अनिल सिंदूर
बुंदेलखंड की कहावत है “पानी दार यहां का पानी, आग यहां के पानी में” इस कहावत को सच कर दिखाया मुंबई, सूरत, अहमदाबाद, दिल्ली से लौटे गाँव भांवरपुर तहसील नरैनी जनपद बांदा के प्रवासी श्रमिकों ने और अपने श्रमदान से घरार नदी को पुनर्जीवित कर दिया। यह नदी पन्ना मप्र के जंगलों से आती है और बागेन नदी में समाहित हो जाती है।
लगभग 30 वर्षों से घरार नदी अपना अस्तित्व खो चुकी है। पूर्व में यह नदी 40 से 50 फुट चौड़ी हुआ करती थी, लेकिन वर्तमान में यह नाले से भी बदतर है, जबकि पहले यह नदी लघु एवं सीमांत किसानों के लिए वरदान थी। इस नदी के पानी से खेती कर गांव के किसान अपना जीवन यापन करते थे, लेकिन जैसे-जैसे नदी अपना अस्तित्व खोती गई गांव से काम की तलाश में पलायन शुरू हो गया।
गांव में केवल बुजुर्ग और महिलाएं ही रह गई थी, लेकिन कोरोना महामारी में जब इस गांव के प्रवासी श्रमिक लौट कर आये तो काम की तलाश शुरू हुई। लेकिन उन्हें मनरेगा योजना में भी काम नहीं मिल सका, क्योंकि उनके पास जॉब कार्ड नहीं थे, तब विद्या धाम समिति के अगुआ राजा भईया ने सभी प्रवासियों की बैठक की और बुजुर्गों से पूछा कि पहले गांव में काम क्या किया करते थे तब गांव वालों ने बताया कि नदी के पानी से खेती कर लिया करते थे, जिससे गुजर बसर हो जाया करती थी, लेकिन नदी पर सरकार ने ढेरों चैकडेम बना दिए, जिसके फलस्वरूप नदी मर गयी और पानी मिलना बन्द हो गया।
नदी में पानी न आने के कारण अतिक्रमण भी हुआ और झाड़ झाकड़ भी खड़े हो गये, ऐसे में युवाओं को काम की तलाश में शहरों का रुख करना पड़ा। तब बैठक में भईया राजा ने प्रस्ताव रखा कि उनकी रसोई की चिंता हम करेंगे, जब तक उनके जॉब कार्ड नहीं बने हैं तब तक वह अपने श्रमदान से अस्तित्व खो चुकी नदी को पुनर्जीवित करने का काम करें। पानी होगा तो खुशहाली आएगी।
हम सभी अपने खाने को किचिन गार्डन तैयार करेंगे, हम सब जैविक खाद से उपजी सब्जियां पैदा करेंगे गांव की जरुरत पूरी करेंगे। साथ ही उन्हें बेच कर रोज की जरूरतें भी पूरी करेंगे। प्रवासियों और गांव के बुजुर्ग लोगों को ये प्रस्ताव बेहद पसन्द आया और सभी दूसरे दिन ही चल पड़े श्रमदान को अपने फावड़े, कुदाल लेकर नदी को पुनर्जीवित करने को।
खास बात यह है कि श्रमदान में महिलाओं ने भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। घरार नदी की लम्बाई उप्र क्षेत्र में लगभग 70 किमी है तथा मप्र क्षेत्र में लगभग 130 किमी है। उप्र क्षेत्र में इस नदी पर 35 चैकडेम बने हैं, जिसके कारण आखिरी छोर तक आते आते यह मर गई है।
प्रवासियों ने लगभग 1.5 किमी का हिस्सा पुनर्जीवित कर लिया है। नदी से जैसे ही उग आई झाड़ियों को पूरी तरह से साफ किया गया नदी के जल श्रोत खुलने लगे और नदी में पानी आ गया। पानी के आते ही गांव के लोगों का हौंसला बढ़ने लगा और श्रमिकों की संख्या भी बढ़ने लगी।
नदी को पुनर्जीवित होते देख गांव के लोगों ने नदी पर किए अतिक्रमण भी छोड़ दिए। साथ ही उन्होंने घोषणा की कि जो भी नदी पर किए गए अतिक्रमण को नहीं छोड़ेगा, उसका सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा।
विद्या धाम समिति के भइया राजा ने बताया कि सभी के जॉब कार्ड तथा राशन कार्ड बनवाये जाएंगे। सब्जियां तथा अनाज उगाने को समिति बीज उपलब्ध करवाएगी। इस तरह भरण पोषण के सभी उपाय श्रमिकों के तैयार किए जाएंगे। अन्ना प्रथा में छोड़े गए बछड़ों को संरक्षित कर बैलों से खेती करवाई जाएगी।
पास लगते गांव रानीपुर, कनाय, बाबूपुर, पंचमपुर तथा करतल के लोगों ने सफल होते श्रमदान को देखते हुए इनको प्रोत्साहन करने को खुद भी श्रमदान किया।