डाउन टू अर्थ द्वारा प्रकाशित “स्टेट ऑफ एनवायरमेंट इन फिगर्स 2020” रिपोर्ट 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर जारी होने वाली है। यह रिपोर्ट आंकड़ों के माध्यम से पर्यावरण और हमारे अस्तित्व से जुड़ी समस्याओं और उनकी गंभीरता का एहसास कराएगी। यह रिपोर्ट पर्यावरण से हमारे संबंधों पर भी रोशनी डालेगी। अक्सर कहा जाता है कि समस्या का माप जरूरी है, तभी उसका समाधान किया जा सकता है। यह रिपोर्ट समस्या के इसी माप से परिचय कराएगी और हर आंकड़ा समस्या की गंभीरता बताएगा। इस रिपोर्ट को हम आज से एक सीरीज के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। पहली कड़ी में आपने पढ़ा- कोरोनावायरस का वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर असर । दूसरी कड़ी में पढ़ें, इस वायरस का दुनियाभर में रोजगार, गरीबी और खाद्य सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा -
कोरोनावायरस महामारी ने दुनिया को बेरोजगारी के अभूतपूर्व संकट की ओर धकेल दिया है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) का अनुमान है कि इस महामारी के कारण दुनियाभर में 2.5 करोड़ लोग बेरोजगार हो जाएंगे और कामगारों की 3.4 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान होगा। आईएलओ का कहना है कि यह अनुमान कम से कम है। यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम का अनुमान है कि केवल विकासशील देशों में आय का नुकसान 220 बिलियन डॉलर तक हो सकता है। अनुमान के मुताबिक, 55 प्रतिशत वैश्विक आबादी सामाजिक सुरक्षा से वंचित है। आर्थिक नुकसान इसे और बढ़ा सकता है।
विश्व बैंक और आईएलओ के अनुमान के मुताबिक, 22 अप्रैल 2020 तक विभिन्न देशों द्वारा किए गए लॉकडाउन के कारण 81 प्रतिशत नियोक्ता प्रभावित हुए। 1 अप्रैल तक विभिन्न देशों में रहने वाले कामगारों को कार्यस्थल बंद करने को कह दिया गया था। हालांकि आगे चलकर यह घटकर 68 प्रतिशत हो गया क्योंकि चीन में आर्थिक गतिविधियां शुरू हो गईं। लेकिन दूसरे देशों में हालात बहुत खराब हो गए। अफ्रीका, मध्य एशिया, यूरोप और अमेरिका सहित करीब 64 देशों में काम बुरी तरह प्रभावित हुआ।
आईएलओ का कहना है कि 2020 की पहली तिमाही तक 13 करोड़ नौकरीपेशा का दुनियाभर में काम ठप हो गया। दूसरी तिमाही के दौरान 30.5 करोड़ नौकरीपेशा का दफ्तर बंद हो गया या वे काम नहीं कर पाए। ये नौकरीपेशा वे लोग थे जो हफ्ते में 48 घंटे काम करते थे।
आईएलओ के अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर में हुए लॉकडाउन से असंगठित अर्थव्यवस्था के 1.6 बिलियन कामगार सबसे अधिक प्रभावित हुए। दुनियाभर में 47 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र के कामगारों पर लॉकडाउन की मार पड़ी। निम्न आय वाले देशों में यह मार सर्वाधिक थी। यहां असंगठित क्षेत्र से जुड़े 80 प्रतिशत कामगार प्रभावित हुए।
भारत में बढ़ेंगे 120 लाख गरीब
विश्व बैंक का अनुमान है कि 22 साल में पहली बार कोरोनावायरस महामारी के कारण दुनियाभर में गरीबों की संख्या बढ़ने वाली है। इस तरह की वृद्धि 1998 में तक हुई थी जब एशिया पर वित्तीय संकट मंडराया था। 2019 में दुनियाभर में 8.2 प्रतिशत गरीब थे। अनुमान बताते हैं कि 2020 में ये गरीब बढ़कर 8.6 प्रतिशत हो जाएंगे।
दूसरे शब्दों में कहें तो दुनियाभर में गरीबों की संख्या 63.2 करोड़ से बढ़कर 66.5 करोड़ हो जाएगी। भारत में गरीबों की संख्या सर्वाधिक 120 लाख बढ़ेगी। नाइजीरिया में 50 लाख और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में 20 लाख गरीब बढ़ेंगे। अफ्रीकी देश कोरोनावायरस के प्रभाव बुरी तरह प्रभावित होंगे। इन देशों में 226 लाख लोग गरीब हो जाएंगे। दक्षिण एशिया में 156 लाख लोग गरीबी की दलदल में पहुंच जाएंगे।
खाद्य असुरक्षा बढ़ेगी
विश्व बैंक और खाद्य एवं कृषि संगठन ने चेतावनी दी है कि वायरस का खाद्य सुरक्षा और भुखमरी पर गंभीर असर होगा, खासकर उन विकासशील और अल्पविकसित देशों में जहां खाद्य असुरक्षा पहले से है। विश्व बैंक के अनुसार, महामारी से पहले दुनियाभर में 82 करोड़ लोग अल्प पोषित थे। दुनियाभर में 13.5 करोड़ लोग खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। अगर इन लोगों को मदद नहीं पहुंची तो ये भूख से मर जाएंगे। निम्न आय वाले देशों की आबादी अपनी आमदनी का 60 प्रतिशत हिस्सा भोजन पर खर्च करती है, जबकि उभरती अर्थव्यवस्थाएं अपनी आमदनी का 40 प्रतिशत हिस्सा भोजन की जरूरतों पर व्यय करती हैं।
गतिविधियों के ठप होने से आमदनी रुक गई है। इसका नतीजा यह निकलेगा कि ये लोग अपने भोजन पर पर्याप्त खर्च नहीं कर पाएंगे और उनके सामने भुखमरी की स्थिति आ जाएगी। विश्व बैंक के अनुसार आने वाले महीनों में आमदनी न होने पर 4-6 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे पहुंच जाएंगे। अनुमान के मुताबिक, महामारी से पहले 13.5 करोड़ लोग भुखमरी के शिकार थे। महामारी के बाद ऐसे लोगों की संख्या दोगुनी होकर 26.5 करोड़ हो जाएगी।