आईएलओ रिपोर्ट में दिखी भारतीय महिलाओं की सच्चाई!

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्बारा जारी रिपोर्ट में महिलाओं को केवल घरेलू कामकाज तक सीमित बताया गया है, लगभग यही स्थिति पाकिस्तान, बांग्लादेश की भी बताई गई है
File Photo: Samrat Mukharjee
File Photo: Samrat Mukharjee
Published on

भारत में पिछले कुछ दशकों में महिलाओं ने भले ही कई क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया हो, लेकिन आज भी उनकी स्थिति सामाजिक के साथ-साथ श्रम भागीदारी में बहुत अच्छी नहीं है। महिलाओं की भागीदारी दुनिया के सबसे निचले स्थान पर है। यहां महिला को सिर्फ एक देखभालकर्ता के तौर पर जाना जाता है, जबकि पुरूष को ब्रेड विजेता के तौर पर। 

अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन द्बारा जारी रिपोर्ट विश्व रोजगार और सामाजिक दृष्टिकोण-रूझान 2020 में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश व उत्तरी अफ्रीका के देशों मैक्सिको, मिश्र और ट्यूशेनिया में भी यही स्थिति है। सामाजिक स्तर पर महिलाओं की खराब स्थिति के चलते ही महिलाओं का रोजगार जनसंख्या औसत भी बेहद खराब श्रेणी है, जो खुले तौर पर लैंगिग असमानता को प्रदर्शित करता है। 

 रिपोर्ट में लैंगिग असमानता के लिए भारत जैसे देशों में रोजगार की अधिकता को भी जिम्मेदार माना गया है, लेकिन इसमें महिलाओं की भागीदारी नहीं बढ़ना चिंताजनक है। इसकी वजह से समाज में लैंगिक समानता के खिलाफ सांस्कृतिक प्रतिरोध दिखता है। रिपोर्ट के अनुसार निम्न आय वाले देशों का रोजगार जनसंख्या अनुपात इस बात को दर्शाता है कि यहां गरीबी अधिक है। खासकर, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की स्थिति और भी खराब है। इसके लिए जरूरी है कि सभी सक्षम घरेलु सदस्यों को सक्रिय आर्थिक गतिविधि में शामिल होना पड़ेगा। आईएलओ की रिपोर्ट में लैंगिक अनुपात के बीच बढ़ते गैप को समाज में समानता को बढ़ावा देने वाले प्रगतिशील सामाजिक मानदंडों के लिए अच्छा संकेत नहीं माना गया है। 

 रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे देशों में महिलाएं अपने समय का काफी हिस्सा ऐसे कार्यों में खर्च करती हैं, जिन्हें काम ही नहीं समझा जाता है। उसे महज उनके कर्तव्यों का विस्तार मान लिया जाता है। ऐसे कामों का बड़ा हिस्सा अवैतनिक होता है। महिलाओं द्बारा किए जाने वाले कठिन परिश्रम के बावजूद अवैतनिक श्रम में बढ़ोतरी हो रही है, उन पर काम का बोझ बढ़ रहा है। यह सब काम अनौपचारिक गतिविधियों के अंतर्गत आता है। कृषि क्षेत्र में भी उन्हें केवल अवैतनिक देखभाल कर्ता की ही जिम्मेदारी निभानी पड़ती है। 

 श्रमबल में भी घटा महिलाओं का भागीदारी औसत

 श्रम बाजार में महिला श्रमबल का भागीदारी औसत भी गिरा है। आईएलओ की रिपोर्ट में आने वाले साल में इसमें और गिरावट का अनुमान लगाया गया है। रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर 1994 में महिलाओं का श्रमबल भागीदारी औसत 51.2 फीसदी था, जो 2019 में घटकर 47.2 रह गया, जबकि 2021 में इसके घटकर 46.8 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, उत्तरी अफ्रीका के देशों मैक्सिको, मिश्र और ट्यूशेनिया व इस वर्ग के आय वाले देशों में यह स्थिति और खराब है। ऐसे देशों में 1994 में महिलाओं का श्रम बल भागीदारी का औसत 38.5 फीसदी था, जो 2019 में घटकर 34.1 फीसदी रह गया और 2021 में इसके और घटकर 34 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। भारत की स्थिति की बात करें तो महिलाओं के श्रमबल भागीदारी औसत में गिरावट का आकड़ा नेशनल सैंपल सर्वे में भी सामने आ चुका है। नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट में 2011-12 में जहां महिला श्रम बल भागीदारी का औसत 31.2 फीसदी था, वहीं 2017-18 में यह औसत घटकर महज 23.3 फीसदी तक रह गया। यह गिरावट ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत तेजी से दर्ज की गई तथा वहां 2017-18 में महिलाओं की भागीदारी में 11 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in