आधुनिक रोबोट ना सिर्फ दोहराए जाने वाले जटिल कार्यों को करने, जैसे कि सीढ़ियां चढ़ने या आसानी से कार चलाने में सक्षम हैं बल्कि उन कार्यों को करने की भी क्षमता रखते हैं जिनको करने के लिए मानवीय श्रम के अलावा कोई विकल्प नहीं होता।
आधुनिक तकनीकी ने अब कुशल कामगारों को भी खत्म कर रही है। अमेजन ने पुस्तक समीक्षकों को निकाल बाहर किया। अमेजन ने पाया कि पाठकों को उनके ब्राउजिंग इतिहास के आधार पर सिफारिशें जारी करके अधिक पुस्तकें खरीदने के लिए प्रेरित कर सकता है।
कपड़ा उद्योग में भी ऑटोमेशन का चलन बहुत तेजी से बढ़ रहा है। भारत में कपड़ा उद्योग की दिग्गज कंपनी रेमेंड ने अगले कुछ वर्षों में दस हजार नौकरियांे को रोबोट से बदलने की योजना बनाई है। इसके अलावा कई और कंपनियां भी इस ओर कदम बढ़ा रही हैं।
ये कुछ उदाहरण हैं जिसे देख और समझ कर कहा जा सकता है कि भारत सहित पूरी दुनिया में चौथी औद्योगिक क्रांति (4. आईआर) का सूत्रपात हो चुका है। लेकिन इसके सूत्रपात होने से मानवीय श्रम का भविष्य खतरे में दिख रहा है। औद्योगिक नीतियों के शोधकर्ता आस्ट्रिया के एलेजांद्रो लावोपा और मिशेल डेलेरा ने कहा कि चौथी औद्योगिक क्रांति एक तकनीकी छलांग से कहीं अधिक है। वह कहते हैं कि पहली औद्योगिक क्रांति 18वीं शताब्दी में भाप इंजन के आविष्कार से शुरू हुई थी, 19वीं शताब्दी में दूसरी क्रांति व्यापक विद्युतीकरण द्वारा संचालित थी और तीसरी क्रांति 1960 के दशक में आई, जिसका मुख्य कारण कंप्यूटर तकनीक के क्षेत्र में प्रगति थी। यहां हम देख और जान सकते हैं कि 4.आईआर भी तकनीकी प्रगति का एक उत्पाद है।
मशीनें, इंटरनेट ऑफ थिंग्स के माध्यम से एक-दूसरे से “बात” करती हैं, प्रक्रियाएं एल्गोरिदम द्वारा तैयार किए गए सवालों का अनुसरण करती हैं और मनुष्य इंटरफेस के माध्यम से यांत्रिक प्रक्रियाओं के साथ “लाइव” अथवा सजीव “बातचीत” कर सकते हैं। इस सबंध में मुख्य रूप से मूर के नियम को धन्यवाद दिया जा सकता है। यह हमें बताता है कि कंप्यूटर चिप्स हर 18 महीने में क्षमता में दोगुना और कीमत में आधा हो जाता है। और इस तरह से आज बिग डाटा रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के क्षेत्र में एक क्रांति की शुरुआत हो गई है। यह एक ऐसा असाधारण संक्रमण बिंदु है, जो पर्यवेक्षकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम चौथी औद्योगिक क्रांति के शिखर पर पहुंच चुके हैं जो कि आ तो रही है तीसरी क्रांति की पूंछ पकड़ कर, लेकिन बहुत बड़े पैमाने पर अभूतपूर्व गति और क्षमता के साथ फैल रही है।
चौथी औद्योगिक क्रांति को यदि एक लाइन में समझना है तो कहा जा सकता है कि यह क्रांति उन्नत डिजिटल उत्पादों और प्रौद्योगिकी विनिर्माण की प्रक्रिया को बदल रही हैं और यह सुनिश्चित है कि यह क्रांति औद्योगिक विकास के भविष्य पर गहरा प्रभाव डालने की क्षमता रखती है। जैविक, भौतिक और डिजिटल क्षेत्रों की सीमाओं को मिटाना 4.आईआर का एक विशिष्ट पहलू है। चौथी औद्योगिक क्रांति को पहले की औद्योगिक क्रांतियों के विपरीत किसी इतिहासकार या सामाजिक सिद्धांतकार द्वारा नहीं बल्कि एक अर्थशास्त्री द्वारा इस विश्लेषण के आधार पर गढ़ा गया है कि इस तरह की क्रांति अभी वर्तमान समय में हो रही है।
इसे गढ़ने का काम वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के कार्यकारी अध्यक्ष कालुस शचवाब ने 2016 में अपनी पुस्तक “द फोर्थ इंडस्ट्रियल रेवोलुशन” में किया था। शचवाब ने इस परिकल्पना का परिचय कराते हुए लिखा, “हम एक क्रांति की शुरुआत में हैं जो मौलिक रूप से हमारे जीने, कार्य और एक-दूसरे से संबंध के तरीके को बदल रही है। अपने पैमाने, दायरे और जटिलता में जिसे मैं चौथी औद्योगिक क्रांति मानता हूं, उसे मानव ने कभी अनुभव नहीं किया है।”
इसके बाद से इस परिकल्पना को कइयों के साथ मैककिन्से एंड कंपनी, बोस्टन कंसलटिंग ग्रुप, प्राइस वाटर हाउस कूपर्स जैसी बड़ी परामर्शी कंपनियों ने प्रचारित किया। धीरे-धीरे भारत सहित दुनिया भर की सरकारों ने भी इसे हालांकि कुछ अलग नाम से यानी उद्योग 4.0 देकर अपना लिया। यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र ने भी इसे अपने औद्योगिक विकास संगठन में शामिल किया। मॉर्गन के शोध पत्र के अनुसार, चौथी औद्योगिक क्रांति के बारे में 4 फरवरी, 2022 को गूगल में तलाशने पर 127 मिलियन सर्च रिजल्ट सामने आए थे। मई, 2019 में की गई सर्च में 39 मिलियन रिजल्ट प्राप्त हुए थे। यह दर्शाता है कि पिछले तीन वर्ष में इंटरनेट साहित्य में इस परिकल्पना का किस तरह से विस्तार हुआ है। चाहे एक क्रांति के हिस्से के रूप में हो या न हो, उन्नत तकनीक का प्रभाव तो रहेगा और समय के साथ इंसानों के जीने और कार्य करने के तरीकों को बदलते हुए यह मजबूत भी होगा।
क्या होंगे परिणाम
अब हम यह मानकर चल रहे हैं कि चौथी औद्योगिक क्रांति शुरू हो चुकी है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि सूचना प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और स्वचालित मशीनों और इसके साथ अन्य तकनीक अपनाने का परिणाम क्या हो रहा है? हम यदि गौर से देखें तो देश के अधिकांश कामकाजी सेक्टरों में यह भय व्याप्त है कि रोबोट आ रहे हैं। और यदि इस चिंता को सही मानकर चलें तो जिसकी पुष्टि अब तक किए गए कई सर्वे भी करते आ रहे हैं। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं, जब कामगारों की एक बड़ी फाैज अपने को काम से वंचित पाएगी। संभवत: अगले एक दशक में यह स्थिति एक विकराल रूप धारण कर ले। दिल्ली आईआईटी के प्रोफेसर पी.विंग्नेश्वर इल्यावर्सन ने कहा कि नई प्रौद्योगिकी से नौकरी खोने का डर नया नहीं है। यह बात तब भी उठी थी जब 15वीं सदी में प्रिंटिंग प्रेस शुरू हो रही थी। वह कहते हैं कि ऑटोमेशन के कारण अमेरिका में अगले दो दशक में 47 प्रतिशत नौकरियों पर खतरा मंडरा रहा है।
हमें यहां इस बात को याद रखना होगा कि एक लंबे समय से ही शतरंज खेलने जैसे जटिल कार्य से लेकर सीढ़ियां चढ़ने, पानी का ग्लास लाने जैसे सरल कार्यों को करने के लिए रोबोटों का निर्माण किया जाता रहा है। लेकिन, आधुनिक रोबोट ना सिर्फ दोहराए जाने वाले जटिल कार्यों को करने, जैसे कि सीढ़ियां चढ़ने या आसानी से कार चलाने में सक्षम हैं बल्कि उन कार्यों को करने की भी क्षमता रखते हैं जिनको करने के लिए मानवीय श्रम के अलावा कोई विकल्प नहीं होता।
उदाहरण के लिए एक भाषा का दूसरी भाषा में अनुवाद करना जैसे गूगल ट्रांसलेशन। इनमें सबसे महत्वपूर्ण है कि मानवीय श्रम से सस्ते होने के कारण यह मनुष्य को बाजार से बेदखल करने की क्षमता रखते हैं। हालांकि अभी इस प्रकार जो भी परिवर्तन दिख रहा है उसका दायरा सीमित है, लेकिन इसके बावजूद इस प्रकार की तकनीक कौशलता बढ़ने से पेशेवर कुशल श्रमिकों और यहां तक कि और कुशल कामगारों को भी खत्म कर रही है। इस बात को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं कि कैसे अमेजन ने पुस्तक समीक्षकों के अपने पूरे समूह को निकाल बाहर किया।
अमेजन ने पाया कि पाठकों को उनके ब्राउजिंग इतिहास के आधार पर सिफारिशें जारी करके अधिक पुस्तकें खरीदने के लिए प्रेरित कर सकता है। इसके अितरिक्त रोबोट कितनी अासानी से अमेजन वेयरहाउस में रखी विशालकाय अलमारियों को बड़ी ही कुशलता और बिना किसी गलती के इधर से उधर घुमा सकते हैं। एक अकेले मानव सर्जन के इशारे पर हजारों किलोमीटर दूर जटिल ऑपरेशन को करने वाला दा विंची सर्जिकल रोबोट, आईबीएम का सुपर कंप्यूटर वाटसन, जो त्वचा कैंसर का निदान करने में सक्षम है आदि।
जैसा कि विज्ञान कथा लेखक गिब्सन ने हाल ही में भविष्यवाणी की थी, “भविष्य पहले से यही है बस समान रूप से वितरित नहीं है। अब आपको बस इतना करना है कि स्वचालित तकनीक को अपनाने की गति को बढ़ाते रहना है। इस तरह आप दुनिया के गूगल और एप्पल द्वारा पूर्ण किए गए एक ऐसी तकनीकी यूटोपिया तक पहुंचेंगे जहां हर किसी के लिए जीवन का आनंद लेने के लिए पर्याप्त अवकाश और पैसा है।” या फिर इसके विपरीत जैसा के स्टीफन हॉकिंग जैसे लोगों ने चेतावनी दी है कि आप बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, असमानता और अशांति द्वारा चिन्हित सर्वनाश में समाप्त होने की अधिक संभावना रखते हैं।
सर्वनाश अतिश्योक्ति लग सकता है लेकिन बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और विद्रोह के डर को महज एक रूढ़िवादी दिमाग की उपज मानकर खारिज करना सरासर अहंकार है। टेक्नोलॉजी, जॉब्स इन द फ्यूचर ऑफ वर्क नामक अपनी 2016 की रिपोर्ट में मेकिन्से ग्लोबल इंस्टिट्यूट ने भविष्यवाणी की है कि ऑटोमेशन का जिन्न अगले दो दशकों में विश्व की 50 प्रतिशत अर्थव्यवस्था पर हावी हो सकता है। वास्तव में यह 1.2 बिलियन श्रमिकों के रोजगार और 14.6 ट्रिलियन डॉलर की मजदूरी के बराबर है। हो सकता है इसमें से आधे का बोझ सिर्फ 4 देशों चीन, भारत, जापान और अमेरिका को झेलना पड़े।
2016 की विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार वास्तव में स्वचालन से रोजगार खत्म होने की दर विकसित अर्थव्यवस्थाओं की अपेक्षा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अधिक रहेगी। समग्र ओईसीडी (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) देशों में 57 प्रतिशत के मुकाबले चीन में 77, भारत में 69, थाईलैंड में 72 और इथोपिया में रोजगार खोने की दर 85 प्रतिशत रहेगी। यह कोई बहुत ज्यादा लंबी कहानी नहीं होगी। पिछले कुछ सालों में आईफोन जैसी इलेक्ट्रॉनिक की सबसे बड़ी आपूर्तिकर्ता कंपनी फॉक्सकॉन ने अपने एक कारखाने में रोबोटों के द्वारा 60,000 श्रमिकों को विस्थापित कर दिया। ताइवान की बड़ी कंपनियों ने जो कि पूरे देश में 1.2 मिलियन श्रमिकों को रोजगार देती हैं, अगले दो दशकों में अपने सारे कारखानों को स्वचालित बनाने का लक्ष्य रखा है।
इसका एक संकेत इससे भी मिलता है कि अब चीन ने जापान को दुनिया के सबसे बड़े रोबोट संरक्षक के रूप में पछाड़ दिया है। धीरे-धीरे ही सही भारत भी इस दिशा में अपना कदम बढ़ा रहा है। कपड़ा क्षेत्र की दिग्गज कंपनी रेमंड ने अगले कुछ वर्षों में 10,000 नौकरियों को रोबोट से बदलने की योजना बनाई है। जबकि आईटी क्षेत्र की प्रमुख कंपनी इंफोसिस और टीसीएस ने पहले ही स्वचालन के कारण रोजगार में नुकसान की चेतावनी दी है।
इन सबसे ऊपर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में जीवाश्म ईंधन पर आधारित उद्योगों में लाखों नौकरियों को खत्म कर दिया गया। ऐसा प्रतीत होता है कि वैश्विक बाजार, अनिश्चित राजनीतिक व्यवस्था, जलवायु परिवर्तन और स्वचालन रूपी इन चार ताकतों की परस्पर क्रिया के आधार पर मानवीय श्रम के भविष्य को आकार देने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि पहली तीन ताकतें पूरी तरह से राजनीतिक इच्छाशक्ति की दया पर निर्भर हैं। इसके बावजूद कमोबेश सिलिकाॅन वैली के तकनीकी दिग्गजों ने अपने लिए राजनीतिक संरक्षण सुनिश्चित कर लिया है। 2015 में एडेलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर ने पाया कि दुनिया की आधी से अधिक वैश्विक सूचना से जागरुक जनता का मानना है कि दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है और इनमें से 70 प्रतिशत इसके लिए प्रौद्योगिकी को जिम्मेदार मानते हैं।
सवाल यह है कि क्या मशीनों का नया युग कुछ अलग है? अगर हां तो कैसे? सरल शब्दों में अगर कहें तो यह कीन्स की थीसिस के अनुरूप ही होगा जिसमें नौकरियों के नष्ट होने की गति नए रोजगार पैदा होने की गति से बहुत तेज होगी। उदाहरण के लिए विश्व बैंक के आंकड़े कहते हैं कि 1991 से 2013 के बीच भारत में करीब 30 करोड़ लोगों को नौकरी की जरूरत थी और दौरान केवल 14 करोड़ लोगों को ही रोजगार मिल सका।
एमआईटी के प्रोफेसर और “द सेकंड मशीन एज: वर्क, प्रोग्रेस एंड प्रोस्पेरिटी इन अ टाइम ऑफ ब्रिलियंट टेक्नोलॉजी” के लेखक ब्रायनजॉल्फसन और एंड्रयू मैकेफी का मानना है कि जिस तरह प्रथम औद्योगिक क्रांति के प्रभावों को उजागर होने में पूरी एक सदी का समय लग गया उसी तरह अभी जारी आईटी क्रांति के प्रभावों को पूरी तरह महसूस करने में वक्त लगेगा। दूसरी तरफ अमेरिकी अर्थशास्त्री रॉबर्ट गार्डन का मानना है कि श्रम और अर्थव्यवस्था पर कंप्यूटर का प्रभाव संभवतया हो चुका है। जैसा कि उन्होंने द वॉल स्ट्रीट जर्नल में लिखा कि कंप्यूटर ने उत्पादकता में मानवीय श्रम को विस्थापित करने में दिए योगदानों के लाभ का बड़ा हिस्सा इलेक्ट्रॉनिक युग में जल्दी आया।
हालांकि अभी आर्थिक इतिहासकार रॉबर्ट ब्राउन इस प्रश्न पर पूरी तरह से अनभिज्ञता दर्शाते हैं कि मशीनें अगली सदी में कैसे श्रम को प्रभावित करेंगी। अपनी पुस्तक “प्रबुद्ध वैश्विक आर्थिक इतिहास: एक छोटा परिचय” में एलेन औद्योगिक क्रांति से लेकर आज तक के विश्व को तीन कालक्रमों में विभाजित करते हैं। औद्योगिक क्रांति (1750–1830), संपन्नता के लिए पश्चिमी साम्राज्यवाद का विस्तार (1830-1970) और समस्या से ग्रस्त वर्तमान (1970 से आगे)। प्रत्येक चरण से वह एक अंतर्दृष्टि प्राप्त करते हैं जो हमें हमारी वर्तमान स्थिति को समझने में मदद कर सकता है। उदाहरण के लिए औद्योगिक क्रांति के प्रारंभिक चरण में एक ब्रिटिश बटाईदार या हाथ से सूत कातने वाले का भविष्य अंधकार में था जबकि इंजीनियरों, लेखाकार और क्लर्कों जैसे पैशेवरों का भविष्य उज्ज्वल था। उसी समय जब ब्रिटिश कपड़ा उद्योग में उछाल आता है तो दुनिया की 90 प्रतिशत मांगों को पूरा करने वाले भारतीय कपास किसान और बुनकर विनाश के कगार पर धकेल दिए जाते हैं।
यह स्थिति आज भी बनी हुई है। इसका ज्वलंत उदाहरण है बिहार के भागलपुर के पास स्थित भागलपुरी सिल्क के बुनकरों की संख्या 30 हजार से अधिक है और आज भी ये अपने 12 हजार से अधिक हथकरघे पर साड़ी बनाने का काम करते हैं। यहीं के एक गांव जगदीशपुर के मोहम्मद अंसारी बताते हैं कि दुकानदार अब मशीन से बुनी साड़ी अधिक खरीदते हैं। ऐसे में हमें अपनी साड़ी बेचने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है। कई बार पूरा माह गुजर आता है और हमारी एक साड़ी नहीं बिकती।
हालांकि ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि जर्मनी को छोड़कर, जो अकेले अपने श्रमिकों के कौशल को फिर से तैयार करके वैश्वीकरण के कारण नौकरियों में हुए नुकसान की भरपाई में कामयाब रहा है। अधिकांश राष्ट्र मशीनों के आसन्न युग के साथ तालमेल बिठाने में कामयाब रहे। अगर इसे अमल में लाया जाता है तो इसके लिए ऐसे हजारों प्रशिक्षित प्रौद्योगिकी पेशेवरों की आवश्यकता होगी। 2014 के प्यू रिसर्च सेंटर के अमेरिकी रुझानों के सर्वेक्षण के निष्कर्ष के अनुसार “हमारी शिक्षा प्रणाली हमें भविष्य के काम के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं कर रही है, ना ही हमारे राजनीतिक और आर्थिक संस्थान इन कठिन विकल्पों को चुनने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित हैं।”
इस दिशा में देखा जाए तो भारत की स्थिति तो और भी खराब है। विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार हर साल तैयार होने वाले 10 लाख इंजीनियरिंग स्नातकों में से सिर्फ 7-20 प्रतिशत ही रोजगार पाने के योग्य हैं। किसी भी नजरिए से देखें तो यही नजर आता है कि आज भारत के युवाओं को एक ऐसे भविष्य की ओर धकेला जा रहा है, जहां उनके साथ बहिष्कृत के रूप में व्यवहार किए जाने की संभावना अधिक बलवती होते जा रही है।
क्रांति सब कुछ करेगी
ऐसा माना जा रहा है कि जब चौथी औद्योगिक क्रांति दुनियाभर में फैल कर सब कुछ बदल कर रख देगी। तब एक अच्छा जीवन आपान करने वाले व्यक्तियों की जिंदगी के एक दिन की कल्पना कीजिए। सब कुछ अपने आप स्वचालन से हो जाएगा। कहने का अर्थ कि व्यक्ति के सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक। ऐसे में चौथी औद्योगिक क्रांति के अति उत्साही समर्थकों द्वारा किया जाने वाले इस स्वप्न लोक की तसवीर कुछ धुंधला जाती है। और कई परस्पर विरोधाभासी दृश्य भी उभर आते हैं। जैसे, क्या व्यक्ति काम करने के लिए जाएगा? अगर सभी औद्योगिक उत्पादन और सेवाएं पूर्णत: स्वचालित और कृत्रिम बुद्धिमत्ता से संचालित हो जाएंगी तो क्या मानव कार्य और मानव बुद्धिमत्ता की कोई जरूरत रह जाएगी? अगर भारत की विशेषतौर पर बात करें तो ऐसे में वो लाखों व्यक्ति क्या करेंगे जो दिहाड़ी मजदूरी और खेती जैसे कार्य से जुड़े हुए हैं।
सवाल यहां उठाता है कि अगर व्यक्ति कार्य करने और आमदनी अर्जित करने के लिए नहीं जाएंगे तो वे उस मकान जिसमें वे रहते हैं, जो उपकरण उनके पास हैं, जो सेवाएं उन्हें मिलती हैं और जिस सांस्कृतिक गतिविधियों में वे शामिल होते हैं, उनका खर्च कहां से उठाएंगे। भले ही स्वपनलोक का यह भविष्य साकार न हो लेकिन इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वर्तमान तकनीकी प्रगति काफी नौकरियों को विस्थापित कर रही है और भविष्य में करेगी।
गुवाहाटी स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में सेंटर फॉर लेबर स्टडीज एंड सोशल प्रोटेक्शन के असिस्टेंट प्रोफेसर राजदीप सिंघा का कहना है कि लोग पहले से ही अपने कार्य, अगर कुछ है, के बारे में चिंतित हैं जो वह भविष्य में करेंगे। उन्होंने कहा कि पूरे भारत में श्रमिक यूनियनों को इस बात का कुछ पता नहीं है कि उद्योगों में चल रहे स्वचालन की वजह से बड़े पैमाने पर नौकरियों के नुकसान का सामना करने के लिए क्या किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए भारतीय रेलवे के कर्मचारी व अन्य व्यक्ति पहले से ही माल के लिए, रेलवे स्टेशनों पर सूचना व टिकट वितरण के लिए वेंडिंग मशीनों के खिलाफ विरोध कर रहे हैं। और रेल की पटरियों के रखरखाव का सामान्य स्वचालन उनकी नौकरियां ले रहा है। भारतीय रेलवे 12,70,399 लाख नौकरियों के साथ भारत में सबसे बड़ा और विश्व में आठवां सबसे बड़ा नियोक्ता है। इनमें से ज्यादातर नौकरियां खतरे में हैं। सिंघा की बात की पुष्टि रेलवे के ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टॉफ एसोसिएशन के क्षेत्रीय अध्यक्ष बालाचंद्रन वी भी करते हैं। उनका कहना है कि अगले तीन सालों में ढाई लाख लोगों की नौकरियां खतरे में है।
सिंघा कहते हैं कि इसी तरह का परिदृश्य हवाईअड्डों पर भी देखा जा सकता है। एयरपोर्ट में बोर्डिंग पास प्रिंटिंग मशीनें विभिन एयरलाइंस के कर्मचारियों की सहायता करती हैं। वेंडिंग मशीनों के मामले में एक बचाव वाला तथ्य यह है कि ज्यादातर मामलों में वेंडिंग मशीनें या तो कार्य नहीं कर रहीं होतीं या फिर एक कर्मचारी को इन मशीनों को इस्तेमाल करने की कोशिश करने वाले लोगों की मदद करनी पड़ती है। यह दृश्य हम और आप दिल्ली मेट्रो के स्टेशनों और चेन्नई सेंट्ल के लोकल स्टेशनों में आसानी से देख सकते हैं।
लेकिन जब ये मशीनें पर्याप्त कुशलता से कार्य करने लगेंगी और सहायकों की जरूरत नहीं होगी तो ग्राहकों की सहायता करने वाले कर्मचारियों की नौकरियां भी खत्म हो जाएंगी। पिछले कुछ वर्षों के दौरान डिलीवरी एक्जीक्यूटिव जैसी नौकरी के लिए अमेजन, फ्लिपकार्ट और जोमैटो जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों ने अनेकों रोजगार दिया है। निकट भविष्य में ड्रोन उनकी ज्यादातर जगह ले लेंगे। यह बात गाजियाबाद में ऑनलाइन फूड कंपनी जोमेटो में डिलीवरी ब्वाय का काम कर रहे अमित कुमार बताते हैं कि कंपनी पूरी तरह से ऑटोमेशन पर है और अभी तो हम लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है लेकिन भविष्य में ड्रोन का भय तो बना हुआ ही है।
2017 में मैककिन्से एंड कंपनी ने एक रिपोर्ट पेश की। इसमें कहा गया था कि “800 व्यवसायों में 2,000 गतिविधियों के विश्लेषण के अनुसार वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगभग आधी गतिविधियां करने वाले लोगों को लगभग 16 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर वेतन के रूप में दिए जाते हैं। यह प्रौद्योगिकियां सभी व्यवसायों के 60 प्रतिशत में से लगभग 30 प्रतिशत गतिविधियां स्वचालित होने की स्थिति में सक्षम होंगी। इसका अर्थ यह है कि मानव के लिए करने को अभी कार्य होगा लेकिन उस कार्य को करने के लिए जरूरी कौशल वर्तमान समय से बहुत भिन्न होंगे।
इससे पूर्व भी औद्योगिक क्रांति ने कृषि जैसे अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों से नौकरियों को विस्थापित किया है। पर तीसरी और वर्तमान औद्योगिक क्रांति के दौरान ये विस्थापित श्रमिक समय के साथ अन्य मांग वाले क्षेत्रों, जैसे सेवा क्षेत्र में समाहित कर लिए गए। लेकिन भविष्य में जैसे-जैसे मशीनें और कंप्यूटर अधिक बुद्धिमान हो जाएंगे और अधिक तरह के मानव कार्य करने योग्य हो जाएंगे तो सेवा के क्षेत्र की नौकरियों को भी यह हासिल कर लेंगे। उदाहरण के लिए जुलाई, 2020 में बीएमएल मुंजाल विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में यह अनुमान लगाया गया था कि अगले 3 से 5 वर्ष में भारत में कानूनी कार्य का 20 प्रतिशत हिस्सा कृत्रिम बुद्धिमत्ता साफ्टवेयरों के द्वारा किया जाएगा।
इस बात को समझने के लिए राजस्थान के पाली जिले की अदालत का उदाहरण पर्याप्त होगा। जिला एवं सेशन न्यायालय में पदस्थ सरकारी वकील प्रेम सिंह कहते हें कि पिछले दस सालों में यहां अदालती कामों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता साफ्टवेयरों का अच्छाखासा उपयोग किया गया है। इससे अदालती फैसले के लिखने से लेकर डाटा विश्लेषण कर अदालती समय की बहुत बचत हुई है।
वास्तव में दुनिया भर में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का पूरी ताकत के साथ आना इतना परिवर्तनकारी होगा कि गूगल इंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुंदर पिचाई ने हाल ही में इसका मूल्यांकन इंटरनेट, बिजली और यहां तक कि अग्नि से ऊपर करते हुए इसे अभी तक का सबसे महानतम मानव अविष्कार माना है।
कोविड-19 की वैश्विक महामारी ने 2020 की शुरुआत में अर्थव्यवस्था को एक के बाद एक ध्वस्त करने का काम किया। पूरी दुनिया में 2021 के अंत तक बेरोजगार और अर्ध बेरोजगार लोगों की संख्या 2019 में 187 मिलियन से बढ़कर 221 मिलियन तक पहुंच गई थी।
भारत में सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के दिसंबर, 2021 के अनुमान के अनुसार तब देश में बेरोजगार लोगों की संख्या 53 मिलियन थी। इसका अर्थ यह है कि दुनिया भर के बेरोजगार लोगों की कुल संख्या के लगभग एक चौथाई बेरोजगार भारत में रहते हैं। यद्यपि यह माना जा रहा है कि बेरोजगारों की वैश्विक संख्या 2022 में गिरकर 205 मिलियन हो जाएगी। वर्तमान अनुमानों के अनुसार 2030 तक दुनिया भर में नौकरियों के नुकसान का प्रतिशत 15 से 60 के आसपास रहेगा। यह ऐसे मुकाम तक पहुंचेगा जहां अधिकांश मानव कर्मचारी अपनी नौकरियां खो देंगे। ऐसे समय में नई तरह की नौकरियां उपलब्ध कराने की जरूरत होगी, जिनमें से अधिकांश का अभी तक पता नहीं है। इसका मतलब होगा मानव कार्य का विलुप्त होना।
इसके बाद के परिदृश्य में अनेक बड़े उद्यमियों जैसे फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने यह कल्पना की है कि सभी व्यक्तियों को एक सार्वभौमिक मूल आय दी जाएगी। लेकिन क्या यह पर्याप्त होगी? वैश्विक पूंजीवादी अर्थव्यवस्था हमेशा ही विकास पर चलती है और अगर कोई विकास को दूर कर देगा तो यह कैसे बची रहेगी। तकनीकी लोगों का एक वर्ग है जो खुद को भविष्यवादी कहते हैं। इनमें सबसे मशहूर रे कुर्जवेल कहते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता और अन्य सम्बद्ध प्रौद्योगिकियां मानव को हटाने नहीं जा रही हैं। ये उन्हें बढ़ाएगी और भविष्य में नई नौकरियां उपलब्ध कराएंगी। कुर्जवेल और अन्य भविष्यवादी नहीं जानते कि ये नौकरियां क्या होंगी। क्योंकि इनका अविष्कार अभी तक नहीं किया गया है।
यूनाइटेड किंगडम के लीड्स बेकेट विश्वविद्यालय के जेमी मॉर्गन, दक्षिण अफ्रीका के विटवाटर्सरैंड विश्वविद्यालय के इयान मोल और यूनाइटेड स्टेट्स के मासाच्यूसेट्टस इंस्टीट्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी के एंड्रयू मैकेफी कुछ ऐसे विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने मानव कार्य पर चौथी औद्योगिक क्रांति के नकारात्मक प्रभाव पर प्रश्न उठाए हैं। मोल ने चौथी औद्योगिक क्रांति को साफ तौर पर एक ऐसी विचारधार कहा है जो तीसरी औद्योगिक क्रांति के प्रभाव से उत्पन्न होने वाले आर्थिक परिणामों के सुधार के लिए वैश्विक निगमों की आवश्यकता से उत्पन्न हुई है। मोल ने प्रथम औद्योगिक क्रांति के सतर्क ऐतिहासिक पहलू से किसी भी औद्योगिक क्रांति विश्लेषण के लिए एक संरचना तैयार की है।
उन्होंने जुलाई, 2021 में थिओरिआ जरनल में प्रकाशित अपने शोध पत्र में लिखा, “किसी भी सामाजिक आर्थिक परिवर्तन को एक औद्योगिक क्रांति मानने के लिए सुझाए गए मापदंडों के अनुसार वह जरूरी तौर पर तकनीकी क्रांति को फैलाएं, श्रम प्रक्रिया में परिवर्तन करें। कार्यस्थल के संबंधों में मौलिक बदलाव करें। समुदाय और सामाजिक संबंधों के नए रूप बनाएं और वैश्विक सामाजिक आर्थिक परिवर्तन करें।” उन्होंने वर्तमान में जारी चौथी औद्योगिक क्रांति का विश्लेषण इसी मानदण्ड के आधार पर किया। यह पाया कि इस ढांचे के किसी भी मापदण्डों के आधार पर इसे एक क्रांति नहीं कहा जा सकता। दूसरी तरफ मॉर्गन का कहना है कि जिस तरह से चौथी औद्योगिक क्रांति को दर्शाया जा रहा है उससे अब भविष्य अपना आकार ले रहा है।
मॉर्गन ने मई, 2019 में इकोनॉमी एंड सोसाइटी जरनल में प्रकाशित अपने एक शोध पत्र में लिखा, “भविष्य आ रहा है, इसलिए आप इसके अभ्यस्त हो जाएं।” यह एक ऐसे पूंजीवाद का समर्थन करता है जो एक से अधिक मौलिक पुनर्विचार के बजाए “अनेक के लिए कार्य से इनकार” कर सकता है, जिसमें परिवर्तन शामिल है जो अनेक लोगों को कार्य से मुक्त कर सकता है। इस पूंजीवाद का समर्थन वर्ल्ड इकोनॉमी फोरम ने किया है, जो कि सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर कार्य करने वाला एक गैर सरकारी अंतरराष्ट्रीय संगठन है। इसकी स्थापना 1971 में हुई थी।
भारत में चौथी क्रांति की स्थिति
भारत में चौथी औद्योगिक क्रांति (उद्योग 4.0) पर काम शुरू हुए कुछ समय बीत चुका है। देश में उद्योग 4.0 की शुरुआत के लिए एक पायलट प्रोजेक्ट जनवरी, 2020 में मॉडर्न कोच फैक्ट्री (एमसीएफ), रायबरेली में शुरू किया गया था। इस योजना के लिए रेल मंत्रालय और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर के साथ साझेदारी की है। नवंबर, 2020 में तेजस एक्सप्रेस के 18 नए स्मार्ट कोचों का शुभारंभ किया गया था। मई, 2020 में भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यमों के मंत्रालय ने स्मार्ट एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग एंड रैपिड ट्रांसफॉर्मेशन हब (समर्थ) योजना शुरू की। इसका उद्देश्य निर्माताओं, विक्रेताओं और ग्राहकों को एक साथ जोड़कर उन्हें उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकियों के बारे में जागरूक करना है। इसके उद्देश्य से पूरे देश में पांच केंद्र खोले गए हैं। ये केंद्र पुणे, दिल्ली, बंगलूरु और खड़गपुर में स्थित हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में इसी तरह की अन्य पहलें भी हुई हैं। जैसे कि जून, 2020 में लॉन्च किया गया इंडिया एआई पोर्टल जो देश में सभी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से संबंधित विकास और पहल के लिए वन स्टॉप प्लेटफॉर्म है। हाल ही में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी, 2022 को अपने बजट भाषण में कई घोषणा की और उद्योग 4.0 की प्रौद्योगिकियों से संबंधित पुरानी पहलों को बढ़ावा दिया। इसमें ड्रोन शक्ति नामक एक परियोजना शामिल थी। इसका उद्देश्य कई स्टार्टअप को ड्रोन तकनीक के नए प्रयोग ढूढ़ने हेतु प्रोत्साहन देना था। इसमें ड्रोन शक्ति नामक एक परियोजना शामिल थी।
इसका उद्देश्य स्टार्टअप को सेवा के रूप में ड्रोन के लिए अभिनव उपयोग के साथ आने के लिए प्रोत्साहित करना था। उदाहरण के लिए, उन्होंने बताया कि सरकार किसानों को भूमि सर्वेंक्षण, कीटनाशकों के छिड़काव और भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण के लिए ड्रोन का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करेगी। उन्होंने कहा कि शिक्षा और कौशल विकास के क्षेत्र में ऑनलाइन प्रशिक्षण के माध्यम से स्किलिंग, री-स्किलिंग और अप स्किलिंग के लिए देश स्टैक इकोसिस्टम की घोषणा की जाएगी। यह संभवत: ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित होगा। जैसे कॉरपोरेट स्टैश इकोसिस्टम जहां ब्लॉकचेन की केंद्रीय अपरिवर्तनीय लेजर अवधारणा का उपयोग कौशल अधिग्रहण की प्रक्रिया को पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए किया जाएगा।
दूसरी ओर विश्व आर्थिक मंच, नीति आयोग और कई बड़ी कंपनियों के साथ मिलकर भारत सरकार को उसके चौथे औद्योगिक क्रांति संबंधी कार्यों में सहायता करने का प्रयास कर रहा है। मुंबई में स्थित डब्ल्यूईएफ का सेंटर फॉर द फोर्थ इंडस्ट्रियल रेवोल्यूशन मुख्य रूप से स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि और शहरी बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों में काम कर रहा है। और इसने केंद्र और कई राज्य सरकारों के साथ गठजोड़ किया है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में हाल ही में फर्स्ट इंडस्ट्रियल रेवलूशन फॉर सस्टैनबल ट्रैन्स्फर्मैशन (फर्स्ट ) कैंसर केयर की शुरुआत की गई है। इसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों का उपयोग कैंसर रोगियों को बेहतर स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए किया जाएगा।
30 विशेषज्ञों की टीम द्वारा प्रकाशित श्वेत पत्र द्वारा प्रस्तावित यह ऑन्कोलॉजी डेटा मॉडल, रोकथाम और निदान से लेकर उपचारात्मक देखभाल और कैंसर देखभाल के हर पहलू को बदलने के लिए किसी रोगी की पूरी यात्रा के डेटा को कैप्चर करेगा। यही नहीं, स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में एआई की मदद से रोगों का तेज एवं सटीक निदान संभव है। स्मार्ट हेल्थ बैंड जैसे वियरेबल्स स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकते हैं, वहीं आईओटी (इंटरनेट ऑफ थिंग्स ) उपकरण रिमोट मैनेजमेंट के माध्यम से मदद कर सकते हैं। एआई की मदद से स्वास्थ्यकर्मियों की प्रभावशीलता को बढ़ाया जा सकता है। यही नहीं, व्यक्तियों के डिजिटल जुड़वां प्रतिरूप बनाने के क्षेत्र में भी काफी काम किया जा रहा है।
भारत सरकार द्वारा डिजिटल ट्विन्स अवधारणा का उपयोग स्मार्ट सिटी मिशन के तहत शहरों के लिए भी किया जा रहा है। 19 फरवरी, 2022 को केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने 100 स्मार्ट शहरों के लिए जेनेसिस इंटरनेशनल द्वारा अखिल भारतीय 3 डी मानचित्र कार्यक्रम शुरू किया। यह पूरे शहर को विस्तार से मैप करेगा ताकि चौथी औद्योगिक क्रांति की प्रौद्योगिकियों पर आधारित परियोजनाओं को लागू करना आसान हो सके। चालक रहित स्मार्ट कार, स्मार्ट सार्वजनिक परिवहन प्रणाली और स्मार्ट सार्वजनिक बुनियादी ढांचा इनमें शामिल है। दरअसल यह चौथी औद्योगिक क्रांति में परिकल्पित पूरी तरह से जुड़े जीवन की दिशा में पहला कदम है।
डब्ल्यूईएफ और सरकार कृषि क्षेत्र में भी काम कर रहे हैं। जहां पहले से ही लगभग 40 स्टार्टअप हैं। ये खेती को स्मार्ट और कुशल बनाने के लिए नवीनतम कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। उदाहरण के लिए सटीक कृषि के माध्यम से सटीक कृषि क्षेत्रों को सभी इनपुट बिना किसी अपव्यय के सटीक मात्रा में दिए जाते हैं। सेंसर, रिमोट सेंसिंग, डीप लर्निंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और आईओटी का उपयोग करके मिट्टी, पौधे और पर्यावरण की निगरानी के साथ-साथ कृषि उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है। सरकार की तरफ से भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भी इस पर काम कर रही है।
सामाजिक व आर्थिक चिंताएं
हालांकि ये चौथी औद्योगिक क्रांति की प्रौद्योगिकियां बहुत सारी मानवीय जरूरतों को पूरा कर सकने में सक्षम हैं। फिर भी इन प्रौद्योगिकियों के साथ कई समस्याएं हैं। उनकी सुरक्षा, नैतिकता और उनके अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक सामाजिक, आर्थिक प्रभावों का अभी तक अध्ययन नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए जनवरी 2022 में संयुक्त राज्य अमेरिका में घरेलू उड़ानों एवं अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के कार्यक्रम में बड़े पैमाने पर व्यवधान उत्पन्न हुआ था। यह 5जी वायरलेस तकनीक के C बैंड और नेविगेशन के लिए उपयोग किए जाने वाले वायुयान के ऐल्टिमीटर ( इसका प्रयोग खासकर हवाई अड्डों पर लैंडिंग के दौरान किया जाता है ) के बीच हस्तक्षेप की आशंका के कारण हुआ। एक साथ कई एयरलाइनों ने अंतिम समय में सरकार को अपनी चिंताओं से अवगत कराया। इसके फलस्वरूप एक प्रकार की दहशत पैदा हो गई।
5जी तकनीक (और भविष्य में 6जी) उन इंजनों में से एक है जिनके बल पर चौथी औद्योगिक क्रांति आगे बढ़ने वाली है। इस तकनीक ने अमेरिका के दो सबसे बड़े उद्योगों में व्यवधान ला दिया है। 5जी से संबंधित स्वास्थ्य और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को भी पर्याप्त रूप से बताया नहीं गया है। और भारत अभी भी देश में 5जी प्रौद्योगिकी को लागू करने के प्रायोगिक चरण में है। इस प्रकार हमें पहले से ही इन खामियों को दूर करने का मौका मिल रहा है। ताकि अमेरिका में जो हुआ वह यहां दोबारा न हो। खासकर विकासशील और विकसित देशों में ऐसी बहुत सी और प्रौद्योगिकियां हैं, जिनको लेकर इस प्रकार की चिंताएं जाहिर की गई हैं। विकासशील एवं अल्प विकसित देशों में डेटा संचालित प्रौद्योगिकियों को अपनाने ( मुख्य रूप से कृत्रिम बुद्धि) में समस्याएं आ सकती हैं। इन देशों में पूर्व की औद्योगिक क्रांतियों के दौरान बुनियादी ढांचे का समुचित विकास नहीं हो पाया। इसके कारण इन नई तकनीकों के क्रियान्वयन में दिक्कतें आएंगी।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में बर्कमैन क्लेन सेंटर के टुंडे ओकुनोय लिखते हैं, “यदि अफ्रीकी देश आधारभूत प्रौद्योगिकियों जैसे कि कुशल परिवहन प्रणाली, पावर ग्रिड और विश्वसनीय ब्रॉडबैंड कनेक्शन में निवेश नहीं करते हैं तो वे एआई के नेतृत्व में आने वाली चौथी औद्योगिक क्रांति में पीछे रह जाएंगे।” उन्होंने आगे कहा “चौथी औद्योगिक क्रांति की सफलता दूसरी एवं तीसरी क्रांतियों की प्रौद्योगिकियों के साथ इसके सफल समावेश पर निर्भर है।” अफ्रीका में आर्थिक संकेतकों, स्वास्थ्य, पर्यावरण और परिवहन पर डेटा की इस कमी के कारण निजी निगमों द्वारा बायोमेट्रिक निगरानी के लिए इन तकनीकों को अपनाया जा रहा है। सरकारें सत्ता में बने रहने के लिए इन निगरानी तकनीकों का उपयोग कर रही हैं।
दिल्ली स्थित सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के वरिष्ठ शोधकर्ता आयुष राठी कहते हैं, “चौथी औद्योगिक क्रांति के इर्द-गिर्द का सामान्य विमर्श आधुनिक समय के पूंजीवाद के सामने आने वाली सभी समस्याओं का हल विज्ञान के माध्यम से ढूढ़ने के रोमांटिक विचार पर आधारित है।” सामाजिक आर्थिक साधनों के माध्यम से समस्याओं को हल करने के बजाय तकनीक के प्रयोग पर जोर दिया जा रहा है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि उद्योग 4.0 के इस यूटोपियन दृष्टिकोण से प्रतीत होता है कि इस परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली सभी सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं को प्रौद्योगिकी द्वारा हल किया जा सकता है जो कि सत्य नहीं है। राठी का मानना है कि भविष्य पूरी तरह से मनहूस नहीं होने वाला। जैसा कि कुछ अर्थशास्त्रियों और सामाजिक सिद्धांतकारों ने आशंका जताई है।
राठी कहते हैं कि प्रौद्योगिकी कभी भी निर्वात में उत्पन्न नहीं हो सकतीं। इसे सामाजिक वास्तविकताओं के साथ मौजूद होना चाहिए। उदाहरण के लिए जर्मनी ने अपने कर्मचारियों को स्वचािलत प्रौद्योगिकियों के विरुद्ध विशेष रूप से निर्णय लेने के मामले में सुरक्षा प्रदान करने पर काफी काम किया है। निर्माण क्षेत्र में कुल 2,21,500 औद्योगिक रोबोटों के साथ जर्मनी यूरोपीय संघ में सर्वाधिक स्वचालित अर्थव्यवस्था है। लेकिन जर्मन कंपनियों ने श्रमिकों के प्रतिरोध से बचने का एक रास्ता खोज लिया है। श्रमिकों के बदले रोबोट तैनात करने के बजाय उन्होंने सहयोगी रोबोट या कोबोट पेश किए हैं। ये श्रमिकों की जगह नहीं लेते बल्कि उनके काम में उनकी सहायता करते हैं। राठी ने बताया कि भारत में श्रमिकों का स्वचालन के प्रति प्रतिरोध अभी भी कम है। क्योंकि भारत में श्रमिकों के बीच कई अन्य मुद्दे चर्चा का विषय हैं। अधिकांश भारतीय श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में हैं और वे हमेशा औपचारिक क्षेत्र में नौकरियों की तलाश में लगे रहते हैं।
इन चिंताओं के बारे में चर्चा आमतौर पर बड़ी तस्वीर को देखने और समस्या को समग्र रूप से हल करने के बजाय किसी विशेष समस्या को ठीक करने तक ही सीमित रहती है। यह पहले से ही कई सामाजिक आर्थिक मुद्दों को जन्म दे रहा है जिनकी अनदेखी की जा रही है। उदाहरण के लिए बांग्लादेश में कपड़ा कारखानों में स्वचालन से विस्थापित होने वाले श्रमिकों का एक बड़ा हिस्सा महिलाएं हैं। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि कम अनुभवी पुरुषों को अधिक अनुभवी महिलाओं की तुलना में पसंद किया जा रहा था। क्योंकि उन्हें कम वेतन दिया जा सकता था। भारत में प्रौद्योगिकी तक पहुंच भी काफी हद तक लिंग आधारित है और जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था अधिक प्रौद्योगिकी आधारित होगी मौजूदा सामाजिक असमानताएं और गहरी होती जाएंगी।
नवंबर, 2020 में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) की टास्क फोर्स की रिपोर्ट के अनुसार, “बढ़ती उत्पादकता प्रदान करने वाले एक तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र और बहुत सारी नौकरियां पैदा करने वाली अर्थव्यवस्था (कम से कम कोविड -19 संकट तक) के बीच हमने एक ऐसा श्रम बाजार पाया जहां असमानता अपने चरम पर पहुंची हुई है।”
सिंघा ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि भारत में औपचारिक नौकरियां भी अधिक अनौपचारिक होती जा रही हैं। क्योंकि अस्थायी और संविदात्मक नौकरियों की संख्या पूर्णकालिक नौकरियों की तुलना में बढ़ रही है। सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली नौकरियों की संख्या में वृद्धि निजी कंपनियों द्वारा प्रदान की जाने वाली नौकरियों में वृद्धि से कम है। सिंघा कहते हैं कि ऐसी हालत में अगर औपचारिक क्षेत्र की नौकरियों की अनौपचारिकता बढ़ती है तो चौथी औद्योगिक क्रांति की प्रौद्योगिकियों के आगमन का प्रभाव पूरे श्रम बाजार को पूरी तरह से बदलकर रख देगा देगा। इसके परिणामों की भविष्यवाणी करना मुश्किल है।
टेक्नोलॉजी इंसान को उतना ही बना रही है, जितना इंसान टेक्नोलॉजी बना रहा है। यह दोतरफा प्रक्रिया है। सोशल मीडिया के साथ लोगों के व्यवहार में इसे साफ तौर से देखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, भविष्यवादी दिखने वाला फेसबुक का मेटावर्स, जहां मनुष्य खेल सकेंगे, संगीत समारोहों में भाग ले सकेंगे और लोगों से मिल सकेंगे, उन्हें आज वास्तविक दुनिया में की जा रही गतिविधियों से जोड़ने की कोशिश कर रहा है।
हालांकि वास्तविक दुनिया की समस्याएं आभासी दुनिया में भी मौजूद हैं। होराइजन वर्ल्ड्स प्लेटफॉर्म जो मेटावर्स का एक हिस्सा है, में काम कर रही बीटा टेस्टर में से एक ने नवंबर, 2021 में शिकायत की थी कि प्लेटफॉर्म पर उसका यौन उत्पीड़न किया गया था। प्लेटफार्म में एक सुरक्षा सुविधा है लेकिन वह उसका उपयोग नहीं कर पाई थी। कंपनी के अधिकारियों का मानना है कि उन्हें सुरक्षा सुविधा को और सुलभ बनाना होगा। इस तरह की और अधिक सामाजिक-आर्थिक समस्याएं उत्पन्न होने वाली हैं क्योंकि ये प्रौद्योगिकियां आम हो गई हैं और उन्हें स्वयं प्रौद्योगिकी द्वारा नहीं बल्कि नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से हल करने की आवश्यकता है।