई मंगा लिया, तो उसके आधार पर किसी भी नाम से तैयार दवाएं बनाकर उसे निर्यात कर सकते हैं। इसे एक तरह से तैयार दवाओं का कच्चा माल भी कहा जा सकता है।

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