केंद्रीय मंत्रिमंडल का विस्तार: मंत्रियों से इस्तीफे लेने के पीछे का संदेश

महामारी के दौरान मंत्रियों को निकालकर सरकार एक तरह से अपनी नाकामी को स्वीकार रही है
Photo: @theskindoctor13 / Twitter
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‘ओह, यह पेज नहीं खुल सकता’। केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन की वेबसाइट, ‘मं़ित्रयों’ के सेक्शन पर क्लिक करने पर यही संदेश दिखा रही थी। यह सात जुलाई की शाम छह बजकर 36 मिनट का समय था। इस समय तक मोदी के सात साल के कार्यकाल में मं़ि़त्रयों के सबसे बड़े फेरबदल का कार्यक्रम पूरा नहीं हुआ था और कई मंत्रियों ने तब तक शपथ नहीं ली थी। वेबसाइट इसके बाद अलर्ट कर रही थी - ‘ऐसा लगता है कि इस बारे में और कोई जानकारी जुटाई नहीं जा सकी है।’

शपथ ग्रहण से बिल्कुल पहले ही केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर और उनके राज्य मं़़त्री बाबुल सुप्रियो दोनों अपने पद से इस्तीफा देते हैं या फिर उन्हें मंत्रिमंडल से निकाला गया हो। ऐसा पहली बार हुआ कि पर्यावरण मंत्रियों को इस तरह से हटाया गया हो। कृत्रिम बौद्धिकता से काम करने वाली मंत्रालय की वेबसाइट इसीलिए हकीकत के बजाय यह बता रही थी कि ‘यह पेज नहीं पाया गया।’ 

मंत्रिमंडल में फेरबदल से पहले 12 मंत्रियों ने इस्तीफा दिया जबकि 43 नए मंत्रियों ने शपथ ली। नए मंत्रियों को फिलहाल उनका विभाग भी जारी नहीं किया गया है। हालांकि जिन मंत्रियों की छुटटी की गई है, उसमें एक संदेश है। सीधी सी बात है कि अगर कार्य-कुशलता मंत्रियों के मंत्रिपरिषद में बने रहने की शर्त है तो इन मंत्रियों ने वह साबित नहीं की।

आइए देखते हैं उन मंत्रियों को जिन्होंने इस्तीफे दिए - जिन 13 मंत्रियों से इस्तीफे लिए गए, उनमें से पांच ऐसे हैं, जिनकी महामारी के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका हो जाती है। ऐसी महामारी जिसने लोगों के स्वास्थ्य और जीवनयापन पर गहरा असर डाला हो, उसमें स्वास्थ्य और श्रम व रोजगार मंत्रालय को इस स्थिति को काबू में रखना चाहिए था। इसलिए इस्तीफा देने वालों की सूची में हर्षवर्धन का नाम होना साफतौर से समझ में आता है। उनके डिप्टी रहे अश्विनी चौबे को भी जाना पड़ा। इस तरह केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन के बाद स्वास्थ्य विभाग वह दूसरा मंत्रालय रहा, जिसके कैबिनेट व राज्य मंत्री दोनों को बाहर का रास्ता दिखाया गया।

स्वास्थ्य मंत्रालय की भूमिका ऐसे समय में निस्संदेह बहुत महत्वपूर्ण है, जब देश कोविड-19 के दौर से गुजर रहा है। दूसरी लहर के दौरान संसाधनों का प्रबंधन करने में पूरी तरह नाकाम रहने के कारण केंद्र सरकार लोगों के निशाने पर है। इसके बावजूद कुछ प्रेस-वार्ताओं के छोड़कर स्वास्थ्य मंत्री कहीं नजर नहीं आए। फेरबदल के जरिए प्रधानमंत्री, मत्रियों को जिम्मेदारी बांटने के साथ ही यह संदेश देना चाहते हैं कि जब वह खुद सीधे स्थिति को संभाल रहे हैं तो उनके सहयोगी भी प्रभावी तरीके से अपनी भूमिका निभाएं।

हालांकि सवाल यह है कि पर्यावरण मंत्री को इस्तीफे के लिए क्यों कहा गया ? जावड़ेकर के नेतृत्व में यह मंत्रालय तमाम दूसरे मंत्रालयों के प्रोजेक्टों में रोड़े तो नहीं अटका रहा था। इसकी बजाय पर्यावरण के नियम- निर्देशों को हल्का किया गया था और मंत्रालय की प्रमुख भूमिका यही होकर रह गई थी कि वह इन नियमों को व्यापार के अनुकूल सरल बनाए। बाबुल सुप्रियों, जो एक गायक भी हैं, उन्हें तो कम लोग ही पर्यावरण के राज्य मंत्री के तौर पर जानते होंगे।  

पूरे देश में सिविल सोसाइटी समूह, स्थानीय समुदाय और यहां तक कि चुने हुए प्रतिनिधि भी पर्यावरण के नियम-निर्देशों को हल्का किए जाने के विरोध में जोरदार ढंग से विरोध कर रहे हैं, खासकर स्थानीय समुदाय के हितों की चिंता किए बगैर जमीन और जंगल के अधिग्रहण को आसान बनाने को लेकर विरोध किया जा रहा है। पूरे देश में स्थानीय समुदायों द्वारा ऐसे लगभग 70 विरोध- प्रदर्शन चल रहे हैं, जिनकी मुख्य चिंता जमीन और जंगल का अधिग्रहण है।

एक ऐसी सरकार जो निवेश बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है और जब जावड़ेकर नियमों का आसान बनाकर उसकी नीति पर चल रहे हों, ऐसे में उनसे इस्तीफा लिया जाना कार्य-कुशलता के बजाय किसी दूसरे गहरे विश्लेषण की मांग करता है।

दूसरा बड़ा नाम संतोष गंगवार का है, जो श्रम एवं रोजगार मंत्रालय का जिम्मा संभाल रहे थे। पिछले साल लाॅकडाउन के दौरान जब असंगठित क्षेत्र के मजदूर आजादी के बाद के सबसे बड़े पलायन का हिस्सा बनने को मजबूर हुए थे, उनके विभाग से यह उम्मीद की जा रही थी कि वह लोगों के काम और उनके जीवन को बचाने के लिए कुछ करेगा।

लेकिन उन्होंने कोविड-19 से उबरने में मजदूरों को कोई राहत नहीं दिलाई। इसके बजाय स्थिति से निपटने के लिए वित्त मंत्रालय ने कुछ पैकेजों का एलान जरूर किया। इसके बावजूद प्रवासी मजदूरों के मामले में मोदी सरकार की बहुत फजीहत हुई। 29 जून को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को प्रवासी मजदूरों को फ्री राशन देने का निर्देश देने के साथ ही उसे जमकर फटकारा।

इस तरह से हर्षवर्धन और संतोष गंगवार के मंत्रालय ऐसे रहे, जो महामारी के दौरान पूरी तरह निष्क्रिय साबित हुए और जिन्होंने प्रधानमं़त्री नरेंद्र मोदी को भी कटघरे में खड़ा किया।

ऐसे में, हम कह सकते हैं कि मंत्रिमंडल में फेरबदल कर सरकार ने अपनी नाकामी को स्वीकार किया हैं।

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