
हिमाचल सरकार ने प्राकृतिक खेती से उत्पादित गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को 40 से बढ़ाकर 60 रुपए प्रति किलोग्राम करने की घाेषणा की है। साथ ही, मक्का के समर्थन मूल्य में भी 10 रुपए बढ़ाते हुए 40 रुपए प्रति किलोग्राम किया गया है। 17 मार्च 2025 को विधानसभा में हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने वित्त मंत्री के तौर पर अपना बजट पेश किया।
उन्होंने दावा किया कि प्राकृतिक गेहूं और मक्का के लिए घोषित यह मूल्य देशभर में सबसे अधिक है। इसके अलावा सरकार ने पहली बार कच्ची हल्दी के लिए 90 रुपए का समर्थन मूल्य तय किया है।
बजट में इस वर्ष 1 लाख किसानों को रसायनरहित प्राकृतिक खेती से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। राज्य ने मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम ) की दिहाड़ी में 20 रुपए बढ़ाकर 320 रुपए भी किया है।
बजट में ऋण लेने वाले किसानों को राहत देने के लिए प्रदेश सरकार ने कृषि ऋण ब्याज अनुदान योजना लाने की घोषणा की है। इसके तहत ऐसे किसान जिनकी जमीन नीलामी की कगार पर आ गई हो, उनके द्वारा लिए गए 3 लाख रुपए तक के कृषि ऋण को चुकाने हेतु, सरकार बैंकों के माध्यम से वन टाइम सेटलमेंट योजना लाएगी।
इस योजना के तहत मूलधन पर लगने वाले ब्याज के 50 प्रतिशत हिस्से का वहन सरकार द्वारा किया जाएगा। इस योजना के लिए 50 करोड़ रुपए व्यय किए जाएंगे।
बजट को पेश करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि हम नेचुरल और ग्रीन हिमाचल बनाने जा रहे हैं और हम लंबे समय से अपने वनों की रक्षा करते हैं, इसलिए हमें नार्थ इंडिया के लंग्स भी कहा जाता है। हम मिट्टी, पानी, शुद्ध वायु, अच्छी जलवायु के रूप में देश को देते हैं। हिमाचल प्रदेश की इकॉलॉजी सर्विस को देश के पर्यावरण में योगदान के रूप में देखा जाए तो एक अनुमान के अनुसार वह प्रतिवर्ष लगभग 90 हजार करोड़ रुपए बनेगा। सरकार इसका एक तकनीकी व वैज्ञानिक मूल्यांकन करवा रही है।
उन्होंने कहा कि दुःख है कि अभी तक हमारी इस ऑपरच्युनिटी कॉस्ट की कोई भरपाई नहीं हो पाई है। इसलिए हमारी सरकार हिमाचल प्रदेश के इस बहुमूल्य योगदान को भारत सरकार व 16वें वित्तायोग के समक्ष दृढ़ता से रखेगी और इसकी भरपाई के लिए राशि की मांग की जाएगी।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास व ग्रीन हिमाचल के सपने को साकार करने के लिए वन क्षेत्र का विस्तारीकण किया जाएगा। वर्ष 2025-2026 के लिए 5 हजार हैक्टेयर में वृक्षारोपण का लक्ष्य तय किया गया है, जिसमें जंगली फलों के पौधों और अन्य फलदार पौधों को प्राथमिकता दी जाएगी।
इसके अलावा वन प्रबंधन तथा वन क्षेत्र विस्तार में समुदायों की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए ”राजीव गाँधी वन संवर्द्धन योजना“, लाने की घोषणा भी मुख्यमंत्री द्वारा की गई है। इस योजना में युवक मण्डलों, महिला मंडलों तथा स्वयं सहायता समूहों को बंजर भूमि पर वृक्ष, फलदार एवं अन्य उपयोगी पौधों के वृक्षारोपण और उनकी सुरक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके अलावा सरकार ने कॉरपोरेट कंपनियों और घरानों को सीएसआर गतिविधियों के तहत वनों को गोद लेने की योजना लाने की घोषणा की है।
राज्य सरकार जल संरक्षण के माध्यम से पिछड़े क्षेत्रों में 100 जलवायु-संवेदनशील गांवों की पहचान कर उनमें क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर, रिन्यूवल एनर्जी माईक्रोग्रिड और क्लाइमेट रेजीलिएंट विलेज कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा की गई है। वहीं 2030 तक हिमाचल प्रदेश को प्लास्टिक न्यूट्रल हिमाचल बनाने के लक्ष्यों में भी तेजी लाने की घोषणा की गई है।