“हमारे यहां घड़े बनकर रखे हुए हैं, लेकिन हम बेच नहीं पा रहे हैं। पहले गली-गली घूमकर बेचते थे, इतवारी बाजार में बैठकर भी बेचते थे, लेकिन अब यह नहीं कर पा रहे हैं। सरकार की ओर से दो महीने का चावल मुफ्त मिला है, जिस से चावल की कमी नहीं है। लेकिन अगर घड़े नहीं बेच पाएंगे तो सब्जी, तेल कैसे खरीदेंगे? पैसा तो चाहिए ही?”- यह कहना है, डोमिन कुम्भकार की।
छत्तीसगढ़ के धमतरी शहर में करीब 90 परिवार ऐसे कुम्हारों का है और उनका यह पारम्परिक पेशा आज भी इनकी रोजी रोटी का साधन है।
कुम्भकार बताती हैं, “हमारे घर में हम पति-पत्नी समेत 5 लोग हैं, अभी तक एक तरह से काम भी बंद था, लेकिन अभी दो दिन से सुबह काम शुरू किया है, लेकिन घड़े बेच नहीं पा रहे हैं। अब सुबह से 12 बजे तक लॉकडाउन में छूट दी जा रही है। जैसे, सब्जी बेचने की छूट दी जा रही है, उसी तरह अगर हमें भी घड़ा आदि बेचने की इजाजत दी जाती तो हमारी रोजी-रोटी चलती रहती।”
यही नहीं पास बैठे एक बुजुर्ग कुम्हार ने कहा, “अभी कुछ सालों से मौसम भी साथ नहीं दे रहा है, पिछले साल दिवाली के समय बारिश हुई, जिसके चलते दीये नहीं बिक पाए। और अब यह कोरोना के चलते गर्मी के मौसम में घड़े भी नहीं बेच पा रहे हैं।”
एक अनुमान के अनुसार इस समय राज्य में 20 हजार परिवार कुम्हारों का ऐसा है जो आज भी इस पारंपरिक पेशे से अपनी रोजी रोटी का कम रहे हैं। इनमें से ज्यादातर लोग कम पढ़े लिखे हैं और बचपन से यही काम कर रहे हैं इसलिए इन्हें दूसरा काम आता भी नहीं है।
अप्रैल से शुरू होने वाली गर्मी की वजह से यह सीजन उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। ये लोग इस सीजन का बेसब्री से इंतजार करते हैं और फरवरी से ही इसकी तैयारी करने लगते हैं। कुम्हार परिवार मार्च के दूसरे सप्ताह से घड़े बनाना शुरू करते हैं और अप्रैल से बाजारों में निकलने लगते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से इनके घड़े बन कर तैयार हैं, लेकिन खरीददारी शुरू नहीं हो पाई है।
उनकी मांग है कि सरकार सीजन को देखते हुए घड़े बेचने की इजाजत दे, ताकि उनका साल भर का इंतजाम हो जाए।