मध्यप्रदेश और आसपास के राज्यों में प्रवासी मजदूर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर घर जाने को मजबूर हैं। उनकी परिवहन व्यवस्था और खानपान सहित, घर सुरक्षित पहुंचाने की मांगों को लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर मध्यप्रदेश में 24 घंटे के भूख हड़ताल पर थीं, लेकिन सरकार की बेरुखी देखकर अब हड़ताल 48 घंटे तक चलेगी। बड़वानी के सेगवाल फाटा के पास ठीकरी में मुम्बई-आगरा नेशनल हाईवे पर मेधा अनशन पर बैठी हुई हैं।
उन्होंने कहा कि यह चेतावनी अनशन है। केंद्रीय मानव अधिकार सुरक्षा संगठन के एमडी चौबे के साथ वह अनशन पर हैं। वह कहती हैं कि जो मजदूर अपना घर छोड़कर दूसरे स्थानों पर जाकर श्रम करता है, उन्हें घर लौटने में सरकार को मदद करनी चाहिए। सरकार के तमाम दावों के बावजूद मध्यप्रदेश की सीमाओं पर मजदूर अटके हैं और पैदल घर जाने को मजबूर हो रहे हैं।
उनका मानना है कि इच्छाशक्ति के अभाव की वजह से सरकार व्यवस्था नहीं करा पा रही है। उन्होंने आपदा प्रबंधन फंड, पीएम केयर, और श्रम विभाग कर पैसों को इस काम में लाने का सुझाव दिया है। 5 मई 2,020 को पाटकर और चौबे ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर कहा कि मध्यप्रदेश सरकार ने अब तक बुनियादी व्यवस्था ठीक करने की कोशिश शुरू नहीं की है। अब भी मजदूर पैदल चलने को विवश हैं। कई दिनों की कोशिश के बावजूद गुजरात, महाराष्ट्र ,मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच की स्थिति देखकर उन्होंने सत्याग्रह को 48 घंटे चलाने का निर्णय लिया है।
मेधा ने चेतावनी दी है कि इसके बाद भी अगर उचित कार्रवाई नहीं हुई तो अनिश्चितकालीन सत्याग्रह या भूख हड़ताल शुरू कर देंगी।
वेतन, यातायात और राशन की मांग
मेधा पाटकर ने एक मांगपत्र जारी करते हुए कहा है कि रेल परिवहन, बस की व्यवस्था सुचारू कर मजदूरों को पैदल चलने से बचाया जाए। कई मजदूर 1700 किलोमीटर तक पैदल चलकर अपने घर लौट रहे हैं। आदिवासी और दलित मजदूरों पर यह एक तरह का अन्याय है। कई श्रमिक बिना वेतन लिए ही घर की तरफ निकलने को मजबूर हुए, उन्हें मार्च महीने का वेतन दिलाया जाए। मांगपत्र में प्रवासी मजदूरों के पंजीयन और बिना राशन कार्ड के मुफ्त या सस्ती दर पर राशन देने की मांग भी शामिल है।
बसों का किराया वसूलने से नाराजगी
मेधा पाटकर बताती हैं कि पिछले कई महीने से मजदूर तरह-तरह की परेशानी झेल रहे हैं। तहसीलदार और अतिरिक्त जिला अधिकारी (एसडीएम) व्यवस्था करने में असमर्थता जता रहे हैं। अधिकारियों ने कुछ मजदूरों के लिए वाहन की व्यवस्था की, लेकिन फिर आधे रास्ते में मजदूरों से किराया वसूलकर उतार दिया गया। अनशन स्थल पर हाईवे पर चल रहे मजदूर भी रुक रहे हैं और उनकी कहानी सुनकर पता चलता है कि पहले ही उन्हें वेतन नहीं मिला और कारखानों से भगाया गया। सैकड़ों किलोमीटर चलने के बाद मजदूरों के चप्पल टूट गए हैं। अलीराजपुर और बड़वानी के आदिवासी गुजरात के जामनगर, राजकोट, जूनागढ़, द्वारका और अमरेली में फंसे हैं। मजदूरों पर वहां से निकलने का दबाव है। पाटकर आरोप लगाती हैं कि मध्यप्रदेश सरकार का दूसरे राज्यों के साथ समन्वय नहीं है। इस बीच उत्तर प्रदेश सरकार कभी सीमा बंद रखती है तो कभी खोल देती है। इससे मजदूरों की परेशानी बढ़ रही है।