बजट से उम्मीदें: ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मौजूदा संकट से बाहर निकालना होगा

बजट में जलवायु परिवर्तन से खाद्य सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक खतरे को पहचानने की जरूरत है, भले ही यह अल्पावधि में कोई चुनावी मुद्दा न हो।
फोटो: विकास चौधरी
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भले ही 1 फरवरी, 2024 को केंद्रीय बजट केवल अंतरिम बजट होगा, लेकिन इस बजट से बहुत सी उम्मीदें हैं। 2019 में भारत सरकार ने अंतरिम बजट में प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना की घोषणा की थी. आज यह कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अंतर्गत सर्वाधिक आवंटन वाली योजना है। हम बजट में कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए पांच या 10 साल का रोड मैप देखना चाहेंगे।

केंद्र ने दिसंबर 2028 तक सार्वजनिक वितरण प्रणाली (अब इसका नाम बदलकर प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना है) के तहत गेहूं और चावल का वितरण जारी रखने का फैसला किया है। इसका मतलब है कि कम से कम 60 मिलियन (6 करोड़) टन की खरीद के लिए मौजूदा खाद्यान्न प्रणाली जारी रहेगी। 

केंद्र और राज्य सरकारों की कई योजनाओं के तहत धन के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की सफलता के बावजूद, भोजन के लिए डीबीटी केंद्र सरकार के एजेंडे में नहीं दिखता है। इसलिए हम उम्मीद कर सकते हैं कि खरीद के लिए पंजाब और हरियाणा का महत्व बना रहेगा। ये दोनों राज्य भारत में खरीदे गए चावल में एक तिहाई से थोड़ा कम योगदान दे रहे हैं।

इन दोनों राज्यों की स्थिरता के मुद्दे सर्वविदित हैं। भूमिगत जल स्तर का कम होना एक आपातकालीन स्थिति है। हरियाणा के जिलों में (2022 में) 143 इकाइयों का मूल्यांकन किया गया, इनमें से 88 में भूजल का अत्यधिक दोहन पाया गया। पंजाब में 153 में से 117 इकाइयों का अत्यधिक दोहन पाया गया। दशकों से, चावल से लेकर कम पानी खपत वाली फसलों के विविधीकरण की आवश्यकता पर चर्चा चल रही है। लेकिन इसे कैसे हासिल किया जाए, इसका कोई रोडमैप नहीं है।

हरियाणा धान से कपास, मक्का, बाजरा, दालें, फल या सब्जियों में विविधता लाने के लिए किसानों को 7,000 रुपये प्रति एकड़ प्रदान कर रहा है। लेकिन पंजाब की वित्तीय स्थिति अनिश्चित है और केंद्र की मदद के बिना विविधीकरण का कोई सार्थक कार्यक्रम शुरू नहीं हो सकता। हमें उम्मीद है कि केंद्रीय बजट में अगले पांच से 10 वर्षों में विविधीकरण हासिल करने के लिए सार्थक पहल की बात की जाएगी। 

हम यह भी चाहेंगे कि बजट में जलवायु परिवर्तन के खतरे और कृषि तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव की बात की जाए। फरवरी 2022 में तेज गर्मी, 2022 व 2023 के मॉनसून के दौरान अनियमित वर्षा और मार्च 2023 में असामयिक बारिश के कारण गेहूं, चावल, गन्ना, दालें और अन्य फसलों का उत्पादन कम हुआ। 

इसके चलते सरकार को गेहूं, चावल और चीनी के निर्यात को प्रतिबंधित करने के लिए मजबूर होना पड़ा। भारतीय कृषि को जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने को तैयार करने के लिए रिसर्च में बड़े निवेश की आवश्यकता है, ताकि बीजों की जलवायु प्रतिरोधी किस्में विकसित की जा सकें। कई देशी किस्में इस दिशा में अहम भूमिका निभा सकती हैं। 

बजट में जलवायु परिवर्तन से खाद्य सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक खतरे को पहचानने की जरूरत है, भले ही यह अल्पावधि में कोई चुनावी मुद्दा न हो।

बजट काफी हद तक केंद्रीय वित्त मंत्री के ग्रामीण अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति के पूर्वानुमान से आकार लेगा। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अर्थशास्त्री इस बात पर बंटे हुए हैं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में मौजूदा विकास पैटर्न अंग्रेजी के अक्षर "के" की है या नहीं। 

यदि वित्त मंत्री समझती हैं कि अर्थव्यवस्था "के" की शक्ल की नहीं है और सभी वर्गों की तरक्की तकरीबन एक जैसी है तो ग्रामीण विकास के प्रमुख कार्यक्रमों का बजटीय आवंटन काफी हद तक पहले जैसे ही रहेंगे, या फिर इसमें केवल मामूली वृद्धि हो सकती है और गरीब परिवारों की आय को बढ़ावा देने के लिए कोई विशेष पहल नहीं होगी। 

हमें उम्मीद है कि आम चुनाव से पहले वित्त मंत्री दो चिंताओं पर भी ध्यान देंगी। सबसे पहले, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और सकल मूल्य वर्धित पर राष्ट्रीय आय मूल्यांकन भी घरेलू उपभोग मांग में धीमी वृद्धि की ओर इशारा करती है, जो जीडीपी वृद्धि का एक प्रमुख चालक है। दूसरा, मूल्य वृद्धि, खासकर खाद्य मुद्रास्फीति की वजह से निम्न और निम्न-मध्यम आय वाले परिवारों को नुकसान पहुंच रहा है।

हमें उम्मीद है कि ये चिंताएं वित्त मंत्री को इन कार्यक्रमों, खासकर रोजगार पैदा करने वाले कार्यक्रमों के लिए आवंटन में पर्याप्त बढ़ोतरी करने के लिए राजी करेंगी।

नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014-15 से ही आवास, ग्रामीण सड़कें, ग्रामीण विद्युतीकरण, ग्रामीण स्वच्छता और जल आपूर्ति जैसे ग्रामीण बुनियादी ढांचे कार्यक्रमों के लिए उल्लेखनीय प्राथमिकता दिखाई है। इन बुनियादी जरूरतों और सुविधाओं के प्रावधान की वजह से ही 2015 और 2021 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में बहुआयामी गरीबी में 32.59 प्रतिशत से 19.28 प्रतिशत तक भारी गिरावट के रूप में समृद्ध लाभांश प्राप्त हुआ है। हमें उम्मीद है कि यह जोर अगले वित्तीय वर्ष में भी जारी रहेगा।

इस संबंध में, हम उम्मीद करेंगे कि वित्त मंत्री प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) के एक नए चरण का अनावरण करें, जिसने भारत में ग्रामीण सड़क कनेक्टिविटी में बड़ा बदलाव लाया है। वर्तमान कार्यक्रम में केवल उन बस्तियों को शामिल किया गया है, जिनकी संख्या मैदानी क्षेत्रों में 500 और आदिवासी/पहाड़ी क्षेत्रों में 250 है, वह भी 2001 की जनगणना के आधार पर है।

इस प्रकार, यह उन सभी ग्रामीण बस्तियों को छोड़ देता है जो पिछले 20 वर्षों में इन मौजूदा सीमाओं तक पहुंच गई हैं। इसके अलावा, मैदानी क्षेत्रों में 250 और जनजातीय/पहाड़ी क्षेत्रों में 100 तक की आबादी वाली बस्तियों को भी अच्छी गुणवत्ता वाली हर मौसम में कनेक्टिविटी प्रदान करने की आवश्यकता है, ताकि सार्वजनिक सेवाएं पहुंच सकें।

ये क्षेत्र, जो आजादी के 75 साल बाद भी बुनियादी जरूरतों और सार्वजनिक सेवाओं के प्रावधान के मामले में काफी हद तक वंचित हैं। पीएमजीएसवाई (पीएमजीएसवाई 2.0) का नया चरण अगले 10 वर्षों में इन छूटी हुई बस्तियों को कवर करने का लक्ष्य रख सकता है।

हम यह भी उम्मीद करते हैं कि वित्त मंत्री राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत बुजुर्ग गरीबों, विधवाओं और विकलांगों के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन को बढ़ाकर कम से कम 1,500 रुपये प्रति माह करें, जिसे केंद्र और राज्यों के बीच समान रूप से साझा किया जाएगा। इस कार्यक्रम के लिए केंद्रीय सहायता बेहद कम है (प्रति माह 200 रुपये) और 15 वर्षों से अधिक समय से इसमें संशोधन नहीं किया गया है।

वित्त मंत्री 'देखभाल अर्थव्यवस्था' की उभरती जरूरतों को पूरा करने के लिए, विशेष रूप से चल रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तन के संदर्भ में, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को फिर से तैयार करने पर भी विचार कर सकते हैं। इससे ग्रामीण इलाकों में 8-10 साल की स्कूली शिक्षा वाले अर्ध-कुशल युवाओं के लिए बड़ी संख्या में रोजगार के नए अवसर खुलेंगे, साथ ही स्वास्थ्य, पोषण और बच्चों की देखभाल के लिए बहुत जरूरी अतिरिक्त मानव संसाधन सहायता भी मिलेगी।

हम कामना करते हैं कि बजट भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मौजूदा संकट की स्थिति से बाहर निकाले।

(हुसैन और महापात्र कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय में केंद्रीय सचिव थे) 

  नोट: व्यक्त किए गए विचार लेखकों के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे डाउन टू अर्थ के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों

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