सचिवालय से 2.5 किलोमीटर दूर भी नहीं पहुंचा सरकारी राशन!

झारखंड सरकार दावा कर रही है कि बिना राशन कार्ड वालों को 10 किलो चावल दिए हैं, लेकिन रांची सचिवालय से 2.5 किमी दूर पर बसे आदिवासी टोले तक यह राशन नहीं पहुंच पाया है
रांची स्थित सचिवालय से 2.5 किमी दूर बसा आदिवासी टोला, जहां लॉकडाउन के बाद से कोई मदद नहीं पहुंच पा रही है। फोटो: मो. असग़र खान
रांची स्थित सचिवालय से 2.5 किमी दूर बसा आदिवासी टोला, जहां लॉकडाउन के बाद से कोई मदद नहीं पहुंच पा रही है। फोटो: मो. असग़र खान
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मो. असग़र खान

बीते 20 साल से सड़क और सुविधाओं से महरूम झारखंड की राजधानी रांची के नदी दीप टोला के लोग अब लॉकडाउन की मार झेल रहे हैं।  करीबन 20 घर का यह आदिवासी टोला सचिवालय (नेपाल हाउस) से महज 2.5 किलोमीटर की दूरी पर है। बावजूद यहां के लोगों की जिंदगी शहर से कटी हुइ है।

टोले में कई परिवारों के पास राशन कार्ड नहीं है। इन्हीं में से एक पूनम कच्छप हैं, जिनके परिवार में पांच सदस्य हैं। वह बताती हैं कि 20 दिन पहले पार्षद ने उन्हें राशन के लिए बुलाया था, मगर 1.5 किलो चावल और एक पाव दाल ही दी।

यही कहना मनीषा कच्छप, सवित्री कच्छप और सीमा कच्छप का भी है। इनके परिवार में भी क्रमशः तीन, दो और तीन सदस्य हैं। वे कहती हैं कि वे खाना एक टाइम ही बनाती हैं। कभी चावल उन्हें दूसरों के यहां से उधार भी लेना पड़ता है, लेकिन रौशनी लिंडा को डेढ़ किलो चावल और एक पाव दाल भी नसीब नहीं हुआ। वह कहती हैं, “जिस दिन चवाल, दाल दिया जा रहा था, उस दिन हम दूसरे काम में लगे हुए थे, इसलीए नहीं जा पाए। जब दूसरे दिन गए तो उन्होंने कहा कि जब आएगा, तब देंगे।” 

यह हाल तब है, जब झारखंड सरकार का दावा है कि जिन लोगों के पास राशन कार्ड नहीं हैं। उन्हें दस किलो चावल दिया जा रहा है। 

नदी दीप टोला रांची नगर निगम के 50 नंबर वार्ड में आता है। यहां की पार्षद पुष्पा तिर्की कहती हैं कि जिनका राशन कार्ड नहीं था, उन्हें एक संस्था के माध्यम से डेढ़ किलो चावल और पाव दाल दी थी, लेकिन सरकार की ओर से दिए जा रहे 10 किलो चावल के लिए उनको दोबारा बुलाया था, लेकिन अब तक वे लोग नहीं आए हैं। जबकि टोले वाले दोबारा बुलाने वाली बात से इनकार करते हैं।

नदी दीप टोला के लोगों की समस्या मात्र लॉकडाउन से उपजी परेशानी ही नहीं है। टोले में लोगों की मुख्य समस्या सड़क और पुलिया है। यहां के रहने वाले मंगा लिंडा कहते हैं कि पार्षद, विधायक से बोलकर थक गए, लेकिन एक छोटी सी पुलिया तक नहीं बन पाई है।

टोले वाले जिस पुलिया के बनाने की मांग कर रहे हैं, दरअसल वही उन्हें शहर से जोड़ती है. बांस, बल्ली से बनी इस लकड़ी की पुलिया चारों तरफ से टूटी हुई है। इसी के सहारे टोले के लोगों की जरूरत पूरी होती है। मंगा लिंडा कहते हैं कि पुलिया चारों तरफ से टूटी हुई है. नीचे दलदल और कीचड़ है। पुलिया से रोजाना नदी दीप समेत छोटा घागरा, हुंडरू बस्ती समेत 250-300 लोग आवाजाही करते हैं।

टोले वाले कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद से जगह-जगह खिचड़ी बांटी जा रही है और अन्य तरह की सहायता पहुंचाई जा रही है, लेकिन इस टूटी पुलिया की वजह से उनके यहां बांटने कोई नहीं आ रहा है।

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