एक पूरे शहर को जलमग्न कर बिजली का सपना लेकर जन्मी टिहरी झील जल्द ही राज्य में पर्यटन के सपनों की उड़ान को पूरा करने का ज़रिया बनेगी। झील की लहरों पर अब तक नावें सवारी कर रही थीं, अब सी-प्लेन भी इन लहरों पर हिचकोले खाएगा। टिहरी झील में सी-प्लेन के संचालन के लिए वाटर ड्रोम की स्थापना को लेकर केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और राज्य सरकार के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुताबिक ये राज्य के लिए ऐतिहासिक अवसर था। लेकिन क्या राज्य सरकार इस बड़े सपने को पूरा करने के लिए तैयार है।
टिहरी झील में सी-प्लेन का संचालन पर्यटन के लिहाज़ से बेहद अहम साबित हो सकता है। लेकिन इसके लिए आधी-अधूरी नहीं, पूरी तैयारी की जरूरत होगी। दरअसल पिछले कई मामलों में राज्य सरकार की जल्दबाजी और आधी-अधूरी तैयारियों से फजीहत हो चुकी है। चाहे वो पर्यटन को बढ़ावा देने के तहत डेस्टिनेशन वेडिंग योजना हो, वाटर स्पोर्ट्स एडवेंचर से जुड़ी गतिविधियां हों या उड़ान योजना के तहत राज्य के पांच ज़िलों में हवाई सेवाएं शुरू करना, जो अब तक पूरी तरह नहीं हो सकीं। या फिर देहरादून में मेट्रो रेल दौड़ाना, जिसे बाद में राज्य के लिए अनुपयोगी मान कर और जगह की कमी के चलते बंद कर दिया गया।
मरीन कनसल्टेंट और इनलैंड वाटर ट्रांसपोट्रेशन के विशेषज्ञ विपुल धस्माना कहते हैं कि राज्य की सिविल एविएशन पॉलिसी में सी-प्लेन का जिक्र नहीं है। फिर सी-प्लेन वायु और जल मार्ग दोनों से जुड़ा है। इसलिए पहले इससे जुड़ी नीति तैयार करनी होगी। सी-प्लेन उड़ाने की तैयारियों को लेकर वे बताते हैं कि जहां सी-प्लेन उतरता है, वहां ज़मीन और पानी दोनों में फायर फाइटिंग की व्यवस्था करनी होती है। डॉक्टर-पैरामेडिकल टीम के साथ मेडिकल एंबुलेंस बोट की व्यवस्था करनी होगी। ईधन के लिए हाईस्पीड डीज़ल वाले पेट्रोल पंप की स्थापना करनी होगी। पैसेंजर के प्लेन तक आने-जाने की व्यवस्था करनी होगी। उस क्षेत्र की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था करनी होगी। साथ ही कई अन्य जरूरी व्यवस्थाएं छोट से टिहरी जिले में सुनिश्चित करानी होंगी।
मरीन सर्वेयर विपुल धस्माना कहते हैं कि राज्य सरकार को ये भी देखना होगा कि झील में पहले से मौजूद 60 से अधिक नावों के लिए कौन से जलमार्ग तय किये जाएंगे। यहां ये भी दिलचस्प है कि टिहरी झील में आधे डूबे मरीना को ही दुरुस्त करने का काम अभी नहीं किया जा सका है। मरीना के संचालन के लिए राज्य सरकार के पास कोई तैयारी नहीं थी, इसलिए वो सिर्फ दिखावा मात्र ही रह गया। ऐसे में सी-प्लेन जितना बड़ा सपना है, उसके लिए उतने ही बड़े स्तर पर तैयारी करनी होगी।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय की संयुक्त सचिव उषा ने बताया कि वाटरड्रोम के लिए पहली बार किसी राज्य के साथ एमओयू किया गया है। केंद्र की उड़ान योजना के तहत ही टिहरी झील में सी-प्लेन संचालन की योजना तैयार की गई है। उड़ान योजना में एयरपोर्ट डेवलपमेंट की लागत का सौ प्रतिशत केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है। इसलिए वाटरड्रोम का सारा खर्च केंद्र सरकार उठाएगी।
राज्य के नागरिक उड्डयन सचिव दिलीप जावलकर के मुताबिक सी-प्लेन के लिए टिहरी झील के पास 2.5 हेक्टेयर भूमि का चयन किया गया है। वाटरड्रोम की स्थापना ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट की तरह की जाएगी। राज्य सरकार ने इस योजना के तहत संचालित होने वाली हवाई सेवाओं के लिए एटीएफ पर वैट की दर को घटाकर 1 प्रतिशत कर दिया है। इससे यात्रियों को कम किराया देना पड़ेगा।
सी-प्लेन एक खास किस्म का एयरक्राफ्ट है जो ज़मीन के साथ साथ पानी में भी टेक ऑफ करने की क्षमता रखता है। अंडमान-निकोबार और केरल में भी सी-प्लेन सेवाएं संचालित की जा रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2017 में अहमदाबाद में साबरमती नदी से मेहसाणा के धरोई बांध तक सी-प्लेन से यात्रा कर चुके हैं।
इस वर्ष फरवरी में लोकसभा में तत्कालीन सड़क परिवहन और जहाजरानी राज्यमंत्री पोन राधाकृष्णन ने एक सवाल के लिखित जवाब में बताया था कि देश में उड़ान योजना के तहत 6 वाटर एयरोड्रोम साइट का चयन सी-प्लेन के लिए किया गया है। इसमें गुवाहाटी और साबरमती रिवर फ्रंट शामिल हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी ये कह चुके हैं कि भारत में 10 हजार सी-प्लेन उड़ाने की क्षमता है। उन्होंने कहा था कि देश में तीन से चार लाख तालाब हैं, कई बांध हैं, 2,000 रिवर पोर्ट हैं, 200 छोटे पोर्ट हैं और 12 बड़े पोर्ट हैं। इसलिए सी-प्लेन योजना यहां ज्यादा वित्तीय भार नहीं डालेगी।
टिहरी झील में सी-प्लेन की उड़ान अगले वर्ष से शुरू करने की योजना है। इसके लिए 12 से 20 सीट वाले सी-प्लेन टिहरी और देहरादून के बीच उड़ान भरेंगे। जिसका अनुमानित किराया करीब पांच हज़ार रुपये होगा। पैसे खर्च कर सकने वाले पर्यटकों के लिए सी-प्लेन आकर्षक होगा। सड़क मार्ग की दुश्वारियों को पीछे छोड़ देहरादून से टिहरी के बीच की ख़ूबसूरत वादियों का लुत्फ लेते हुए वे कुछ ही मिनटों में वे देहरादून से टिहरी पहुंच जाएंगे। जहां पहाड़ियों के बीच सबसे बड़ी मानव निर्मित झील उन्हें विज्ञान के चमत्कार का एहसास कराएगी। इससे टिहरी को नया टूरिस्ट डेस्टिनेशन बनाने में भी मदद मिलेगी।