मजदूर दिवस विशेष: काल बनता बढ़ता तापमान, काम के दौरान 240 करोड़ श्रमिकों को करना होगा सामना

हर साल भीषण गर्मी के चलते करीब 2.3 करोड़ लोग काम के दौरान चोटिल होते हैं। इसकी वजह से सालाना 18,970 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है
वैश्विक स्तर पर हर साल 160 करोड़ श्रमिक सूर्य से आने वाले अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन (यूवी) के संपर्क में आते हैं; फोटो: आईस्टॉक
वैश्विक स्तर पर हर साल 160 करोड़ श्रमिक सूर्य से आने वाले अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन (यूवी) के संपर्क में आते हैं; फोटो: आईस्टॉक
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जलवायु परिवर्तन और बढ़ता तापमान एक ऐसी सच्चाई है जिसे आज चाह कर भी झुठलाया नहीं जा सकता। कोई कम तो कोई ज्यादा, लेकिन दुनिया में शायद ही कोई बचा हो जो इससे प्रभावित न हुआ हो। देखा जाए तो यह बढ़ता तापमान उन मेहनतकश लोगों का कहीं ज्यादा इम्तिहान ले रहा है जो कड़ी धूप और खुले आकाश तले पसीना बहाने को मजबूर हैं। इसकी पुष्टि अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने अपनी नई रिपोर्ट ‘इंश्योरिंग सेफ्टी एंड हेल्थ एट वर्क इन चेंजिंग क्लाइमेट’ में भी की है।

संयुक्त राष्ट्र ने अपनी इस नई रिपोर्ट में दुनिया भर के श्रमिकों की सुरक्षा और स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के पड़ते प्रभावों को उजागर किया है। रिपोर्ट का कहना है कि अपने जीवन में काम के दौरान किसी न किसी मोड़ पर 241 करोड़ श्रमिकों को भीषण गर्मी का सामना करने को मजबूर होना पड़ेगा।

इसका मतलब है कि दुनिया के 71 फीसदी श्रमिक या तो बढ़ते तापमान की वजह से गर्मी की मार झेल रहे हैं या उन्हें अपने काम के दौरान कभी न कभी इसका सामना करना पड़ेगा। यदि 2020 के आंकड़ों पर नजर डाले तो दुनिया में कुल श्रमिकों की संख्या 340 करोड़ के आसपास थी। देखा जाए तो साल 2000 में इस बढ़ते तापमान के जोखिम का सामना करने को मजबूर इन श्रमिकों का आंकड़ा 65.5 फीसदी दर्ज किया गया था।

यदि आंकड़ों की मानें तो पिछले दो दशकों में भीषण गर्मी के संपर्क में आने वाले श्रमिकों की संख्या में 34.7 फीसदी का इजाफा हुआ है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान पहले से कहीं ज्यादा मेहनतकश श्रमिकों को अपनी गिरफ्त में ले रहा है।

इतना ही नहीं रिपोर्ट के मुताबिक हर साल भीषण गर्मी के चलते करीब 2.3 करोड़ लोग काम के दौरान चोटिल होते हैं। इसकी वजह से सालाना 18,970 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है। वहीं जो खुशनसीब इन दुर्घटनाओं से बच जाते हैं उनमे से बहुतों को जीवन भर इन चोटों और उसके प्रभावों का दर्द झेलना पड़ता है।

कार्यस्थल पर लगती यह चोटें किस कदर असर डाल रही हैं इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनके कारण हर साल करीब 21 लाख विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों की क्षति हो रही है, जिसकी भरपाई करीब-करीब नामुमकिन है।

काम के दौरान गर्मी का तनाव स्वास्थ्य से जुड़े अन्य खतरों को भी बढ़ा रहा है, इनमें किडनी से जुड़ी बीमारियां शामिल हैं। अनुमान है कि गर्मी के तनाव ने 2.62 करोड़ लोगों को किडनी से जुड़ी बीमारियों का मरीज बना दिया है, जो लम्बे समय से इसका बोझ ढोने को मजबूर हैं। वैश्विक स्तर पर देखें तो बढ़ता तापमान नित नई ऊंचाइयों को छू रहा है, जिससे स्वास्थ्य पर मंडराता खतरा और विकट रूप ले रहा है।

कार्यस्थल पर वायु प्रदूषण के संपर्क में आते 160 करोड़ मेहनतकश

यदि पिछले दस महीनों को देखें तो एक भी महीना ऐसा नहीं रहा जब बढ़ते तापमान ने रिकॉर्ड न बनाया हो। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि 2030 से 2050 के बीच जलवायु सम्बन्धी खतरे जैसे मलेरिया और पानी की कमी हर साल ढाई लाख अतिरिक्त मौतों की वजह बनेंगे।

रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि जलवायु में आते इन बदलावों का प्रभाव सिर्फ बढ़ती गर्मी और उसके खतरों तक ही सीमित नहीं है। यह स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेकों समस्याओं को जन्म दे रहा है, जिनमें से कई से तो श्रमिक एक साथ जूझने को मजबूर हैं।

श्रमिकों को जलवायु परिवर्तन से जुड़े दूसरे खतरों जैसे कैंसर, ह्रदय और सांस सम्बन्धी बीमारियों, गुर्दे की समस्याओं और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विकारों के साथ-साथ अन्य समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। बढ़ता तापमान श्रमिकों के देखने की क्षमता को भी नुकसान पहुंचा रहा है। मोतियाबिंद और रेटिना से जुड़ी समस्या जैसे मैक्यूलर डीजनरेशन जैसे विकार बेहद आम होते जा रहे हैं, जो अक्सर इन श्रमिकों के स्वास्थ्य और उनकी कमाई पर असर डालते हैं।

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा जारी एक अन्य रिपोर्ट 'आई हेल्थ एंड द वर्ल्ड ऑफ वर्क' में सामने आया है कि वैश्विक स्तर पर करीब 1.3 करोड़ लोग अपने काम-धंधों के कारण दृष्टि संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इतना ही नहीं हर साल काम के दौरान 35 लाख मजदूरों को आंखों में लगी चोट को सहना पड़ता है। देखा जाए तो यह चोटें कार्यस्थल पर लगने वाली सभी गैर-जानलेवा चोटों का एक फीसदी है।

रिपोर्ट की मानें तो आंखों की सेहत श्रम बाजार को भी काफी हद तक प्रभावित करती है। यही वजह है कि जिन श्रमिकों को दृष्टि सम्बन्धी विकार होते हैं, उनको अन्य श्रमिकों की तुलना में काम मिलने की सम्भावना 30 फीसदी तक कम होती है। ऐसे में आंखों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए कहीं ज्यादा कदम उठाए जाने की जरूरत है।

यदि भारत की बात करें तो वो भी बढ़ते तापमान और जलवायु में आते इन बदलावों से सुरक्षित नहीं है। आज भी देश की बड़ी आबादी खेती-किसानी में लगी है। खेती का यह काम आसान नहीं। इस दौरान किसानों और मजदूरों को कड़ी धूप, बारिश, तूफान में घंटों काम करना पड़ता है। उसके साथ-साथ कीटनाशकों आदि के संपर्क में आने का जोखिम भी लगातार बना रहता है।

देश की करीब 90 फीसदी श्रम शक्ति अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़ी है। ज्यादातर मामलों में इन श्रमिकों को चिलचिलाती धूप, बारिश, आंधी-तूफान के बीच खुले में काम करना पड़ता है। उनके लिए न तो पर्याप्त सुविधाएं हैं और न ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम। ऐसे में इन किसानों, श्रमिकों को हर दिन अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए खतरों से दो-चार होना पड़ता है।

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी एक अन्य रिपोर्ट में 2024 के दौरान वैश्विक बेरोजगारी दर में थोड़ी वृद्धि होने की आशंका भी जताई है। इसका मतलब है कि 2024 में 20 लाख अतिरिक्त श्रमिकों को रोजगार की तलाश करनी होगी। अनुमान है कि वैश्विक बेरोजगारी दर 2023 में 5.1 फीसदी से बढ़कर 2024 में 5.2 फीसदी पर पहुंच सकती है।

सालाना कीटनाशकों के संपर्क में आ रहे 87 करोड़ से ज्यादा किसान, श्रमिक

एक तरफ जहां कृषि, निर्माण, ईंट भट्टों और अन्य क्षेत्रों से जुड़े लोगों को जहां अच्छी खासी मेहनत करनी पड़ती है। वहीं साथ ही काम के दौरान लगातार गर्मी के तनाव से भी जूझना पड़ता है। जो उनके स्वास्थ्य पर गंभीर असर डालता है। ऊपर से उनके लिए सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं का आभाव जोखिम को और बढ़ा देता है।

भारत में किसानों और कृषि श्रमिकों की स्थिति किस कदर खराब है इसका अंदाजा नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों से लगा सकते हैं। इनके मुताबिक भारत में हर घंटे एक किसान या कृषि श्रमिक आत्महत्या कर रहा है। यदि 2022 के लिए जारी इन आंकड़ों को देखें तो उस वर्ष में 11,290 किसानों और कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की है। यदि 2021 से तुलना करें तो इन मौतों में 3.7 फीसदी का इजाफा हुआ है।

बढ़ते तापमान में आसान नहीं किसानों की राह; फोटो: आईस्टॉक

आईएलओ के अनुसार जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान के साथ-साथ कार्यस्थल पर वायु प्रदूषण, कीटनाशक और कैंसर जैसी स्वास्थ्य समस्याएं भी गंभीर रूप लेती जा रही हैं।

आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर हर साल 160 करोड़ श्रमिक सूर्य से आने वाले अल्ट्रावॉयलेट रेडिएशन (यूवी) के संपर्क में आते हैं, जो कहीं न कहीं हर साल त्वचा संबंधी कैंसर से होने वाली 18,960 से अधिक मौतों के लिए जिम्मेवार है।

इसी तरह 160 करोड़ मेहनतकश श्रमिक कार्यस्थल पर वायु प्रदूषण के संपर्क में आते हैं। जो किसी न किसी रूप में हर साल 860,000 श्रमिकों की जान ले रहा है।

रिपोर्ट में इस बात को लेकर भी गहरी चिंता जताई गई है कि 87 करोड़ से ज्यादा किसान और श्रमिकों के कीटनाशकों के संपर्क में आ रहे हैं, जो हर साल तीन लाख से ज्यादा जिंदगियों को निगल रहा है। इसी तरह काम के दौरान परजीवी और वेक्टर जनित बीमारियों के संपर्क में आने से हर साल 15,000 श्रमिकों की मौत हो रही है।

जलवायु परिवर्तन स्पष्ट रूप से श्रमिकों के स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर रहा है। और समय के साथ यह समस्याएं कहीं ज्यादा विकराल रूप लेती जा रही हैं। ऐसे में यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम इन चेतावनियों को गंभीरता से लें। आईएलओ ने भी इस बात पर भी जोर दिया है कि काम के दौरान स्वास्थ्य और सुरक्षा को जलवायु परिवर्तन के प्रति हमारी प्रतिक्रियाओं, नीतियों और कार्यों में एकीकृत किया जाना चाहिए। कार्यस्थल पर श्रमिकों के लिए सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण प्रदान करना बेहद जरूरी है।

रिपोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने सरकारों को जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से निपटने के लिए  अपने कानूनों को सशक्त करने और श्रमिकों की सहायता पर जोर देने की भी बात कही है। कुछ देशों में कानूनी तौर पर उन श्रमिकों की निगरानी पर जोर दिया जा रहा है, जो काम के दौरान अक्सर गर्मी, धूप, वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य से जुड़े अन्य खतरा के संपर्क में आते हैं।

हालांकि इसके बावजूद अभी भी देशों में इसको लेकर पर्याप्त कानूनों का आभाव है। जहां कानून हैं भी, वहां इस मुद्दे पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है, ताकि जिस तरह से जलवायु से जुड़े खतरे बढ़ रहे हैं उससे इन मेहनतकश किसानों और श्रमिकों के स्वास्थ्य और आर्थिक हितों को सुरक्षित रखा जा सके।

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