
दुनिया की 80 प्रतिशत से अधिक बहुआयामी गरीबी में रहने वाली आबादी ऐसे क्षेत्रों में रहती है जो जलवायु खतरों के संपर्क में हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव द्वारा जारी “ग्लोबल मल्टीडायमेंशनल पॉवर्टी इंडेक्स 2025” रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
रिपोर्ट में पहली बार यह आकलन किया गया है कि बहुआयामी गरीबी में रहने वाली आबादी चार प्रमुख जलवायु खतरों, जैसे- भीषण गर्मी, सूखा, बाढ़ और वायु प्रदूषण की वजह से कितने जोखिम में है।
रिपोर्ट के अनुसार, बहुआयामी गरीबी का सामना कर रहे कुल 1.1 अरब (110 करोड़) लोगों में से 887 मिलियन (88.7 करोड़) लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जो इन चार में से कम-से-कम एक जलवायु खतरे से प्रभावित हैं।
इनमें 608 मिलियन (60.8 करोड़) लोग भीषण गर्मी वाले क्षेत्रों में रहते हैं। 577 मिलियन (57.7 करोड़) लोग वायु प्रदूषण के खतरे में हैं। 465 मिलियन (46.5 करोड़) लोग बाढ़ के जोखिम में हैं और 207 मिलियन (20.7 करोड़) लोग सूखे से प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, “कई गरीब लोग एक से अधिक जलवायु खतरों का सामना करते हैं। जैसे- 651 मिलियन (65.1 करोड़) लोग दो या उससे अधिक खतरों की चपेट में हैं, जबकि 309 मिलियन (30.9 करोड़) लोग तीन या चार खतरों से एक साथ प्रभावित हैं।”
रिपोर्ट यह भी बताती है कि मध्यम-आय वाले देशों में बहुआयामी गरीबी में जीने वाली आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा (72.2 प्रतिशत) किसी न किसी जलवायु खतरे की चपेट में है।
रिपोर्ट में बताया गया है किउच्च-मध्यम आय वाले देशों में गरीब लोगों की संख्या भले ही अपेक्षाकृत कम हो, लेकिन उनका जलवायु खतरों के प्रति जोखिम असमान रूप से अधिक है। इन देशों में 91.1 प्रतिशत गरीब लोग (लगभग 9.3 करोड़) कम-से-कम एक जलवायु खतरे जैसे अत्यधिक गर्मी, बाढ़, सूखा या वायु प्रदूषण के संपर्क में हैं।
दक्षिण एशिया क्षेत्र में जलवायु खतरों से प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाली बहुआयामी गरीब आबादी की संख्या सबसे अधिक है। दक्षिण एशिया में लगभग 380 मिलियन (38 करोड़) गरीब लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जो किसी न किसी जलवायु खतरे से गंभीर रूप से प्रभावित हैं।
इसके बाद उप-सहारा अफ्रीका का स्थान आता है, जहाँ लगभग 344 मिलियन (34.4 करोड़) गरीब आबादी ऐसे ही जलवायु खतरों के संपर्क में है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “साल 2005–2006 से दक्षिण एशिया ने बहुआयामी गरीबी कम करने में वैश्विक स्तर पर उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन यह क्षेत्र अब भी सबसे अधिक जलवायु खतरों के ओवरलैप (एक साथ कई खतरों) से प्रभावित है।”
दक्षिण एशिया के लगभग सभी गरीब लोग (99.1 प्रतिशत) ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जो कम-से-कम एक जलवायु खतरे से प्रभावित हैं। इसके अलावा 59 प्रतिशत (22.6 करोड़) गरीब आबादी तीन या चार प्रकार के जलवायु खतरों, जैसे- भीषण गर्मी, बाढ़, सूखा और वायु प्रदूषण का एक साथ सामना कर रही है।
पिछले दो दशकों में बहुआयामी गरीबी का स्तर लगातार घट रहा है। रिपोर्ट बताती है, “साल 2005–2006 में भारत की 55.1 प्रतिशत आबादी गरीब थी। यह अनुपात 2019–2021 में घटकर 16.4 प्रतिशत रह गया। यानी लगभग 414 मिलियन (41.4 करोड़) लोग गरीबी से बाहर निकले।”
रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका दोनों ही क्षेत्र गरीबी और जलवायु खतरों के वैश्विक हॉटस्पॉट हैं। यहां बहुआयामी गरीबी के उच्च स्तर अक्सर भीषण गर्मी, सूखा, वायु प्रदूषण और/या बाढ़ जैसे जलवायु खतरों के साथ मेल खाते हैं।
बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान के बड़े हिस्से भारी गरीबी, भीषण गर्मी, बाढ़ और वायु प्रदूषण के संयुक्त प्रभावों से जूझ रहे हैं।
यह एक बड़ी उलझन है, उस सबसे बड़ी चुनौती के सामने, जिसका सामना पूरी सदी कर रही है। वह है- जलवायु परिवर्तन।
धरती के गर्म होने से मौसम अनियमित और विनाशकारी बनता जा रहा है। इसका सबसे ज्यादा असर गरीब लोगों पर पड़ रहा है, जबकि वे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में बहुत कम योगदान करते हैं।
जलवायु परिवर्तन के सीधे शिकार गरीब लोग ही हैं।
इसके कारण उनका जोखिम बढ़ जाता है और वे गरीबी से बाहर निकलने की कोशिश में बार-बार पीछे छूट जाते हैं।
रिपोर्ट बताती है कि गरीब लोग जलवायु खतरों का असर असमान रूप से झेलते हैं, और यह हकीकत गरीबी खत्म करने के प्रयासों को पटरी से उतार सकती है। गरीब परिवार जलवायु झटकों के प्रति ज़्यादा असुरक्षित होते हैं क्योंकि उनमें से अधिकतर कृषि और अनौपचारिक श्रम जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों पर निर्भर रहते हैं।
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के ह्यूमन डेवलपमेंट रिपोर्ट कार्यालय के निदेशक पेड्रो कॉन्सेइसाओ के अनुसार,
“पहचाने गए खतरे केवल वर्तमान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि भविष्य में इनके और बढ़ने की आशंका है।”
रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान के अनुमानों के विश्लेषण से पता चलता है कि जिन देशों में इस समय बहुआयामी गरीबी का स्तर अधिक है, वहीं इस सदी के अंत तक तापमान में सबसे अधिक वृद्धि होने की संभावना है।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि गरीबी, जिसे पहले केवल एक सामाजिक-आर्थिक समस्या के रूप में देखा जाता था, अब सीधे तौर पर पृथ्वी पर बढ़ते दबावों से जुड़ चुकी है। यदि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए ठोस और महत्वाकांक्षी कदम नहीं उठाए गए, तो साल 2050 तक अत्यधिक आर्थिक गरीबी में जीने वाले लोगों की संख्या लगभग दोगुनी हो सकती है।