कोरोनावायरस के असर से भारत में 35.4 करोड़ गरीब बढ़ेंगे, 27 राज्यों में दोगुनी होगी संख्या

देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गरीबी की दर बढ़कर 46.3 प्रतिशत हो जाएगी, यह 2011-12 के स्तर से दोगुनी से अधिक है
Photo: Nivedita/Pixels
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दुनियाभर के तमाम संगठन कोरोनावायरस से उपजी परिस्थितियों से बड़े पैमाने पर गरीबी बढ़ने का अंदेशा जा रहे हैं। दिल्ली स्थित इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकॉनॉमिक रिलेशंस में सीनियर कंसल्टेंट श्वेता सैनी और भारत कृषक समाज में रिसर्च असिस्टेंट पुलकित खत्री ने हाल ही में यह अनुमान लगाने की कोशिश की है कि भारत और विभिन्न राज्यों में गरीबी की क्या स्थिति होगी। उनका यह अनुमान बहुत डरावना है।  

उन्होंने यह अनुमान लगाने के लिए नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) और पूर्ववर्ती योजना आयोग आंकड़ों का इस्तेमाल किया। एनएसएसओ हर पांच साल में उपभोग पर मासिक खर्च (एमपीसीई) का अनुमान लगाता है। उपयोग पर खर्च का यह आंकड़ा आमदनी को प्रदर्शित करता है। इसके पिछले आंकड़े साल 2011-12 के हैं, क्योंकि एनएसएसओ की ताजा रिपोर्ट अभी जारी नहीं हुई है।

साल 2011-12 में देश की 21.9 प्रतिशत आबादी यानी करीब 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे थे। श्वेता सैनी और पुलकित खत्री ने उपयोग पर मासिक खर्च और योजना आयोग के गरीबी के आंकड़ों के आधार पर कोविड-19 के असर का आकलन किया।

अपने आकलन में उन्होंने कुछ मान्यताओं का अनुसरण किया, जैसे वे मानकर चले कि मार्च से मई के बीच लोगों की आय में 25 प्रतिशत गिरावट आई है। इसे उन्होंने इनकम शॉक सिनेरियो का नाम दिया। आमदनी को पहुंचा यह नुकसान एमपीसीई में 25 प्रतिशत वार्षिक कमी को दिखाता है। वे इस मान्यता पर भी चले कि सभी वर्गों को आय का समान नुकसान हुआ और तीन महीने बाद आय कोरोना काल से पहले जैसी हो जाएगी।

इन मान्यताओं के आधार पर की गई गणना क्या कहती है? पहले उत्तर प्रदेश की स्थिति समझते हैं। साल 2011-12 में उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी की सीमा (प्रति व्यक्ति प्रति माह) 768 रुपए और शहरी क्षेत्रों में यह 941 रुपए थी। इस वक्त राज्य में 29.4 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे थे। जब यहां आय में 25 प्रतिशत कमी की स्थिति लागू की गई और गरीबी रेखा की फिर से गणना की गई तो गरीबी बढ़कर 57.7 प्रतिशत हो गई। इस प्रतिशत को जब 2019-20 अनुमानित जनसंख्या पर लागू किया गया तो पता चला कि उत्तर प्रदेश में 7.1 करोड़ लोग कोविड-19 के झटके से गरीब हो सकते हैं।

इस स्थिति को देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पर लागू करने पर गरीबी की दर बढ़कर 46.3 प्रतिशत हो जाएगी। यह 2011-12 के स्तर से दोगुनी से अधिक है। इसका अर्थ है कि भारत में 35.4 करोड़ गरीब बढ़ जाएंगे और देश में गरीबों की कुल आबादी 62.3 करोड़ हो जाएगी।

श्वेता सैनी के अनुसार, “हमने 35 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में आकलन किया और पाया कि शॉक की स्थिति में 27 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में गरीबी दोगुनी से ज्यादा हो जाएगी। 35.4 करोड़ नए गरीबों में आधे पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में होंगे।  

श्वेता सैनी के मुताबिक, हमारा विश्लेषण कोविड-19 के गरीबी पर पड़ने वाले असर का कम से कम बुनियादी अनुमान बताता है। इसके आधार पर हम कह सकते हैं कोविड-19 के प्रभाव से गरीबी और आय की असमानता बढ़ेगी।

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