बीते सालों में आमजनों से लेकर देश तमाम बुद्धिजीवी वर्ग और यहां तक कि नीति निर्धारकों के बीच लगातार इस बात की बहस होती रही है क्या भारत की जीडीपी को जानबूझ कर बढ़ाचढ़ा कर पेश किया जाता है? इस बार के आर्थिक सर्वे में इस बात पर एक लंबा विश्लेषण किया गया है। चूंकि यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अर्थव्यवस्था में निवेश करने वाले देश की जीडीपी वृद्धि को ध्यान में रखा जाता हैं। अतः यदि इसके परिणाम के विषय में किसी प्रकार की अनिश्चितता हो तो ऐसे निवेश की मात्रा भी प्रभावित हो सकती है। यही कारण है कि वर्ष 2011 में भारत की जीडीपी के मापने की पद्धति में बदलाव किया गया। इसके बाद हाल की मंदी को देखते हुए भारत की जीडीपी वृद्धि दर को लेकर हुई हालिया बहस का महत्व और बढ़ जाता है।
सर्वे में कहा गया है कि एक सतर्क सांख्यिकीय विश्लेषण का उपयोग किया गया है ताकि इस विषय के महत्व को उचित न्याय मिल सके। विश्लेषण कहा गया है कि ऐसा कोई प्रमाण इस विषय में नहीं मिला जिससे यह प्रमाणित होता है कि भारत की जीडीपी वृद्धि का गलत अनुमान किया जाता है। हालांकि विश्लेषण में यह स्वीकार्य किया गया है कि विश्व के देशों में प्रत्यक्षतः और अप्रत्यक्षतः अनेक तरह की परस्परिक भिन्नताएं पाई जाती हैं। ऐसी भिन्नताओं से उत्पन्न होने वाले अनेक चौंकाने वाले कारकों की वजह से विभिन्न देशों की तुलना करने में गलत अनुमान के जोखिम भी होते हैं। विश्लषण में शामिल 95 देशों में से 51 के बारे में भी समान अवधि के दौरान जीडीपी वृद्धि के गलत अनुमान प्रस्तुत किए गए। इन देशों में गलत तरीके से किए गए अनुमानों का परिणाम चार डालर प्रतिशत से लेकर माइनस 4.6 डालर प्रतिशत तक रहा।
भारत के 504 जिलों में औपचारिक क्षेत्रा के अंतर्गत नई फर्मों के सृजन से संबंधित विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। इस संदर्भ में दिए गए दो उदाहरण महत्वपूर्ण हैं। पहला किसी नई फर्म के सृजन में 10 प्रतिशत वृद्धि से जिला स्तर की जीडीपी में 1.8 प्रतिशत वृद्धि होती है। चूंकि औपचारिक क्षेत्रों में नई फर्म सृजन की गति में वर्ष 2014 के बाद विशेष रूप से वृद्धि हुई है। अतः जिला स्तरीय वद्धि पर क्या भारत की जीडीपी वद्धि को बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाया जाता है? चूंकि जीडीपी एक जटिल प्रक्रिया है। यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर बहुत से सामाजिक और आर्थिक कारकों को प्रभावित करते हैं। इसमें कुछ को मापा जा सकता है और अधिकांश को नहीं मापा जा सकता है। ऐसे में छोड़े गए कारकों से अनुमान गलत लग सकता है। इन्हीं छोड़े गए कारकों में अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार व बड़ी संख्या में नौजवान हैं जो बेरोजगार, अशिक्षित और अप्रशिक्षित हैं। इसके अलावा कृषि का भारत के रोजगार में योगदान का अनुपात भी असंगत है।
सर्वे में किए गए विश्लेषण में पाया गया है कि जीडीपी के कारकों को पूरी तरह से समझने के लिए और अधिक कार्य किए जाने की जरूरत है। यही नहीं यह भी कहा गया है कि इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि भारत के जीडीपी का ढांचा और वह समय के साथ कैसे परिवर्तित हुआ है, यह अब तक स्पष्ट नहीं है। इस महत्वपूर्ण घटना का और अध्ययन किए जाने की जरूरत है। इसके अलावा यह भी जानकारी प्राप्त की जानी चाहिए कि भारत की जीडीपी का सटिक पैटर्न क्या है और समय के अनुसार विकसित होने से यह स्पष्ट रूप से दूर क्यों है। इस घटना के संबंध में और अध्ययन किया जाना जरूरी है।
सर्वे में यह सुझाया गया है कि चूंकि जीडीपी भारत की अर्थव्यवस्था के आकार और स्वास्थ्य का एक बैरोमीटर है। अत: यह जरूरी है कि जीडीपी को जहां तक संभव हो वास्तविकता से मापा जाए। यही कारण है कि हाल के दिनों में बुद्धजीवियों, नीति निर्धारकों व नागरिकों के बीच इस बात पर बहुत अधिक बहस हुई है कि भारत की जीडीपी क्या बढ़ाचढ़ा कर पेश की जाती है।