डीबीटी: दुनिया भर में अपनाई जा रही है यह योजना

मार्च के अंत तक 84 देशों ने कोविड-19 के मद्देनजर सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और नौकरियों के कार्यक्रम लागू किए
Photo: Meeta Ahalawat
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प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण यानी डीबीटी सरकारी योजनाओं की धुरी बन गई है। मौजूदा स्वास्थ्य और आर्थिक संकट को देखते हुए भारत ने इस पर काफी जोर दिया है। संकट गहराने पर इसकी असली परीक्षा होगी। डाउन टू अर्थ ने डीटीबी की चुनौतियों की विस्तृत पड़ताल की।  पहली कड़ी में आपने पढ़ा- डीबीटी: गरीब और किसानों के लिए कितनी फायदेमंद । रिपोर्ट की दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, डीबीटी: स्वीकार्यता बढ़ी, लेकिन लाभ कितना बढ़ा? । तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा, डीबीटी: 23 प्रतिशत लोगों के पास नहीं हैं बैंक खाते तो कैसे मिलेगा पैसा । अब पढ़ें, अंतिम कड़ी- 


मनेरगा की मजदूरी में वृद्धि

कोविड-19 पैकेज मनेरगा के तहत दिहाड़ी मजदूरी 182 रुपए से बढ़ाकर 202 रुपए करने की बात करता है। देश में मनरेगा के तहत काम की भारी मांग और व्यापक सूखे को देखते हुए रोजगार सृजन का यह महत्वाकांक्षी कार्यक्रम अपर्याप्त साबित हो रहा है। वर्तमान आर्थिक संकट और मजदूरों के गांव लौटने के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में काम की मांग बढ़ने वाली है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने हाल में ही स्पष्टीकरण दिया है कि सामाजिक दूरी के नियमों का पालन करने के लिए मनरेगा के तहत केवल व्यक्तिगत काम जैसे खेत को समतल करना, खेत तालाब का निर्माण और ऐसे अन्य कामों में दो से तीन लोगों को ही एक बार में लगाया जाएगा। मनरेगा मजदूरी के भुगतान में देरी की वजह से बहुत से मजदूरों का इससे मोहभंग हो गया है। डीबीटी के माध्यम इस समस्या का समाधान जरूरी है।

फंड के निर्बाध प्रवाह और समय से भुगतान सुनिश्चित करने के लिए 2016 में नेशनल इलेक्ट्रोनिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम (एनईएफएमएस) लागू किया गया था। इसके जरिए केंद्र सरकार रियलटाइम में मनरेगा मजदूरों के खातों में सीधे पैसे जमा करती है। एनईएफएमएस 24 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में लागू है। इसी की नतीजा है कि मनरेगा का इलेक्ट्रोनिक भुगतान जो 2014-15 में 77.34 प्रतिशत था, वह 2018-19 में बढ़कर 99 प्रतिशत हो गया है। वर्तमान में लगभग 100 प्रतिशत मनरेगा मजदूरी का भुगतान डीबीटी के जरिए होता है। मई में वित्तमंत्री ने कहा था कि सरकार ने अप्रैल में मनेरगा की बकाया मजदूरी का संपूर्ण भुगतान कर दिया है। यह बकाया राशि 11,000 करोड़ थी। श्रीवास्तव कहते हैं कि मनरेगा के मजदूरों बिना शर्त भत्ते मिलने चाहिए, वर्तमान में काम न होने पर भी।

डीबीटी से लगाव

समस्याओं के बावजूद डीबीटी उपलब्ध तरीकों में सर्वश्रेष्ठ है। अगर सरकार को राशन उपलब्ध कराना हो तो उसे एक पूरी श्रृंखला बनानी पड़ती है, अनाज खरीदना पड़ता है, ट्रक लगाने पड़ते हैं और राशन की दुकानों में भंडारण करना पड़ता है। पैसों को भेजना प्रशासनिक दृष्टि से आसान है। कोविड-19 महामारी से हुई आर्थिक क्षति से उबरने में डीबीटी मददगार होगा या नहीं, यह बहस का विषय हो सकता है। लेकिन दुनियाभर में करोड़ों लोगों को तत्काल राहत देने के लिए डीबीटी योजनाओं को मजबूती प्रदान की जा रही है। यूएनडीपी, एशिया पैसिफिक के मुख्य अर्थशास्त्री बालाज होरवथ कहते हैं, “बिना सामाजिक सुरक्षा अगर एक बड़ी आबादी जीवनयापन का साधन खोती है तो इसका सामाजिक मूल्य असहनीय होगा। इसका नतीजा आर्थिक अस्थिरता के रूप में दिखाई देगा।”

उनका मानना है कि इस वक्त 130 करोड़ असंगठित कामगारों के साथ प्रवासियों पर ध्यान देने की जरूरत है। विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन तमाम देशों की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की निगरानी कर रहे हैं। मार्च के अंत तक 84 देशों ने कोविड-19 के मद्देनजर सामाजिक सुरक्षा योजनाओं और नौकरियों के कार्यक्रम लागू किए हैं। 19 मार्च 2020 के मुकाबले इसमें 87 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्तमान में ऐसे 383 कार्यक्रम चल रहे हैं। इनमें सर्वाधिक 150 कार्यक्रम सामाजिक सहायता के हैं। विश्व में इस समय नगद हस्तांतरण की 97 योजनाएं चल रही हैं। कोविड-19 को देखते हुए इक्वाडोर, पेरू, ईरान और इटली में 50 ऐसे नए कार्यक्रम शुरू किए गए हैं।

असली परीक्षा

आशंका जताई जा रही है कि ताजा संकट आगे चलकर गहराएगा और लाभार्थियों की संख्या में इजाफा होगा। इस वक्त डीबीटी की असली परीक्षा होगी। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के भूतपूर्व प्रमुख वैज्ञानिक और वर्तमान में इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट में रिसर्च फेलो अंजनी कुमार बताते हैं, “पिछले कुछ दिनों में मैंने उत्तर प्रदेश और बिहार के जनधन खाताधारक 40 से 50 लाभार्थियों से बात की है। उन्हें पैसा मिल रहा है।” वह कहते हैं कि घोषित राशि अपर्याप्त है, यह ज्यादा होनी चाहिए। पैसों से अधिक डीबीटी की सफलता मदद को सही जगह और तेजी से पहुंचाने पर टिकी है।

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