स्थायी पर्यटन की ओर बढ़ता भारत, ये हैं चुनौतियां
दुनिया भर में पर्यटन आर्थिक विकास और रोजगार के अवसर उत्पन्न करने वाला मुख्य सेक्टर है, जो भारत की समृद्ध संस्कृति एवं प्राकृतिक धरोहर को बढ़ावा देते हुए आजीविका के अवसर उत्पन्न करता है।
वर्ल्ड ट्रैवल एण्ड टूरिज्म काउंसिल के अनुसार, 2024 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पर्यटन का योगदान 6.8 फीसदी यानि 256.1 अरब डॉलर था। इसी तरह दुनिया की बात करें तो 2023 में दुनिया के जीडीपी में इस सेक्टर का योगदान 10 फीसदी यानि 104 खरब डॉलर रहा। यह उद्योग भारत में 4.54 करोड़ लोगों को नौकरियां प्रदान करता है, जो भारतीय कार्यबल का 9.2 फीसदी हिस्सा बनाते हैं।
दुनिया भर में पर्यटन सेक्टर 34.8 करोड़ लोगों को रोजगार देता है, यह आंकड़ा कुल कार्यबल का 10.4 फीसदी है। केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में 1.09 करोड़ विदेशी पर्यटक भारत पहुंचे, जिन्होंने भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 30 अरब डॉलर का योगदान दिया।
हालांकि बड़े पैमाने पर पर्यटन के इस विकास के बीच पर्यावरण को बहुत अधिक नुकसान पहुंचा है, जो जैव विविधता और संस्कृति के लिए संकट का कारण बन गया है। इस बीच पर्यटन के चलते नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए स्थायी पर्यटन की अवधारणा ज़ोर पकड़ रही है। केप टाउन डेक्लेरेशन (2002) और मैग्ना कार्टा लंदन (2020) के अनुसार स्थायी पर्यटन ज़िम्मेदाराना यात्रा को बढ़ावा देता है, जो धरती और लोगों दोनों के लिए फायदेमंद है। स्थायी पर्यटन के कारण पर्यावरण और संस्कृति को कम नुकसान पहुंचता है, स्थानीय अर्थव्यवस्था तथा सामुदायिक विकास को बढ़ावा मिलता है।
भारत ने भी विभिन्न पहलों के माध्यम से इन विश्वस्तरीय लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, जैसे ‘स्वदेश दर्शन’ जो पर्यावरण के अनुकूल टूरिस्ट सर्किट विकसित करता है, ‘प्रसाद’ जो तीर्थस्थलों के स्थायी विकास पर ध्यान केन्द्रित करता है तथा ‘अतुल्य भारत हरित पहल’ जो स्थानीय समुदायों को समर्थन प्रदान करने के लिए पर्यावरण के अनुकूल यात्रा को बढ़ावा देती है।
इन सब प्रयासों के बावजूद कई तरह की चुनौतियां हैं, खासतौर पर दूर-दराज के इलाकों में, जो प्रगति में रूकावट बन जाती हैं। जैसे कूड़े का प्रबन्धन ठीक से न होना, जल संरक्षण, गोवा और हिमालय जैसे स्थनों पर पर्यटकों की बहुत अधिक भीड़- ये सभी पहलु स्थायी विकास में बाधा उत्पन्न करते हैं।
इसके अलावा पर्यावरण संरक्षण के लिए उचित नियमों की कमी, बाहरी लोगों और कंपनियों को आर्थिक फायदा मिलना, छोटे कारोबारों के लिए सीमित फंडिंग और समुदाय की ओर से सहयोग की कमी भी इस दृष्टि से बड़ी रूकावटें हैं। इन चुनौतियों को हल कर स्थायी पर्यटन की पूर्ण क्षमता का लाभ उठाने के लिए भारत को बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाना होगा।
समुदाय की भागीदारी और स्थानीय स्वामित्व जैसी अवधारणाएं इन समस्याओं को हल करने में कारगर हो सकती हैं। जब पर्यटन में समुदाय की हिस्सेदारी होती है, तो इसके प्रति ज़िम्मेदारी की भावना खुद-बखुद उत्पन्न हो जाती है। समुदाय अपनी संस्कृति और प्राकृतिक संपदा को सुरक्षित रखने में सबसे अच्छी भूमिका निभा सकते हैं। वे अपने स्थानीय संसाधनों को सुरक्षित रखते हुए पर्यटन को बढ़ावा देते हैं, ताकि क्षेत्र को नुकसान न पहुंचे। इस तरह स्थानीय समुदायों की भागीदारी से लोगों और पर्यावरण दोनों को फायदा मिलता है।
इस तरह का दृष्टिकोण जापान और स्विट्ज़रलैण्ड सहित कई देशों में सफल साबित हुआ है, जहां ‘डेस्टिनेशन मैनेजमेन्ट ओर्गेनाइजेशन’ स्थानीय समुदायों को पर्यटन के संसाधनों के प्रबन्धन में सक्षम बनाते हैं। वे सुनिश्चित करते हैं कि पर्यटन सेक्टर स्थानीय परम्पराओं, संस्कृति एवं पर्यावरणी क्षमता के बीच तालमेल बनाए रखते हुए विकसित होता रहे। भारत भी इसी तरह के मॉडल्स अपना सकता है, और सभी हितधारकों के लिए पर्यटन के फायदे को सुनिश्चित कर सकता है।
आर्थिक फायदों के दायरे से बढ़कर देखें तो स्थानीय लोगों की भागीदारी पर्यटन के अनुभव को बेहतर बनाती है। इसका उदाहरण हैं गुजरात में होडका और तेलंगाना में पोचमपल्ली, जहां स्थानीय समुदायों ने पर्यटन पर नियन्त्रण रखा और अपनी पारम्परिक कारीगरी एवं जीवनशैली को बनाए रखते हुए आगंतुकों को उत्कृष्ट अनुभव प्रदान किया है। इससे न सिर्फ स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन मिला बल्कि संस्कृति को सुरक्षित रखने में भी मदद मिली।
पर्यटन के अनुभव को बेहतर बनाकर और भीड़ प्रबन्धन की योजनाओं को लागू कर पर्यटन की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। सख्त दृष्टिकोण के बजाए आसानी से स्वीकार किया जा सकने वाला प्रत्यास्थ मॉडल इस दृष्टि से अधिक उपयोगी है। इसमें पर्यटन को लेकर स्थानीय लोगों की समझ और स्वीकार्यता को ध्यान में रखते हुए सुनिश्चित किया जाता है कि वे स्थानीय पर्यटन को आकार देने में मुख्य निर्णय-निर्माता की भूमिका निभाएं।
इसके अलावा समुदाय की भागीदारी बढ़ाने से बुनियादी स्तर पर स्थायी प्रथाओं को शामिल करना आसान हो जाता है। सिक्किम का ज़ीरो-वेस्ट टूरिज़्म मॉडल इस बात का उदाहरण है कि कैसे समुदाय स्थायित्व (सस्टेनेबिलिटी) में योगदान दे सकते हैं। इसी तरह केरल का रिस्पॉन्सिबल टूरिज़्म मिशन भी समुदायिक पहलों जैसे पैपर एण्ड स्ट्रीट के माध्यम से सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखते हुए रोज़गार उत्पन्न करने की क्षमता को दर्शाता है। ये सभी प्रयास पर्यटन में बदलाव लाने और स्थायित्व को बढ़ावा देने में समुदाय की भागीदारी के महत्व को दर्शाते हैं।
इस साल हाल ही में 11 दिसंबर को मनाये गए, अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस की थीम ‘माउन्टेन सोलयुशन्स फॉर सस्टेनेबल फ्यूचर’ स्थायी पर्यटन की आवश्यकता पर ज़ोर देती है। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस कहते हैं ‘स्थायी पर्यटन समुदायों में बदलाव लाने- नौकरियां उत्पन्न करने, समावेशन को बढ़ावा देने तथा स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने की क्षमता रखता है। संस्कृति एवं प्राकृतिक धरोहर को सुरक्षित रखकर यह तनाव को कम करने और सद्भावना को बढ़ाने में योगदान देता है।’’ यह दृष्टिकोण बताता है कि किस तरह स्थायी पर्यटन आर्थिक फायदों के दायरे से बढ़कर समुदाय में शांति एवं सद्भाव को प्रोत्साहित कर सकता है।
भारत का पर्यटन सेक्टर तेजी से विकसित हो रहा है, ऐसे में स्थायी प्रथाओं पर ध्यान देकर हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि पर्यटन, संसाधनों को कम करने के बजाए, उन्हें बढ़ाने और संरक्षित रखने में योगदान दे। इस दिशा में समुदाय की भागीदारी कारगर हो सकती है और पर्यटन में स्थायित्व को बढ़ावा दे सकती है। समुदाय-आधारित स्वीकार्यता दृष्टिकोण भारत के आर्थिक, सांस्कृतिक एवं पर्यावरणी स्थायित्व के लक्ष्यों को हासिल करने में और भारत की अखंडता को बनाए रखने में उपयोगी होगा।
(लेखिका पहले इंडिया फाउन्डेशन की एसोसिएट फैलो हैं। लेख में व्यक्त उनके निजी विचार हैं)