दुनिया भर में काम करने योग्य उम्र की 15 फीसदी महिलाऐं ऐसी हैं जो काम करना चाहती हैं, लेकिन उनको इसका अवसर ही नहीं मिल पा रहा है। वहीं पुरुषों की बात करें तो उनके लिए यह आंकड़ा 10.5 फीसदी है। मतलब साफ है की महिलाओं की तुलना में पुरुषों को काम पाने के कहीं ज्यादा मौके हैं।
महिला हो या पुरुष बेरोजगारी का यह आंकड़ा वैश्विक अर्थव्यवस्था और विकास के लिए बड़ा खतरा है। साथ ही यह इस बात को भी दर्शाता है कि महिला-पुरुष के बीच विषमता की यह जो खाई है वो अभी भी काफी गहरी है। यह जानकारी कुछ दिनों पहले संयुक्त राष्ट्र श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा जारी नई रिपोर्ट में सामने आई है।
अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन ने इसकी माप के लिए एक नया संकेतक 'जॉब्स गैप' विकसित किया है, जो काम पाने के इच्छुक उन सभी व्यक्तियों की जानकारी जुटाता है, जिनके पास रोजगार नहीं है। देखा जाए तो यह संकेतक बेरोजगारी दर की तुलना में भिन्न है और कामकाजी दुनिया में महिलाओं के लिए परिस्थितियों की उदासीन तस्वीर को पेश करता है।
रिपोर्ट के मुताबिक रोजगार सम्बन्धी यह जो महिला-पुरुष के बीच असमानता की खाई हो वो पिछले अनुमानों की तुलना में कहीं ज्यादा है। आईएलओ के अनुसार इस लैंगिक खाई में पिछले दो दशकों (2005 - 2022) के दौरान कोई खास बदलाव नहीं आया है।
इतना ही नहीं रिपोर्ट से पता चला है कि महिलाओं को पुरुषों की तुलना में रोजगार पाने में कहीं अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पता चला है कि कमजोर विकासशील देशों में यह दूरी कहीं ज्यादा बड़ी है। जहां निम्न-आय वाले देशों में रोजगार ढूंढ पाने में असमर्थ महिलाओं का हिस्सा 24.9 फीसदी हैं। मतलब इन देशों में एक चौथाई महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर नहीं मिलते।
वहीं पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 16.6 फीसदी है। देखा जाए तो पुरुषों के लिए भी यह आंकड़ा चिंताजनक है, लेकिन फिर भी महिलाओं पर इस मामले में कहीं ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
इसके विपरीत यदि बेरोजगारी दर की बात करें तो उसमें महिलाओं और पुरुषों की बेरोजगारी दर काफी हद तक बराबर ही है। चूंकि बेरोजगारी के रुझानों को निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पैमाने में, आम तौर पर गैरआनुपातिक रूप से महिलाओं को बाहर रखा जाता है।
आईएलओ के अनुसार, बिना वेतन के किए जाने वाले कार्यों और देखभाल के साथ निजी और पारिवारिक जिम्मेदारियां भी महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित करती हैं। देखा जाए तो यह गतिविधियां न केवल महिलाओं को रोजगार स्वीकार करने से रोकती हैं, बल्कि साथ ही यह उन्हें सक्रिय रूप से काम ढूंढने और जल्द काम शुरू करने के रास्ते में भी अवरोध पैदा करती हैं।
श्रम संगठन के मुताबिक बेरोजगार समझे जाने के लिए इन शर्तों को पूरा किया जाना आवश्यक है, इसलिए अक्सर रोजगार पाने की इच्छुक बहुत सी महिलाएं बेरोजगारी के आंकड़ों में शामिल नहीं होती। देखा जाए तो कई ऐसे क्षेत्र है जिसमें अभी भी महिलाओं का आंकड़ा पुरुषों की तुलना में कहीं ज्यादा है। जैसे कि अपना घर चलाना और अपनी जगह रिश्तेदारों के लिए काम करना। संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के अनुसार यह सभी मिलकर महिलाओं के कम रोजगार के साथ उनकी कमाई पर भी असर डालती हैं।
पुरुषों की तुलना में आधा कमा रही महिलाएं
इसके अलावा आय अर्जन के मामले में भी महिलाओं की स्थिति कहीं ज्यादा खराब है। यदि 2019 के आंकड़ों पर गौर करें तो वैश्विक स्तर पर जहां पुरुषों ने आय के रूप में एक रूपया कमाया था, वहीं महिलाओं ने केवल 51 पैसे ही अर्जित किए थे।
यह गैप निम्न-मध्यम आय वाले देशों में ज्यादा बड़ा है जहां पुरुषों के एक रुपए की कमाई की तुलना में महिलाओं को केवल 29 पैसे ही मिले थे। वहीं निम्न आय वाले देशों की बात करें तो वहां यह आंकड़ा 33 पैसे के बराबर है।
इस लिहाज से देखें तो हम अभी भी सबके लिए बेहतर काम और सामाजिक न्याय के लक्ष्य को हस्सिल करने से काफी दूर हैं। भारत जैसे विकासशील और पिछड़े देशों में अभी भी महिलाओं को रोजगार ढूंढने के साथ-साथ सुरक्षित काम हासिल करने में अनगिनत चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। देखा जाए तो वास्तव में, लैंगिक असमानता वैश्विक श्रम बाजार की एक दुखद वास्तविकता है।
आईएलओ द्वारा जारी इन नए आंकड़ों से पता चलता है कि रोजगार और काम पाने में व्याप्त लैंगिक असंतुलन, विशेष रूप से विकासशील देशों में, सोच से कहीं ज्यादा है। साथ ही इस मामले में होती प्रगति की गति भी निराशाजनक रूप से धीमी है।
रिपोर्ट की मानें तो इस विषमता की मुख्य वजह महिलाओं के लिए रोजगार के कम अवसर होने के साथ उनकी औसत कमाई का पुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत रूप से कम होना है। ऐसे में श्रम बाजार में पसरी इस लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए यह जरूरी है कि रोजगार में महिलाओं की भागीदारी को बेहतर बनाया जाए।
साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के लिए रोजगार की सुलभता का विस्तार किया जाना भी जरूरी है। इसके साथ ही रोजगार की गुणवत्ता में सुधार लाना भी काफी मायने रखता है। गौरतलब है कि विश्व बैंक द्वारा जारी ताजा रिपोर्ट ”वूमेन बिजनेस एंड द लॉ 2023" भी महिला और पुरुषों के बीच मौजूद खाई को उजागर करती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, पुरुषों की तुलना में महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों का बमुश्किल 77 फीसदी ही लाभ ले पाती हैं।
देखा जाए तो महिलाएं कई मामलों में पुरुषों के समान अधिकारों को प्राप्त करने से वंचित हैं। यदि इनकी संख्या की बात करें तो यह मामला 240 करोड़ महिलाओं का है। रिपोर्ट का मानना है कि जिस तरह से इस दिशा में प्रगति हो रही है उस रफ्तार से इस खाई को पाटने में अभी और 50 साल लगेंगें।