औपनिवेशिक विरासत की वापसी
संपत्ति तेजी से चलते परमाणु रिएक्टर की तरह है जो हर आने वाली पीढ़ी को अधिक संपत्ति सृजित करके देता है, खासकर उन लोगों को जो पहले से अत्यधिक अमीर (सुपर-रिच) हैं। और संपत्ति का यह अप्रत्याशित सृजन व्यापार में मुनाफे अथवा नवाचार की देन नहीं है। अधिकांश नए अरबपति केवल विरासत में मिली संपत्ति के बलबूते ही इस मुकाम पर पहुंचे हैं।
इसी विरासत की वजह से गरीब घर में पैदा हुआ व्यक्ति भी सदा गरीब रहता है। “वर्ल्ड इनइक्वेलिटी रिपोर्ट” के प्रमुख लेखक लुकास चांसेल कहते हैं कि किसी भी तरह की बुनियादी संपत्ति से वंचित दुनिया की आधी आबादी के लिए गरीबी के भंवर से बाहर निकलना बहुत मुश्किल है। आबादी का यह समूह हमेशा से गरीब बना हुआ है।
इसी वजह से दुनिया में असमानता की खाई चौड़ी व स्थायी बनती जा रही है और यह आधुनिक उपनिवेशवाद को आकार दे रही है। यही वजह है कि हर साल वैश्विक धन सृजन और वितरण पर रिपोर्ट प्रकाशित करने वाले ऑक्सफेम इंटरनेशनल के कार्यकारी निदेशक अमिताभ बेहर इस 21वीं सदी की आर्थिक विषमता को “अरबपति साम्राज्यवाद” के रूप में परिभाषित करते हैं।
इस साल जनवरी में ऑक्सफेम द्वारा जारी “टेकर्स नोट मेकर्स: द अनजस्ट पावर्टी एंड अनअर्थ वेल्थ ऑफ कोलोनियल इनहेरिटेंस” रिपोर्ट में संपत्ति और उसके वितरण का ऐतिहासिक विश्लेषण किया गया है।
इसमें औपनिवेशिक काल और वर्तमान समय में समानताएं देखी गई हैं। रिपोर्ट के अनुसार, “हाल ही में यह चलन देखा भी गया है कि अरबपतियों की संपत्ति तेजी से बढ़ रही है। 2023 की तुलना में 2024 में यह तीन गुना तेजी से बढ़ी है।” अरबपतियों ने अपनी संपत्ति में कुल 2 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि की है और लगभग 204 नए अरबपति सुपर--रिच क्लब में जुड़े हैं। दुनिया के 10 सबसे अमीर व्यक्तियों में से प्रत्येक ने 2024 में अपनी संपत्ति में प्रतिदिन 100 मिलियन डॉलर की वृद्धि की है।
ऑक्सफेम ने इन 10 व्यक्तियों की संपत्ति का अनुमान लगाते हुए कहा है कि अगर दुनिया में 3,15,000 साल पहले आए किसी आदिमानव ने प्रतिदिन 1,000 अमेरिकी डॉलर की बचत की हो, फिर भी उसके पास सबसे अमीर 10 अरबपतियों में से किसी के भी बराबर पैसा नहीं होगा।”
विश्व की संपत्ति तेजी से कुछ ही लोगों के पास केंद्रित होती जा रही है। इससे वे न केवल शक्तिशाली बन रहे हैं, बल्कि भविष्य की संपत्ति पर भी कब्जा जमा रहे हैं। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होने वाली संपत्ति पर कर नहीं लगता,, क्योंकि अधिकांश देश ऐसा नहीं करते। इसलिए, संपत्ति का सृजन और वितरण इसी समूह के भीतर रहता है। यह बात गौर करने वाली है कि 2024 में 30 वर्ष से कम आयु के सभी अरबपति केवल विरासत में मिली संपत्ति के बूते ही अरबपति हैं।
ऑक्सफेम का कहना है कि 2023 में पहली बार उद्यमिता की तुलना में विरासत की संपत्ति ने अधिक नए अरबपति बनाए होंगे। 2055 तक लगभग 1,000 अरबपति अपनी अगली पीढ़ियों को 5.2 ट्रिलियन डॉलर हस्तांतरित कर चुके होंगे। ऑक्सफैम की रिपोर्ट कहती है, “हम मानव इतिहास में सबसे बड़ी पीढ़ीगत संपत्ति का सबसे बड़ा हस्तांतरण देखने वाले हैं। वह संपत्ति शायद ही कमाई गई और उस पर शायद ही कर लगा है।”
यह एक तरीके से साम्राज्वादी दौर के वापसी जैसा है। साम्राज्यवाद के दौर में ग्लोबल साउथ के गरीबों और ग्लोबल नॉर्थ अमीर देशों के बीच संपत्ति वितरण को लेकर लड़ाई थी। अमीर देशों में कुछ लोगों के पास संपत्ति का केंद्रीकरण हो रहा है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी जारी है। उदाहरण के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के समय सबसे अमीर 10 प्रतिशत आबादी के पास यूनाइटेड किंगडम की आधी से अधिक संपत्ति थी।
एक गणना का दावा है कि उपनिवेशवाद की एक सदी में ब्रिटेन ने भारत से 64.82 ट्रिलियन डॉलर छीन लिए जिसमें से ब्रिटेन के सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों को 33.8 ट्रिलियन डॉलर मिले।
मौजूदा दौर की औपनिवेशिक युग से तुलना करते हुए ऑक्सफेम की रिपोर्ट कहती है कि 2023 में वैश्विक उत्तर में सबसे अमीर एक प्रतिशत को वित्तीय प्रणाली के माध्यम से वैश्विक दक्षिण द्वारा 263 बिलियन अमेरिका डॉलर का भुगतान किया गया यानी प्रति घंटे 30 मिलियन अमेरिका डॉलर से अधिक का भुगतान हुआ। अमिताभ कहते हैं, “जो लोग मानते हैं कि उपनिवेशवाद बहुत भयानक और एक ऐतिहासिक अपराध था तो मैं कहूंगा कि हमारी आधुनिक दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है जो औपनिवेशिक है।”