केवल तुर्किए नहीं, ईरान से लेकर अमेरिका तक के सेबों से पटे हैं भारत के बाजार

हिमाचल प्रदेश के सेब बागवानों का कहना है कि विदेशी सेबों की वजह से उन्हें सही कीमत नहीं मिल पा रही है
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हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सेब के कारोबार की अच्छी खासी हिस्सेदारी है। फोटो : रोहित पराशर
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भारत के पहाड़ी राज्यों में उगने वाले देसी सेब कभी स्वाद, गुणवत्ता और पोषण का प्रतीक माने जाते थे। लेकिन अब इस मिठास पर संकट के बादल गहराने लगे हैं।

विदेशों से आयात हो रहे सस्ते, चमचमाते और बेहतरीन पैकेजिंग वाले सेबों ने देश के सेब उत्पादक राज्यों—हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड—के लाखों बागवानों को हाशिये पर धकेल दिया है।

इन राज्यों के किसान जलवायु परिवर्तन, बढ़ती लागत और कम होती उत्पादकता जैसी चुनौतियों से तो पहले ही जूझ रहे थे, अब बाजार में विदेशी सेब की बाढ़ ने उनकी कमाई पर गहरा असर डाला है।

वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार भारत ने 2023 में 25 देशों से 4.69 लाख मीट्रिक टन सेब आयात किया। इनमें तुर्की, ईरान, पोलैंड, इटली, चिली, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड और अमेरिका प्रमुख देश हैं। ये सेब कम कीमत, बेहतर पैकेजिंग और सालभर की उपलब्धता के चलते तेजी से भारतीय बाजार में अपनी जगह बना रहे हैं।

हिमाचल में सेब का लगभग 5,000 करोड़ से अधिक का सालाना कारोबार होता है और लगभग 2 से 3 लाख परिवार जीवनयापन के लिए सेब पर आश्रित हैं। विदेशी सेब से आर्थिकी पर पड़ रहे असर से यहां के बागवान चिंतित हैं।

हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 24 मई को प्रधानमंत्री से तुर्किए और अजरबैजान से आने वाले सेब पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया कि अब जो सेब की फसल आएगी उसमें ऐसी कोशिश करेंगे कि हिमाचल के बागवानों को नुकसान न हो।

उधर, हिमालयन एप्पल ग्रोवर सोसायटी के महासचिव राजेश धांटा ने भी विदेशों से आयातित सेब के संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। उन्होंने भी तुर्की (तुर्किए) से सेब आयात बंद करने का आग्रह किया है।

धांटा का कहना है कि विदेशी सेब से हमारे सेब को मार पड़ रही है। जब बाजार में विदेशी सेब आता है तो पहाड़ी राज्यों के सेब की कीमतें गिर जाती हैं। इसके चलते कई बार बागवानों के लिए सेब की लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता है।

हालांकि इसे हाल ही में पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ चलाए जा रहे ऑपरेशन सिंदूर से जोड़ कर देखा जा रहा है। क्योंकि तुर्किए ने इस वक्त पाकिस्तान का साथ दिया था।

धांटा ने बताया कि आधारभूत संरचना की कमी, मार्केटिंग और उचित कोल्ड स्टोरेज व्यवस्था न होने की वजह से बाजार में सेब की आवक लगातार नहीं होती। कभी बाजार में सेब बेहद कम होता है तो कभी पीक सीजन में बड़ी मात्रा में सेब पहुंच जाता है। अगर हमारे बागवानों के पास भी मजबूत आधारभूत ढांचा उपलब्ध हो तो हम प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।  

बागवान और संयुक्त किसान मोर्चा के अध्यक्ष संजय चौहान ने कहा कि बाहरी देश भारत में अपना सामान डंप कर रहे हैं। इससे हमारे कृषि और बागवानी क्षेत्र पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। साउथ एशियन फ्री टेªड एरिया के प्रावधानों के अधीन आ रहे सस्ते सेब से भी हमें चुनौती मिल रही है। भारत सरकार को इस दिशा में गंभीरता से विचार करते हुए कार्रवाई अमल में लानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि कॉफी और चाय की तर्ज पर सेब पर भी 100 प्रतिशत शुल्क लगाया जाना चाहिए। वो बताते हैं कि बागवान लंबे समय से आयात शुल्क बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन इसके उलट केंद्र सरकार ने दो साल पहले अमेरिका से सेब पर आयात शुल्क में 20% की कटौती कर दी थी।

नतीजतन अमेरिका से आने वाले सेब का आयात 2018-19 के 127,908 टन (145 मिलियन डॉलर) से घटकर 2022-23 में महज 4,486 टन (5.27 मिलियन डॉलर) रह गया। लेकिन इसकी जगह अब तुर्की, चिली, ईरान और न्यूजीलैंड जैसे देश ले चुके हैं।

अब एक बार फिर हम चुनौतियों से जूझ रही सेब बागवानी को बचाने के लिए केंद्र सरकार से विदेशों से आयात होने वाले सेब पर प्रतिबंध लगाने और इसमें शुल्क को 50 से 100 फीसदी करने की मांग कर रहे हैं।

बागवानों का एक और बड़ा मुद्दा है कि सेब के लिए कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारित नहीं है। अगर सरकार सेब को एमएसपी के दायरे में लाती है, तो यह बाजार में दाम गिरने की स्थिति में किसानों को आर्थिक सुरक्षा देगा।

बागवानों की यह जद्दोजहद सिर्फ आयातित सेब से प्रतिस्पर्धा की नहीं, बल्कि अपनी आजीविका, संस्कृति और पहचान को बचाने की लड़ाई है। पहाड़ी क्षेत्रों में उगने वाला सेब न सिर्फ स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, बल्कि यह कृषि की एक विरासत भी है जिसे वैश्विक बाज़ार के दबाव में लुप्त होने से बचाना जरूरी है।

यदि समय रहते नीतिगत फैसले नहीं लिए गए, तो आने वाले वर्षों में देसी सेब का स्वाद सिर्फ यादों में रह जाएगा और विदेशी सेब भारतीय थालियों में स्थायी मेहमान बन जाएगा।

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