कोरोनावायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में किए गए लॉकडाउन के बाद मजदूरों में अफरा तफरी मच गई। इसके चलते सरकार ने तुरत-फुरत में कई घोषणाएं की। इसमें एक घोषणा थी, मजदूरों को आर्थिक सहायता दी जाएगी। लेकिन क्या मजदूरों को यह पैसा मिल पाया, किस कानून के तहत यह पैसा दिया गया, क्या पहले से इस कानून की पालना सही तरीके से हो रही थी? आखिर क्यों मजदूरों को अपनी सरकार पर भरोसा नहीं रहा? इन सवालों का जवाब तलाशती एक बड़ी रिपोर्ट डाउन टू अर्थ ने तैयार की है। पहली कड़ी में आप पढ़ चुके हैं कि कैसे मजदूरों के लिए इस सहायता की घोषणा की गई। पढ़ें, दूसरी कड़ी-
सवाल यही नहीं है कि दिल्ली, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में कितने मजदूरों को पैसा मिल चुका है? दरअसल, जितने भी राज्यों ने भवन एवं अन्य निर्माण मजदूर कल्याण (बीओसीडब्ल्यू) बोर्ड के तहत मजदूरों को नगद राशि देने की घोषणा की है, वहां से भी जो रिपोर्ट सामने आ रही हैं, वे उत्साहजनक नहीं हैं।
केंद्र की सलाह के बाद राज्य सरकारों ने बीओसीडब्ल्यू बोर्ड में जमा पैसा मजदूरों को देने की घोषणा की है। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु ने 1,000 रुपए प्रति मजदूर देने की घोषणा की है। वहीं, आंध्र प्रदेश ने 2,000 रुपए, दिल्ली ने 5,000 रुपए, पंजाब ने 3,000 रुपए की दो किस्तें, ओडिशा ने 1,500 रुपए प्रति मजदूर देने की घोषणा की है।
निर्माण मजदूरों की राष्ट्रीय समिति (एनसीसी-सीएल) के 30 अप्रैल को जारी एक सर्कुलर जारी कर कहा कि एक ओर केंद्र सरकार का दावा है कि 2 करोड़ मजदूरों को 3,000 करोड़ रुपए दिए जा चुके हैं तो दूसरी ओर राज्यों द्वारा जारी आंकड़े अलग-अलग बयानी कर रहे हैं।
एनसीसी-सीएल ने इन आंकड़ों को तीन भागों मे बांटा है। एक भाग में अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक जारी राशि को रखा गया है, दूसरे भाग में उसके बाद जारी राशि को रखा गया है, जबकि तीसरे भाग में उन आंकड़ों को शामिल किया गया है, जिनकी सूचना निर्माण मजदूरों से जुड़े हिमांशु उपाध्याय ने एकत्र की है। हिमांशु ने लगभग हर राज्य द्वारा भवन-निर्माण मजदूरों के लिए घोषित सहायताओं का विवरण इकट्ठा किया है।
आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल के प्रथम सप्ताह तक 11 राज्यों ने लगभग 935.62 करोड़ रुपए जारी किए हैं। इसमें सबसे अधिक केरल ने जारी किए हैं। केरल ने 20 लाख मजदूरों को 200 करोड़ रुपए जारी किए हैं। वहीं तमिलनाडु ने 12.14 लाख मजदूरों को 1,500 रुपए प्रति मजदूर के हिसाब से 121.4 करोड़ रुपए, राजस्थान ने 17 लाख मजदूरों को 170 करोड़ रुपए, मध्य प्रदेश ने 8.31 लाख मजदूरों को 83 करोड़ रुपए, ओडिशा ने 4.4 लाख मजदूरों को 60 करोड़ रुपए, पंजाब ने तीन लाख मजदूरों को 180 करोड़ रुपए जारी किए हैं।
जबकि 8 अप्रैल तक पंजाब ने 3.2 लाख मजदूरों की दूसरी किस्त लगभग 175 करोड़ रुपए जारी किए। पंजाब ने निर्माण मजूदरों को 3-3,000 रुपए की दो किस्त देने की घोषणा की है। इसके अलावा ओडिशा ने 105 करोड़ रुपए, तमिलनाडु ने 5.47 लाख मजदूरों को 54.7 करोड़ रुपए, उत्तर प्रदेश ने 7 अप्रैल से 23 अप्रैल के बीच कुल 15.02 लाख मजदूरों को कुल 150 करोड़ रुपए जारी किए।
गुजरात के बीओसीडब्ल्यू बोर्ड ने तो अलग ही काम किया। दूसरे राज्यों में जहां बोर्ड ने अपने सेस खाते से सीधे-सीधे मजदूरों के खातों में पैसा ट्रांसफर कर दिया, वहीं गुजरात के बीओसीडब्ल्यू बोर्ड ने 250 करोड़ रुपया मुख्यमंत्री गरीब कल्याण योजना में ट्रांसफर कर दिया। यह बताया जा रहा है कि यह पैसा अब 6.4 लाख मजदूरों को राहत देने पर खर्च किया जा जाएगा। एनसीसी-सीएल की रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र ने 11 लाख मजदूरों को 2,000 रुपए प्रति मजदूर के हिसाब से 220 करोड़ रुपए की घोषणा की है।
दरअसल, देशभर में कुल कितने निर्माण मजदूर हैं, इसका कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन 1996 में जब बिल्डिंग एंड अदर्स कंस्ट्रक्शन वर्कर्स (रेगुलेशन ऑफ इम्प्लॉयमेंट एंड कंडीशन ऑफ सर्विस) बिल 1996 में जब संसद में रखा गया था, तब उसमें बताया गया था कि देश भर में 8.5 करोड़ मजदूर भवन एवं निर्माण कार्यों में लगे हुए हैं, जो असंगठित क्षेत्र से हैं। 2017 में एनसीसी-सीएल में एक विश्लेषण के बाद बताया था कि जून 2017 में देश में निर्माण मजदूरों की संख्या 7.43 करोड़ से अधिक थी, जबकि उस समय तक निर्माण मजदूर कल्याण बोर्डों में पंजीकृत मजदूरों की संख्या 2.77 करोड़ थी। यानी कि केवल 37 फीसदी मजदूर ही बोर्ड में पंजीकृत हैं।
अब श्रम मंत्रालय द्वारा कहा जा रहा है कि पंजीकृत मजदूरों की संख्या 3.5 करोड़ है, हालांकि राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में यह संख्या 30 सितंबर 2018 तक 3.16 करोड़ थी।
बिल्डिंग एंड वुड वर्कर्स इंटरनेशन के रीजनल पॉलिसी ऑफिसर (एशिया पेसिफिक) राजीव शर्मा बताते हैं कि यह अस्थायी राहत दी जा रही है, लेकिन इसमें भी काफी खामियां हैं। मजदूरों के पास बैंक खाते नहीं है, वे इधर से उधर आते-जाते रहते हैं। ऐसे में, उनके लिए आसान नहीं होता कि वे अपना बैंक खाता रखें। उन्हें जो दिहाड़ी मिलती है, उसे वो उसी दिन खर्च कर देते हैं। इतना ही नहीं, वे तो अपना हर साल का पंजीकरण भी नहीं कर पाते। इस वजह से पिछले कुछ सालों के दौरान जहां देश में निर्माण गतिविधियां बढ़ी हैं, वहीं निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड में मजदूरों का पंजीकरण घटता जा रहा है। ऐसे में यदि सरकार उन्हीं मजदूरों को आर्थिक सहायता देगी, जिन्होंने अपना पंजीकरण को रिन्यू नहीं कराया है तो सहायता पाने वाले मजदूरों की संख्या तो काफी कम रह जाएगी।
निर्माण मजदूर अधिकार अभियान के संयोजक थानेश्वर आदिगौड़ बताते हैं कि दिल्ली का ही उदाहरण लीजिए, एक समय में 5.5 लाख मजदूर पंजीकृत थे, अब लगभग 40 हजार हैं। मतलब 10 फीसदी से भी कम रह गए हैं? क्या इसके लिए पंजीकरण प्रक्रिया दोषी नहीं है? दरअसल, सरकारें नहीं चाहती कि मजदूरों को उनका हक मिले। महामारी के समय में भी सरकार आंकड़ों का खेल खेल रही है।
मजदूर संगठनों ने जब यह मुद्दा उठाया कि क्या जो मजदूर अभी भी पंजीकृत (लाइव) हैं, उन्हें ही यह पैसा दिया जाएगा, तो 21 राज्य सरकारों ने घोषणा की कि जो एक बार भी पंजीकृत हो चुका है, उन्हें यह पैसा दिया जाएगा। इनमें अरुणाचल प्रदेश, गोवा, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर,कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, ओडिशा,पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं।
अगली कड़ी में आप पढ़ेंगे- अगर कानून लागू किया होता तो यह दिन नहीं देखना पड़ता