रिजवाना तबस्सुम
वाराणसी के शार्दूल विक्रम के पास करीब 35 एकड़ में आम के पेड़ों को लंबी शृंखला है। शीलू बताते हैं, "अबकी बनारसी लंगड़ा को अमेरिका और खाड़ी देशों में भेजने की तैयारी की थी। कृषि वैज्ञानिक पंजाब सिंह के निर्देशन में फोर्ड फाउंडेशन के जरिए एपिडा के माध्यम से बनारसी लंगड़ा और दशहरी आम निर्यात होना था, मगर अफसोस कोरोना ने सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया। शार्दूल कहते हैं कि कोरोनावायरस की वजह से आम को निर्यात करने की जरूरी तैयारियां पूरी तरह ठप हो गई हैं।
बनारस के लोहता के पास है मोहन सिंह का बगीचा है। इस बगीचे में आम के सैकड़ों पेड़ हैं। बनारसी सफेद लंगड़ा, दशहरी और चौसा भी। मोहन पूरे साल अपने बगीचों की देखरेख करते हैं। इन्हीं तीन-चार महीनों का वो बेसब्री से इंतजार करते हैं। इसी दरम्यान पूरे साल की कमाई हो जाया करती थी। लेकिन कोरोना ने इस बार सब चौपट कर दिया। मोहन बताते हैं, "पहले बारिश और ओलावृष्टि ने हमें बर्बाद कर दिया, अब कोरोना ने।"
वाराणसी में पहले 1200 हेक्टेयर में आम के बाग हुआ करते थे। रिंग रोड के निर्माण के चलते करीब दो सौ एकड़ बाग इसकी भेंट चढ़ गए। करीब एक हजार एकड़ में आम के बाग मौजूद हैं।