ईंट भट्ठा मालिकों की एक अक्टूबर से होने वाली हड़ताल से लाखों मजदूर होंगे प्रभावित

जीएसटी पांच से 12 प्रतिशत किए जाने के विरोध ईंट भट्ठा उत्पादकों ने हड़ताल की घोषणा की है, इससे ईंट भट्ठा मालिक नाराज हैं
ईंट भट्ठा मालिकों की एक अक्टूबर से होने वाली हड़ताल से लाखों मजदूर होंगे प्रभावित
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ब्रिक-फील्ड वर्क यानी ईंट निर्माण कार्य पर बीते एक अप्रैल, 2022 से अतिरिक्त 12 फीसदी जीएसटी लगाया गया है जबकि पहले यह केवल पांच प्रतिशत था। जीएसटी के बढ़ाए जाने के विरोध में देशभर के ईंट भट्ठा मालिकों ने आगामी एक अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 तक अपने इंट भट्ठे बंद रखने की घोषणा की है।

इससे देशभर के लाखों मजदूर प्रभावित होंगे। अकेले उत्तर प्रदेश में ही जहां 19 हजार से अधिक ईंट-भट्ठे हैं और इनमें लगभग 45 लाख मजदूर काम करते हैं। यही नहीं, आगामी एक अक्टूबर से शुरू हो रहे  सीजन में ईंट का निर्माण कम होने से देश का निर्माण सेक्टर भी प्रभावित होगा। यहां ध्यान देने की बात है कि कुल ईंट का 80 प्रतिशत ईंट मिट्टी से बनाई जाती हैं और केवल 20 प्रतिशत ही फ्लाई एश से बनाई जाती है। 

प्रयागराज के ईंट भट्ठा मालिक हरिनारायण शर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि बार-बार सरकार से अपील किए जाने के बावजूद सरकार इस क्षेत्र को राहत प्रदान नहीं कर रही है। साफ शब्दों में कहा जाए तो यह सेक्टर संकट के मुहाने की ओर तेजी से अग्रसर हो रहा है।

वह कहते हैं कि अक्टूबर से शुरू होने वाले आगामी सीजन के दौरान उत्पादन को पूरी तरह से बंद करने का दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय लेने के लिए हमें मजबूर किया गया है। वह कहते हैं कि कि विकासशील देश भारत के निर्माण कार्यों में विभिन्न प्रकार की ईंटों का उपयोग किया जाता है।

कुल ईंट खपत का लगभग 80 फीसदी हर साल मिट्टी की ईंट से ही पूरा किया जाता है और इसी असंगठित क्षेत्र में बड़ी संख्या में मजदूरों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है। ऐसे में सरकार को कम से कम इन मजदूरों की रोजी-रोटी की तो सुध ले।

यही नहीं ईंट भट्ठा उत्पादक उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कोयले की कीमतों में 200 से 300 फीसदी बढ़ोतरी को भी कम किए जाने की मांग कर रहे हैं। वर्ष 2020-21 में कोयले की कीमत आठ से नौ हजार रुपए टन थी।

अब यह 2022 में 18 से 27 हजार रुपये प्रति टन हो गया है। ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश को 12 लाख टन कोयला मिलना था, लेकिन राज्य को पिछले चार सालों में महज 76 हजार टन कोयला ही मिला है। विदेश से आने वाला कोयला और महंगा हो गया है। इसके अलावा यूपी ब्रिक्स एसोसिएशन सरकारी निर्माण में लाल ईंट की आंशिक पाबंदी से भी नाराज है। 

ईंट उत्पादकों का कहना है कि सरकार थर्मल पावर प्लांट को आधार मूल्य पर कोयला उपलब्ध करवाती है। भट्ठा उद्योग को भी आधार मूल्य पर ही कोयला  उपलब्ध करवाना चाहिए। यही नहीं इनका कहना है कि ईंट बिक्री पर अब तक जीएसटी 1 प्रतिशत की दर से लगता था।

1 अप्रैल 2022 से बिना आईटीसी लाभ लिए 6 प्रतिशत तथा आईटीसी लाभ लेने पर 12 प्रतिशत कर दिया गया। यह हमारे लिए बहुत अधिक है। ईंट उत्पादकों ने बताया कि एक हजार ईंटें 7,000 रुपए में बेचने पर मालिक को 840 रुपये जीएसटी देने होंगे।

कोयला के रेट भी बढ़ गए है। एक लाख ईंटों को तैयार करने के लिए करीब 15 टन कोयले की जरूरत होती है। एक टन कोयले पर 16 से 17 हजार रुपये की बढ़ोतरी को पाटना उनके लिए मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।

ध्यान रहे कि अक्टूबर व नवम्बर के लिए भट्ठा उत्पादकों द्वारा अगस्त में ही मजदूरों की बुकिंग शुरू कर दी जाती थी और कोयले का ऑर्डर दे दिया जाता था। मगर इस बार अब तक ईंट उत्पादकों ने न तो कोयले का आर्डर दिया है और न ही मजदूरों की बुकिंग की है।

वर्तमान में ईंट की कीमत साढ़े आठ से नौ हजार रुपये प्रति हजार ईंट है यानी एक ईंट की कीमत करीब नौ रुपये की पड़ रही है। एक ईंट भट्ठे पर औसतन 250 मजदूर काम करते हैं। ईंट-भट्टों पर काम करने वाले मजदूर रोजाना 12-14 घंटे तक काम करते हैं।

अगर ईंट ज्यादा बनेंगी तो मजदूरी भी ज्यादा मिलेगी इसीलिए पेशगी जल्दी चुकाने के लिए मजदूर लगातार काम करते हैं। मजदूरी के नाम पर इन्हें पचास पैसे प्रति ईंट यानी 500 रुपए प्रति एक हजार ईंट दी जाती है,  जबकि एक उत्पादक एक ईंट को वर्तमान में 8 से 9 नौ रुपए में बेचता है।

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