हर तीस घंटे में एक अरबपति बना और दस लाख नए गरीब, पर कैसे

ऑक्सफेम की नई वेल्थ जनरेशन रिपोर्ट के मुताबिक, कमाई के हिसाब से निचले स्तर के 50 फीसदी लोगों में शामिल एक मजदूर को जितना कमाने में 112 साल लगेंगे, उतना कमाने में शीर्ष के एक फीसदी में शामिल अमीर को महज एक साल लगेगा। सवाल यह नहीं है कि गरीब कैसे गरीब बना रहता है, सवाल यह है कि अमीर इतनी तेजी से अमीर कैसे बनता है
हर तीस घंटे में एक अरबपति बना और दस लाख नए गरीब, पर कैसे
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दावोस में सम्पन्न वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम की वार्षिक बैठक अरबपतियों पर केंद्रित रही। दुनिया के अरबपति वैश्विक जीडीपी के लगभग 14 फीसदी हिस्से पर नियंत्रण रखते हैं और इतनी तेजी से संपत्ति बनाते रहे हैं, जितनी तेजी से कोई नाभिकीय रिएक्टर काम करता है। इसलिए उनका सालाना जलसा, जैसा कि वे मानते हैं - सारी दुनिया के लिए एक खास अवसर है।

उन्होंने दावोस में अपनी बैठक एक दिन पहले ही खत्म की है। यह बैठक 22 से 26 मई तक थी। इसमें अरबपति अपने साथियों के साथ जुटे थे, जिनमें देशों के प्रमुख, बहुराष्ट्रीय और बहुपक्षीय बैंकों के अर्थशास्त्री, शीर्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीईओ और संदेशवाहक यानी मीडिया भी शामिल था। (भारत का मीडिया, देश में सत्ताधारी सरकार को बचाने के काम से छुट्टी लेकर रहस्यमयी तरीके से वहां केवल भारतीय लोगों का इंटरव्यू ले रहा था।)
संकट में बढ़ी संपति लेकिन रोने का पाखंड
पांच दिनों की बैठक के दौरान वे इस दौरान दुनिया में चल रहे उस वैश्विक संकटों से अभिभूत थे - जिसने खाद्य और ऊर्जा संकट को जन्म दिया है। यूक्रेन पर रूस का आक्रमण, कोरोना महामारी का अर्थव्यवस्था को लगातार ध्वस्त करते जाना और भविष्य में आसन्न आर्थिक पतन। इस बैठक ने ऐसा आभास दिया कि अगर दुनिया के सबसे बड़े धनकुबेर ढह जाएंगे तो ट्रिकल डाउन थ्योरी के हिसाब से नीचे के लोगों तक धन नहीं पहुंचेगा और अंततः अरबों लोग गरीबी के दलदल में धंस जाएंगे।
दरअसल, वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम की बैठक एक शानदार धोखे की तरह थी। जिस संकट से अरबपति इतने परेशान थे, उसने उनकी दौलत को अप्रत्याशित स्तर तक बढ़ा दिया है। यह डर कि अर्थव्यवस्था के डूबने से दुनिया और गरीब हो जाएगी, सिर्फ रोने का पाखंड था। संकटों के दौरान पैदा हुई दौलत उनके पास जमा हो गई है, और वे किसी भी तरह से उसे नीचे नहीं आने दे रहे।

पिछले दो सालों में करीब 573 नए अरबपति

वर्ल्ड इकॉनामिक फोरम की वार्षिक बैठक से पहले गैर-लाभकारी संगठन ऑक्सफेम इंटरनेशनल ने अपनी ‘वेल्थ जनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन’ रिपोर्ट जारी की। इस साल इसका शीर्षक था- ‘प्रॉफिटिंग फ्रॉम पेन’। पिछले दो साल, यानी महामारी के दौरान संपति बनाने का विश्लेषण करने पर ऑक्सफेम इंटरनेशनल ने पाया कि इस धरती पर आने वाले हर संकट में कुछ लोगों को बहुत ज्यादा फायदा हुआ है। इसमें गरीबों को बुरी तरह नुकसान उठाना पड़ा है ओर पहले से ज्यादा लोग गरीबी के दलदल में धंस गए हैं।

ऑक्सफेम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक गैब्रिएला बुचर ने रिपोर्ट में कहा था, ‘दुनिया के अरबपति अपनी तकदीर अविश्वसनीय रूप से बदलने का जश्न मनाने दावोस आ रहे हैं। पहले महामारी और अब खाद्यान्न व ऊर्जा की कीमतों में भारी बढ़ोतरी उनके लिए वरदान साबित हो रही है।’
उन्होंने ‘प्रॉफिटिंग फ्रॉम पेन’ के आंकड़ों का हवाला दिया। इसके मुताबिक, पिछले 24 महीनों में, जबसे 2020 में महामारी आई, तब से दुनिया के अरबपतियों की संपत्ति पिछले लगभग दो सालों की संयुक्त वृद्धि की तुलना में ज्यादा बढ़ी है। पिछले दो सालों में करीब 573 नए अरबपति पैदा हुए हैं।

ऊर्जा, खाद्य और दवा सेक्टर ने की मोटी कमाई

रिपोर्ट में विभिन्न कार्पोरेशनों की आय को सेक्टरों के अनुसार अलग-अलग किया गया है। ऊर्जा, खाद्य और दवा (तीन क्षेत्रों में जहां दुनिया संकट का सामना कर रही है) कार्पोरेशनों ने अपने जीवनकाल में अधिकतम लाभ दर्ज किया है। खाद्य क्षेत्र में 62 नए अरबपति सामने आए हैं।
खाद्य और ऊर्जा सेक्टर के अरबपतियों के लिए पिछले दो साल किसी वरदान की तरह रहे हैं, जिसमें उनकी संपति में हर दो दिन में एक अरब डालर का इजाफा हुआ। इस दौरान पांच शीर्ष ऊर्जा कंपनियों - बीपी, शेल, टोटल एनर्जीज, एक्सॉन और शेवरॉन ने हर सेकंड 2,600 डॉलर का दैनिक लाभ कमाया जबकि दुनिया लॉकडाउन और अत्यधिक आर्थिक तनाव का शिकारं थी। महामारी ने दवा क्षेत्र में भी 40 नए अरबपतियों को जन्म दिया। रिपोर्ट बताती है, ‘मॉडर्ना और फाइजर जैसे फार्मास्युटिकल कॉरपोरेशन, कोविड-19 वैक्सीन पर अपने एकाधिकार नियंत्रण से हर सेकंड एक हजार डॉलर का लाभ कमा रहे हैं। ”
 
2022 में गरीबी के दलदल में ध्ंसेंगे 26.3 करोड़ लोग
दूसरी ओर खाद्य चीजों के दाम बढ़ने, आजीविका के छिनने और कमाई का कोई जरिया न होने से इस साल यानी 2022 में 26.3 करोड़ लोग गरीब हो जाएंगे। यह उन अरबपतियों की कीमत पर होगा, जो हर 33 घंटे में पैदा हो रहे हैं। जिन तीन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा संपति बनाई गई है, उनमें मजदूरों का वेतन नहीं बढ़ा है। संकट का बोझ गरीब और हाशिये के लोग ही महसूस कर रहे हैं। 

बुचर के मुताबिक, ‘ अरबपतियों की किस्मतें इसलिए नहीं बदल गई क्योंकि वे अब ज्यादा स्मार्ट हैं या कड़ी मेहनत कर रहे हैं। कड़ी मेहनत तो मजदूर कर रहे हैं जबकि उन्हें पैसा कम दिया जाता है और उनसे खराब स्थितियों में काम कराया जाता है। सुपर-रिच लोगों ने दशकों तक हमारे तंत्र में धांधली की है और वे अब इसका लाभ उठा रहे हैं। ”

शीर्ष दस अमीरों की संपति, 3.1 अरब लोगों की कुल संपति से ज्यादा
इसे सही परिप्रेक्ष्य में रखकर देखें तो आज असमानता समझ से परे है और यह महामारी के दौरान इतनी गहरी हो गई है, जितनी पहले कभी नहीं थी। उदाहरण के लिए, ऑक्सफेम इंटरनेशनल के मुताबिक, दुनिया के शीर्ष दस अमीरों की संपति, 3.1 अरब लोगों की कुल संपति से या फिर अर्थव्यवस्था में नीचे के स्तर पर मौजूद 40 फीसदी लोगों की कुल संपति से ज्यादा है।
इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि गरीब आदमी जिंदगी भर काम करके भी कभी उतना नहीं कमा सकेगा, जितना अमीर एक साल में कमा लेगा। ऑक्सफेम के आकलन के हिसाब से निचले स्तर के 50 फीसदी लोगों में शामिल एक मजदूर को जितना कमाने में 112 साल लगेंगे, उतना कमाने में शीर्ष के एक फीसदी में शामिल अमीर को महज एक साल लगेगा।’
कमाई और संपति जुटाने में असामनता हमारे लिए कोई चौंकाने वाली चीज नहीं है। गरीब कैसे और गरीब बनता जाता है ? यह हमारे लिए कोई सवाल नहीं है। इसके बजाय सवाल यह है कि अमीर इतनी तेजी से अमीर कैसे बनता है। इस सवाल का जवाब हमें एक इशारा देता है, कि कैसे हम गरीब को अमीर बना सकते हैं।

अब विरासत में मिलती है गरीबी
गरीबी अब प्रभावी रूप से विरासत में मिलने वाली चीज है। गरीब घर में जन्म लेने वाला निश्चित रूप से हमेशा के लिए गरीब हो जाएगा। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के प्रमुख लेखक लुकास चांसल जैसे अर्थशास्त्री ने बढ़ती असमानता को इस तरह व्यक्त किया है - उनके मुताबिक, दुनिया की 50 फीसदी आबादी के पास किसी तरह की संपति नहीं है। जाहिर है, इससे गरीब पीछे ही छूटते जाएंगे।
देखिए, अमीर किस तरह और अमीर बनते हैं। यह क्रियाविधि स्पष्ट है - वे पहले से मौजूद यानी विरासत में मिली संपति का इस्तेमाल करते हैं, सरकारी नीतियां उन्हें उनका बिजनेस करने और मुनाफा कमाने में मदद देती हैं और यह पूरी प्रकिया संपति के समान वितरण की बजाय उसकी दौलत बढ़ाने पर केंद्रित है।
यही वजह है कि यह मांग बढ़ रही है कि सरकारें लोगों को सीधे नकद या आय में सहायता दें। यह वह ‘पूंजी’ हो सकती है, जिसेे लेकर में गरीब आश्वस्त हो सकते हैं और अपनी समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करने के लिए रणनीति बना सकते हैं। भले ही उन्हें इकॉनामिक फोरम की अगली वार्षिक बैठक में भाग लेने के लिए अरबपतियों की सूची में शामिल न किया गया हो।

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