''मैंने जबसे होश सम्हाला है चिकनकारी में ऐसा बुरा दौर नहीं देखा, कारीगर परेशान हैं, उनके पास काम नहीं है। रोजाना फोन करके परेशानी बयां करते हैं, कई दफा रो भी देते हैं। यह सब जल्द खत्म हो वरना गरीब कारीगर तबाह हो जाएंगे।'' यह बात कहते हुए अच्छन मिर्जा का गला भर आता है।
अच्छन मिर्जा (65 साल) पेशे से डिजाइनर हैं। उत्तर प्रदेश के लखनऊ की प्रसिद्ध चिकनकारी के सैंकड़ों डिजाइन उन्होंने निकाले हैं, लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने उनका काम ठप कर दिया है।
अच्छन उन लोगों में से हैं जो डिजाइन बनाते हैं और फिर इस डिजाइन को कपड़ों पर उकेरने का काम लखनऊ के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में बैठे कारीगर करते हैं। इन कारीगरों में बड़ी संख्या में वो महिलाएं शामिल हैं जो घर का काम निपटाने के बाद गांव और कस्बों में बने सेंटर पर जाकर काम करती हैं। लॉकडाउन से पहले गरीब तबकों से जुड़ी इन महिलाओं की एक दिन की कमाई 80 से 100 रुपए हो जाती थी, जोकि अब नहीं हो रही।
लखनऊ से 11 किलोमीटर की दूरी पर कसमंडी कलां गांव स्थित है। इस गांव में करीब 300 परिवार चिकनकारी के काम से जुड़े हैं। इन परिवारों का भरण पोषण इसी काम पर निर्भर करता है। लॉकडाउन के बाद से ही बाजार से काम नहीं आ रहा और ऐसी स्थिति में इनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया है।
इस गांव की रहने वाली सन्नो (37 साल) भी चिकन कारीगर हैं। सन्नो बताती हैं, ''हम रोज कमाने खाने वाले लोग हैं। लॉकडाउन से पहले महीने के तीन हजार तक कमा लेती थी। अब कमाई नहीं हो रही। मेरी कमाई से घर का राशन आ जाता था। पति मजदूरी करते हैं, वो भी बाहर नहीं जा पा रहे। इस कोरोना ने सब बर्बाद कर दिया है। अब जैसे-तैसे उधार लेकर घर चला रही हूं।''
यह परेशानी सिर्फ सन्नो तक सीमित नहीं है। लखनऊ के आस पास कसमंडी कलां जैसे सैकड़ों गांव हैं जहां रहने वाले चिकन कारीगर इसी तरह की परेशानी का सामना कर रहे हैं।
लखनऊ के चिकानकारी का काम अव्यवस्थित है। इन कारीगरों के बैंक अकाउंट तक नहीं होते हैं। सारा कारोबार रोज की दिहाड़ी के तौर पर निर्भर करता है। आज काम किए तो पैसा है, कल काम नहीं किए तो पैसा नहीं है। इस असंगठित क्षेत्र से जुड़े कारीगर इतने गरीब होते हैं कि उनके लिए 80 से 100 रुपए की कमाई बहुत मायने रखती है। ऐसे हाल में जब लॉकडाउन की वजह से इन्हें काम नहीं मिल रहा तो इनकी स्थिति और खराब हो सकती है।
ऑक्सफेम की 9 अप्रैल को प्रकाशित रिपोर्ट में भी इस बात की आशंका जाहिर की गई है कि कोरोना वायरस की वजह से गरीबी बढ़ेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर के करीब 50 करोड़ लोग गरीबी के दलदल में फंस जाएंगे। वहीं, इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन (आईएलओ) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना वायरस की वजह से अर्थव्यवस्था को तबाही का सामना करना पड़ सकता है। इसकी वजह से असंगठित क्षेत्र से जुड़े करीब 40 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जा सकते हैं।
यह रिपोर्ट्स जिस असर की बात कर रही हैं वो असर अब जमीन पर भी दिखने लगा है। कसमंडी कलां गांव की ही रहने वाली तसनीम (23 साल) भी चिकानकारी के काम से जुड़ी हैं। वो बताती हैं, ''मैं पहले खुद कारीगर के तौर पर काम करती थी। बाद में अपनी बचत से छोटी पूंजी लगाकर चिकनकारी का काम शुरू किया था। मेरे सेंटर पर कई महिलाएं आतीं और दिन का 80 से 100 रुपए कमा लेती थीं, लेकिन अब काम तो खराब हो चुका है। यह हालात कबतक ठीक होंगे पता नहीं।''
तसनीम बताती हैं कि ''लॉकडाउन के बाद से ही मेरे सेंटर पर काम करने वाली कई महिलाओं ने पैसे उधार लिए हैं, इस वादे पर कि जब सब ठीक होगा तो वो काम करके इस कर्ज को चुकाएंगी।''