फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स ने चौपट किया भारत का कपड़ा उद्योग

भारत के कपड़ा उद्योग की दुनिया भर में धाक थी, लेकिन मुक्त व्यापार समझौतों के बाद दूसरे देशों ने भारत में ही सस्ता कपड़ा भेजना शुरू किया और हम अपनी बादशाहत गंवा बैठे
भागलपुरी सिल्क तैयार करता एक कारीगर। फोटो: अजीब कोमची
भागलपुरी सिल्क तैयार करता एक कारीगर। फोटो: अजीब कोमची
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भारत सरकार का दावा है कि वह अब तक हुए सभी मुक्त व्यापार समझौतों (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट, एफटीए) की समीक्षा कर रही है। यह तो आने वाले वक्त बताएगा कि समीक्षा में क्या निकलेगा, लेकिन डाउन टू अर्थ ने एफटीए के असर की पड़ताल की और रिपोर्ट्स की एक सीरीज तैयार की। पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट क्या है। पढ़ें, दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा कि आखिर केंद्र सरकार को आरसीईपी से पीछे क्यों हटना पड़ा। तीसरी कड़ी में अपना पढ़ा कि फ्री ट्रेड एग्रीमेंट्स की वजह से पुश्तैनी काम धंधे बंद होने शुरू हो गए और सस्ती रबड़ की वजह से रबड़ किसानों को खेती प्रभावित हो गई। चौथी कड़ी में पढ़ें- 

 सिल्क की नगरी कहे जाने वाली भागलपुर पुरैनी गांव में पिछले तीन पीढ़ी से भागलपुरी सिल्क की साड़ी बनाने वाले 62 वर्षीय महमूद बताते हैं कि पिछले एक दशक से बाजार में चाइनीय सिल्क ने हमारे बाजार को बहुत नुकसान पहुंचाया है। चाइनीज सिल्क से बनी साड़ी भागलपुरी सिल्क के मुकाबले 500 से 600 रुपए सस्ती होती है। इससे हमारे गांव के लगभग हर परिवार की रोजी-रोटी को नुकसान पहुंचा है। कई कारीगर साड़ी बुनने की जगह दूसरे रोजगार करने पर मजबूर हैं। पहले मैं और पूरा परिवार इस काम में दिन रात जुटा रहता था, लेकिन अब काम बहुत कम हो गया है और परिवार के दूसरे सदस्य दिहाड़ी मजदूरी कर रहे हैं। व्यापारियों ने हमसे सिल्क लेना बंद कर दिया है।

केवल सिल्क ही नहीं, बल्कि पूरे कपड़ा (टेक्सटाइल) उद्योग पर एफटीए की मार है। इसके लिए काफी हद तक बांग्लादेश दोषी है। दरअसल भारत ने 2006 में सार्क देशों अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका के साथ मुक्त व्यापार शुरू किया था। लेकिन कुछ समय बाद चीन ने बांग्लादेश में न केवल अपनी यूनिट लगा ली, बल्कि वहां के माध्यम से भारत में ड्यूटी फ्री फैब्रिक भेजना शुरू कर दिया। कंफेडरेशन ऑफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के पूर्व प्रधान संजय जैन कहते हैं कि बांग्लादेश से भारत के बीच एफटीए होने के कारण टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज को बड़ा धक्का लगा है।

बांग्लादेश से चाइनीज फैब्रिक भारत आ रहा है। जबकि वही फाइबर अगर हम चीन से लेना चाहते हैं तो इम्पोर्ट ड्यूटी लगने के कारण महंगा पड़ता है, जबकि इंडियन फाइबर वैसे ही महंगा पड़ता है। इसके अलावा आसियान देशों से एफटीए होने के कारण भारत में इंडोनेशिया और वियतनाम से पॉलिस्टर यार्न आ रहा है। आयात में काफी वृद्धि होने से हमारी स्पिनिंग मिल बंद हो रही हैं या कर्ज न दे पाने के कारण वे एनपीए हो रही हैं। जैन कहते हैं कि आरसीईपी समझौता से भारत के बाहर होने के बाद सरकार ने आश्वासन दिया है कि अब तक जो भी ऐसे व्यापारिक समझौते हुए हैं, उनकी समीक्षा की जाएगी, इससे उम्मीद तो बंधती है, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं लगता।

सेंट्रल सिल्क बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि देश में सिल्क का आयात लगातार बढ़ रहा है, जबकि निर्यात कम हो रहा है। 2013-14 में सिल्क और सिल्क गुड्स का कुल आयात 1,357.49 करोड़ रुपए था, जो 2017-18 में बढ़कर 1,652.39 करोड़ रुपए का हो गया। जबकि निर्यात 2013-14 में 2,480.89 करोड़ से घटकर 2017-18 में 2,031.88 करोड़ रुपए रह गया। वहीं, ओवरऑल टेक्सटाइल एवं अपरैल सेक्टर की बात करें तो 2012-13 से 2014-15 में तीन साल में 11.5 फीसदी की वृद्धि हुई। यहां यह उल्लेखनीय है कि टेक्सटाइल सेक्टर को रोजगार देने वाला बड़ा सेक्टर माना जाता है और 2017-18 की रिपोर्ट के मुताबिक इस सेक्टर से लगभग 4.5 करोड़ लोग रोजगार पा रहे थे।

दिलचस्प बात यह है कि बांग्लादेश जैसे छोटे देशों के साथ हुए एफटीए भी भारत पर भारी पड़ रहे हैं। साफ्टा की बात करें तो दिल्ली स्थित इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस के शोधार्थी दुर्गेश के. राय कहते हैं कि साफ्टा से भारत को अब तक लगभग 7 लाख करोड़ रुपए का संयुक्त व्यापार घाटा हुआ है।

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