भारत में एक दशक से घट रही है नियमित वेतन पाने वालों की कमाई

इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 के मुताबिक कृषि क्षेत्र में 40.8 फीसदी नियमित और 51.9 फीसदी आकस्मिक श्रमिकों को अकुशल श्रमिकों जितना न्यूनतम मेहनताना भी नहीं मिल रहा है
कृषि क्षेत्र में 40.8 फीसदी नियमित श्रमिकों और 51.9 फीसदी आकस्मिक श्रमिकों को नहीं मिल रहा न्यूनतम मेहनताना; फोटो: आईस्टॉक
कृषि क्षेत्र में 40.8 फीसदी नियमित श्रमिकों और 51.9 फीसदी आकस्मिक श्रमिकों को नहीं मिल रहा न्यूनतम मेहनताना; फोटो: आईस्टॉक
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भारत में नियमित श्रमिकों और स्व-रोजगार में लगे लोगों की 'वास्तविक कमाई' में पिछले एक दशक के दौरान गिरावट आई है। यह खुलासा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और मानव विकास संस्थान (आईएचडी) ने अपनी नई 'इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024' में किया है।

गौरतलब है कि यह रिपोर्ट सरकारी आंकड़ों पर आधारित है। इसमें  वास्तविक कमाई का आंकलन महंगाई (मुद्रास्फीति) के आधार पर किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, साल दर साल नियमित कर्मचारियों के औसत मासिक 'वास्तविक कमाई में गिरावट आई है। आंकड़ों के मुताबिक 2012 में उनका औसत मासिक कमाई 12,100 रुपए थी, जो सालाना 1.2 फीसदी की गिरावट के साथ 2019 में घटकर 11,155 रुपए प्रतिमाह रह गई।

इसी तरह 2022 में यह आंकड़ा 0.7 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर 10,925 रुपए मासिक रह गया।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि स्व-रोजगार में लगे लोग जो कार्यबल का एक बड़ा हिस्सा हैं, उनकी कमाई भी घटी है। आंकड़ों के मुताबिक स्व-रोजगार में लगे व्यक्तियों की वास्तविक कमाई में भी सालाना 0.8 फीसदी की गिरावट आई है, जो 2019 में करीब 7,017 रुपए प्रतिमाह से घटकर 2022 में करीब 6,843 रुपए प्रतिमाह रह गई।

हालांकि, इसके विपरीत आकस्मिक श्रमिकों के मामले में एक अलग प्रवृत्ति सामने आई है। पिछले दशक के दौरान उनकी वास्तविक कमाई बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार 2012 में जहां इन श्रमिकों की औसत मासिक वास्तविक आय 3,701 रुपए थी, जो सालाना 2.4 फीसदी की वृद्धि के साथ 2019 में बढ़कर 4,364 रुपए प्रतिमाह हो गई।

इसी तरह 2022 में उनकी वास्तविक आय मासिक 4,712 रुपए दर्ज की गई।

कृषि क्षेत्र में श्रमिकों को नहीं मिल रहा न्यूनतम मेहनताना

रिपोर्ट का कहना है कि, "नियमित कर्मचारियों और स्व-रोजगार में लगे लोगों की घटती कमाई के साथ ही आकस्मिक श्रमिकों की आय में हुई मामूली वृद्धि इस और इशारा करती है कि 2000 से 2022 के बीच पैदा हुई नौकरियों की गुणवत्ता खराब थी। 

रिपोर्ट में इस बात का भी विश्लेषण किया गया है कि क्या भारत में श्रमिकों को उनके कौशल के आधार पर केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन मिल रहा है। इसके मुताबिक श्रमिकों के एक बड़े हिस्से, विशेष रूप से आकस्मिक श्रमिकों को, न्यूनतम वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा।

राष्ट्रीय स्तर पर विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में 40.8 फीसदी नियमित श्रमिकों और 51.9 फीसदी आकस्मिक श्रमिकों को उतना मेहनताना भी नहीं मिल रहा जितना उस क्षेत्र में किसी अकुशल श्रमिकों के लिए हर दिन का कम से कम तय किया गया है। यह आंकड़े 2022 के लिए किए गए पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे पर आधारित हैं।

रिपोर्ट में निर्माण क्षेत्र में लगे श्रमिकों की कमाई पर भी प्रकाश डाला है। इसके मुताबिक इस क्षेत्र से जुड़े 39.3 फीसदी नियमित कर्मचारियों और 69.5 फीसदी आकस्मिक श्रमिकों को क्षेत्र में अकुशल श्रमिकों के लिए रोजाना के हिसाब से निर्धारित औसत न्यूनतम वेतन भी नहीं मिल रहा है।

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