भारत में 2.3 फीसदी कर्मचारी ही हैं कुशल

नॉसकाम की रिपोर्ट में कहा गया है कि कंपनियों को सफलता के लिए कार्यबल को उचित प्रशिक्षण और काम के प्रति प्रोत्साहित करने की तरफ गंभीरता से ध्यान देना चाहिए
Photo: Meeta Ahlawat
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भारत कुशल कर्मचारियों की भारी कमी से जूझ रहा है। कुशल कर्मचारियों के मामले में अगर भारत की चीन और जापान से तुलना की जाए तो हम कहीं भी नहीं ठहरते हैं। भारत में सबसे अधिक कामकाजी आयु के लोग हैं, इसके बाद भी केवल 2.3 प्रतिशत कार्यबल ही औपचारिक रूप से कुशल है, जबकि चीन में यह औसत 40 फीसदी है और जापान में तो चाइना से दोगुना यानि 80 फीसदी कार्यबल कुशल है। भारत में बहुत कम कार्यबल के कुशल होने की सबसे बड़ी वजह कार्यस्थलों पर सीखने की संस्कृति को बढ़ावा नहीं देना है। नॉसकाम द्बारा जारी रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि आज कंपनियों को सफलता के लिए कार्यबल को उचित प्रशिक्षण और काम के प्रति प्रोत्साहित करने की तरफ गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। रिपोर्ट में संभावना जताई गई है कि अगले दशक तक सालाना 1.2 करोड़ लोग कार्यबल से और जुड़ते रहेंगे। अगर, प्रशिक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया तो आने वाले वर्षों में बाजार की स्थिति के साथ चलना बहुत मुश्किल हो जाएगा।

नॉसकाम की रिपोर्ट में भारत को सिंगापुर में किए गए निरंतर सीखने की संस्कृति को अपनाने पर जोर दिया गया है। अगर, ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले वर्षों में देश को आर्थिक प्रभाव तो झेलना ही पड़ेगा, इसके अतिरिक्त उच्च बेरोजगारी दर व आय असमानता का ग्रॉफ और बढ़ जाएगा। लिहाजा, यह जरूरी होगा कि कंपनियों को आज सिंगापुर की तर्ज पर निरंतर सीखने और कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करने की सख्त जरूरत है। रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि सिंगापुर सरकार ने 2015 में अपस्किलिंग और आजीवन सीखने पर अपना ध्यान केंद्रित किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कार्यबल को बाजार के अनुसार प्रशिक्षित किया जा सके। डेनमॉर्क, स्वीडन और फिनलैंड जैसे कई अन्य देश भी नागरिकों को सीखाने के प्रति खास दिलचस्पी दिखा रहे हैं, जिससे कि आने वाले समय में तेजी से विकसित हो रही व्यावसायिक जरूरतों को पूरा किया जा सके।

किराए के कर्मचारी नहीं कर सकते बदलते व्यावसायिक जरूरतों को पूरा

नॉसकाम रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान दौर में तेजी से बाहरी ठेकेदारी प्रथा वाले कर्मचारियों से काम कराने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, लेकिन तेजी से विकसित होने वाली व्यावसायिक जरूरतों को पूरा करने में यह प्रवृत्ति पूरी बाधक साबित हो रही है। ऐसे कर्मचारियों में कार्यकुशलता का अभाव तो होता ही है, बल्कि इनमें खर्च की संभावना भी अधिक रहती है। लिहाजा, बदलते व्यावसायिक जरूरतों को पूरा करने के लिए नए कौशल और आंतरिक रूप से कार्यरत कर्मचारियों को पदोन्नत किए जाने की जरूरत है। व्हार्टन शोध से भी पता चलता है कि कंपनियों द्वारा आंतरिक कर्मचारियों को पदोन्नत करने के मुकाबले बाहरी किराए पर लिए गए कर्मचारियों पर 18-20 प्रतिशत अधिक खर्च होता है। कंपनियों में आंतरिक रूप से काम कर रहे कर्मचारियों के मुकाबले बाहरी किराए पर लिए कर्मचारियों को संबंधित काम को समझने के लिए भी अतिरिक्त 3 साल की जरूरत पड़ती है, जिसका प्रभाव कंपनी की ग्रोथ पर पड़ता है। और यह प्रवृत्ति वर्तमान कर्मचारियों में असंतोष पैदा करने का कारण भी बनता है। इसीलिए कंपनियों को ऐसी प्रवृत्ति से बचना चाहिए और कार्यरत कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने पर जोर दिया जाना चाहिए।

जरूरत महसूस करने लगी हैं कंपनियां

रिपोर्ट के मुताबिक बदलते व्यावसायिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कुछ कंपनियों ने विकास के लिए कार्यस्थल पर सीखने की संस्कृति को विकसित करने के महत्व को महसूस करना शुरू कर दिया है, लेकिन सीखने की संस्कृति को विकसित करने के तरीके अलग-अलग होते हैं, इसमें बिल योग्य कार्य और दैनिक कार्यों को सीखने पर अधिक जोर दिया जाता है, जिसे मान्यता या फिर पुरस्कृत कैटेगिरी में नहीं रखा जाता है। कुछ कंपनियां मानती हैं कि नियमित प्रशिक्षण और निरंतर सीखने की संस्कृति विकसित करने का मतलब एक ही है। निरंतर सीखने की प्रक्रिया कठिन है, इसीलिए कंपनियों को कभी-कभी यह पता नहीं होता है कि हितधारकों को अवधारणा के लिए अधिक ग्रहणशील बनाना कहां से शुरू करना है और उसे लागू करने के लिए पर्याप्त समर्थन और संसाधनों को कैसे हासिल करना है।

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