तालिबानी हुकूमत के पिछले अफीम प्रतिबंध के बाद बड़ी मुश्किल से अरबों डॉलर के इस व्यापार ने अपने को उबारा था। और अब तालिबान सौर ऊर्जा से चलने वाले पानी के पंपों को बंद कर अफीम की फसलों को सुखाने की कोशिश कर रहा है। वह भी जब देश भीषण आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है।
ध्यान रहे कि अफगानिस्तान के लिए सालों साल से अफीम इतना बड़ा दैत्य रहा है कि इसे अब तक नहीं मारा जा सका है। एक के बाद एक अफगान सरकारों ने अफीम उत्पादन और तस्करी पर रोक लगाने का संकल्प लिया, लेकिन सफल न हो सके।
हालांकि यह सच्चाई है कि 1990 के दशक की तालिबान सरकार ने किसी तरह से अफीम की खेती को कम करने में सफल अवश्य रही थी। हालांकि इस सच्चाई से भी मुंह नहीं मोड़ा सकता है कि अफीम पर प्रतिबंध लगाने वाली तालिबानी सरकार 2001 में अमेरिका के नेतृत्व वाले आक्रमण के बाद से अफीम और इसकी तस्करी ने उसके 20 साल के विद्रोह को जिंदा रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अब दो दशक के बाद एक बार फिर से अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में वापस आने के बाद उनके विद्रोही जो अब राजनेता बन गए है, उनके सामने अफीम की खेती को जड़मूल से खत्म करने की चुनौती आन खड़ी हुई है। इसी बात को ध्यान में रखकर तालिबानी सरकार ने गत 3 अप्रैल 2022 को घोषणा की कि अब अफीम की खेती करना गैरकानूनी होगा।
इसका उल्लंघन करने वालों को शरिया कानून के तहत दंड दिया जाएगा। लेकिन अब यह बात ध्यान में रखनी होगी कि अफगानी सरकार को अब अफीम पर लगाए प्रतिबंध को लागू करना और कठिन होगा क्योंकि अफीम उगाने वाले अधिकांश किसान अब हरित ऊर्जा के माध्यम से अफीम की खेती कर रहे हैं और इसके चलते देश में डीजल की खपत कम होने से प्रदूषण के स्तर में भारी कमी आई है।
यही नहीं तेजी से घटते रेगिस्तानी जल स्त्रोतों के आसपास सस्ते और अत्याधिक कुशल सौर पैनलों द्वारा संचालित पानी के पंप गहराई तक से पानी निकालने में सक्षम साबित हो रहे हैं। सौर पैनलों द्वारा संचालित पानी के पंपों ने अब साल दर साल बंपर अफीम की फसल पैदा करने में मदद की है।
अब सौर ऊर्जा दक्षिण के अफगानी किसानों के जीवन के लिए एक आनिवार्य जरूरत बन गई है। क्योंकि ये किसान पानी के पंप से केवल अफीम ही नहीं उगाते बल्कि इसके माध्यम से अपने घरों में बिजली भी जलाते हैं।
यही नहीं वे इसके अलावा गेहूं, अनार, अंगूर जैसी फसलों का भी उत्पादन करते हैं। इसके अलावा अपने रोजमर्रा के खाने के लिए सब्जी आदि भी उगाते हैं। ऐसे हालात में अफीम की खेती पर रोक से बड़ी संख्या में किसानों के सामने भुखमरी का संकट पैदा हो जाएगा। सौर पैनल ने अफगानिस्तान के ग्रामीण जीवन को पूरी से बदल दिया है।
वैश्विक स्तर पर अफीम के मामले में अफगानिस्तान की स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए सौर पैनलों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के अनुसार अफगानिस्तान ने 2015 से 2020 तक दुनिया की 83 प्रतिशत अफीम का उत्पादन किया। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि भयंकर युद्ध और लगातार सूखे के बावजूद अफगानिस्तान में अफीम की खेती 2009 में 1,23 ,000 से बढ़कर 2,24,000 हेक्टेयर तक जा पहुंची।
ध्यान रहे कि पिछली अमेरिकी समर्थित अफगान सरकार ने अफीम के खात्मे के लिए 8.6 बिलियन डॉलर खर्च किया था लेकिन अफगानिस्तान के शीर्ष अधिकारियों ने अफीम के व्यापार में मिलीभगत कर अवैध रूप से पैसा बनाए। और इस पैसे से राजधानी काबुल में पॉपी पैलेस जैसे विलासितापूर्ण भवनों का निर्माण किया। यही नहीं उन्होंने संयुक्त अरब अमीरात में बड़े-बड़े विला तक खरीदे। 2018 में अफगान सरकार के एक सरकारी महानिरीक्षक की रिपोर्ट में बताया गया है कि सरकार द्वारा अफीम के खिलाफ चलाए गए मुहिम का वास्तव में कोई स्थायी प्रभाव नहीं पड़ा।
कहने के लिए तो तालिबान ने अफीम को इस्लाम विरोधी के रूप में इसकी खेती करने पर कड़ी निंदा की है। यह भी सही है कि अफगानिस्तान में अफीम की फसल के कारण यूरोप और मध्य पूर्व में नशे की लत और बढ़ गई है। साथ ही साथ अफगानिस्तान के अंदर भी इसका नशा करने वालों की एक बड़ी संख्या मौजूद है।
लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात है कि पिछले बीस सालों के उग्रवाद के दौरान अफीम की तस्करी के साथ जुड़े अपने गहरे संबंधों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि तालिबानी नेता पाखंड और पवित्रता के बीच एक बहुत ही महीन रेखा पर चल पा रहे थे।
ऐसे समय में दक्षिणी अफगान में सरकार की एक व्यापक कार्रवाई से पहले ही विनाशकारी आर्थिक संकट के भंवर में फंसे देश के लिए और परेशानियां बढ़ जाएंगी। यही नही यहां के पश्तून किसान अपने परिवार का भोजन खर्च उठाने में असमर्थ हो जाएंगे। ऐसे में वे तालिबानी सरकार के खिलाफ जा सकते हैं। ध्यान रहे कि यदि सरकार अफीम की खेती को खत्म करना चाहती है तो उसे इसके किए किसानों द्वारा लगाए गए सौर पैनलों को भी जब्त करने की आवश्यकता होगी। यही नहीं अफगान सरकार को अफीम के व्यापार में लगे उनके अपने ही तालिबानी कमांडरों के विरोध का भी सामना करना पड़ सकता है।
संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि अफीम का व्यापार पिछले साल लगभग 1.8 अरब डॉलर से बढ़कर 2.7 अरब डॉलर का हो गया। अफीम की बिक्री का अफगानिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद में 9 से 14 प्रतिशत तक का हिस्सा है। अफगानिस्तान एनालिस्ट्स नेटवर्क के एक स्वतंत्र शोध समूह ने पिछले महीने एक रिपोर्ट में लिखा कि अफीम की खेती और अफीम का निर्यात पूरी तरह से अफगान अर्थव्यवस्था के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और इसके प्रतिबंध के खतरनाक परिणाम होंगे।
पिछले बीस सालों से अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था और ग्रामीण आजीविका का अध्ययन करने वाले डेविड मैन्सफील्ड के अनुसार अफीम किसान वर्तमान में अफगानिस्तान के दक्षिण-पश्चिम में कम से कम 67, 000 सौर-ऊर्जा से संचालित होने वाले पानी के पंपों पर निर्भर हैं। सौर पैनल जिसने पानी के पंप चलाने के लिए मंहगे डीजल की जगह ली है, अब रेगिस्तान को हरा-भरा करने में भी मददगार साबित हो रहा है। मैन्सफील्ड के शोध के अनुसार हाल के वर्षों में कंधार, हेलमंद और निमरुज जैसे निर्जन रेगिस्तानी राज्यों की आबादी कम से कम 1.4 मिलियन तक जा पहुंची है। इसका प्रमुख कारण है कि अब इन स्थानों पर सौर-चालित पंपों ने कृषि योग्य भूमि का विस्तार करने में भरपूर मदद की है।
न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार तालिबान ने सौर ऊर्जा से चलने वाले कुछ पंपों को निशाना बनाया है। गत 13 मई को अफीम का बेल्ट कहे जाने वाले कंधार प्रांत से सटे हेलमंद प्रांत के गवर्नर ने पुलिस को सौर पैनल और पंपों को जब्त करने का आदेश दिया ताकि नई लगाई गई अफीम की खेती, खेतों में ही सूख जाए।
अफीम प्रतिबंध के बाद ऐसा माना जा रहा है कि अफगानिस्तान में भूख, गरीबी और सूखे के भयावह स्थिति पैदा होगी। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वर्तमान में पहले से ही 23 मिलियन अफगानी भोजन की कमी से जूझ रहे हैं। पश्चिमी सहायता से चलने वाली अफगानी अर्थव्यवस्था प्रतिबंधों के बाद और खराब हो जाएगी।
कंधार के जरी जिले के 35 वर्षीय अफीम किसान शाह आगा ने प्रतिबंध के बारे में कहा कि यह अफगानों के लिए बहुत बुरा है क्योंकि अफीम अफगान लोगों की संपत्ति है। हालांकि बीज, उर्वरक, श्रम और अन्य खर्चों पर लगभग 500 डॉलर का निवेश करने के बाद आगा ने कहा उन्हें उम्मीद है कि इस वसंत ऋतु में फसल की 20 किलोग्राम अफीम बेचने के बाद उन्हें लगभग 5,000 डॉलर की कमाई होगी।
अफीम प्रतिबंध की घोषणा के बाद दक्षिणी अफगान के किसानों द्वारा अपनी फसलों की कटाई कर रहे थे। घोषणा के बाद अफीम की कीमतें लगभग तुरंत बढ़ गई। कई किसानों ने कहा कि यह बढ़ोतरी 60 डॉलर प्रति किलोग्राम से बढ़कर 180 डॉलर प्रति किलोग्राम तक हुई।
हालांकि इस बढ़ोतरी पर आगा कहते हैं कि मुझे लगता है कि यह प्रतिबंध अफगान सरकार ने अपने फायदे के लिए लगाया है। क्योंकि इस हकीकत से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता कि अधिकांश तस्करों और तालिबान कमांडरों के पास हजारों टन अफीम है और वे कीमतें जानबूझ कर पैसा बनाने के लिए बढ़ाना चाहते हैं।
अब तक देखा गया है कि तालिबानी ताकतें तेजी से अफीम के उन्मूलन अभियान शुरू करने में असमर्थ या अनिच्छुक जान पड़ीं हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि तालिबान के गश्ती दल इत्मीनान से अफीम के खेतों से गुजरे, जहां फसल काटी जा रही थी। हालांकि यह सही है कि हाल ही में सरकार ने इस बात के संकेत दिए हैं कि वह इस बार की फसल को काटने की अनुमति देगी क्योंकि यह फसल सरकारी घोषणा के पहले से ही बोई गई थी।