विदेशों में रह रहे प्रवासियों द्वारा भेजी जाने वाली रकम (रेमिटेंस) पर निर्भर निम्न और मध्यम आय वाले देशों के कम से कम 80 करोड़ परिवारों की जिंदगी नोवेल कोरोनावायरस (कोविड-19) महामारी के कारण बढ़े आर्थिक संकट से खतरे में पड़ गई है। विश्व बैंक ने 22 अप्रैल, 2020 को जारी अपनी रिपोर्ट में यह बात कही है।
विश्व बैंक के अनुसार, दुनिया के अधिकांश मुल्कों के कोरोना की वजह से लॉकडाउन में जाने से वैश्विक तौर पर प्रवासियों द्वारा भेजी जाने वाली रकम (ग्लोबल रेमिटेंस) में लगभग 20 फीसदी की बड़ी कमी आ सकती है।
विश्व बैंक के ‘माइग्रेशन एंड डेवलपमेंट ब्रीफ’ द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल रेमिटेंस का सबसे बड़ा हिस्सा पाने वाला भारत भी इससे प्रभावित होगा। 2018 में भारत को ग्लोबल रेमिटेंस के रूप में 79 अरब डॉलर मिले थे। भारत को जिन देशों से सबसे अधिक रेमिटेंस मिलता है, उनमें अमेरिका दूसरे नंबर पर है। कोविड-19 से अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित है, जिसका असर भारत पर भी पड़ने की संभावना है।
विश्व बैंक के अनुसार, वायरस (सार्स-कोव-2) के फैलाव को रोकने के लिए सोशल डिस्टैंसिंग और लॉकडाउन को सबसे महत्वपूर्ण उपाय माना जाता है, जबकि यही उपाय वैश्विक आर्थिक गिरावट के लिए भी जिम्मेदार हैं।
इसे देखते हुए इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (आईएमएफ) का अनुमान है कि 2020 में वैश्विक अर्थव्यवस्था में 3 फीसदी का सिकुड़न या संकुचन आ सकता है।
किसी भी देश के आर्थिक संकट के दौरान वहां रह रहे प्रवासी कामगार सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। यह बात खासकर निम्न और मध्य आय वाले देशों के मामलों में अधिक लागू होती है। कोरोना के कारण प्रवासी कामगारों के पारिश्रमिक और रोजगार के अवसरों में कमी के कारण हाल के दशकों में रेमिटेंस में यह सबसे बड़ी गिरावट आ सकती है।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फॉरम के आकलन के अनुसार, निम्न और मध्य आय वाले देशों के लगभग 80 करोड़ परिवारों को वैश्विक प्रवासियों द्वारा भेजी जाने वाली कुल रकम 715 अरब डॉलर की 77 फीसदी से अधिक रकम प्राप्त होती है।
प्रवासी कामगारों द्वारा उनके मुल्कों में रह रहे परिवारों को लगभग 551 अरब डॉलर की राशि भेजी जाती है। इनमें दक्षिण एशियाई देशों के प्रवासी अपने परिवारों को 139 अरब डॉलर की राशि भेजते हैं। विश्व बैंक के अनुसार, प्रवासियों द्वारा भेजी जाने वाली कुल रकम 19.7 फीसदी कम होकर 445 अरब डॉलर हो जाएगी। इस तरह गरीब मुल्कों के वे परिवार जो काफी हद तक इसी रकम पर निर्भर हैं, वे बुरी तरह से प्रभावित होंगे।
प्रवासियों द्वारा भेजी जाने वाली रकम से ऐसे कमजोर परिवारों के भोजन से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं और परिवार की बुनियादी जरूरतें पूरी होती हैं। विश्व बैंक के अनुसार, रेमिटेंस से ऐसे परिवारों के खानपान में पोषण की मात्रा बढ़ती है, जिससे गरीबी की मार भी उनपर कम होती है।
कमजोर परिवारों में रेमिटेंस के पैसे शिक्षा पर खर्च होते हैं और इससे बाल श्रम को कम करने में भी मदद मिलती है। रेमिटेंस के जरिए होने वाली आय में कमी से ऐसे परिवारों की खर्च करने की क्षमता कम होगी। वे अपने भोजन और अन्य जरूरी चीजों पर कम खर्च करने के लिए मजबूर होंगे।
माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के अनुसार, 2008-2009 के विश्वव्यापी वित्तीय संकट से भी रेमिटेंस प्रभावित हुआ था। 2008 और 2009 के बीच रेमिटेंस में वैश्विक स्तर पर 5.5 फीसदी की कमी आई थी।
अफ्रीका के प्रवासी कामगार हर साल अपने परिवार को 14 अरब डॉलर भेजते हैं। वर्तमान संकट का असर इसपर भी हो सकता है, क्योंकि कहा जा रहा है कि उप-सहारा अफ्रीकी क्षेत्र पिछले 25 वर्षों की पहली मंदी में प्रवेश कर गया है।
विश्व बैंक के ग्रुप प्रेसिडेंट डेविड मालपास के अनुसार, रेमिटेंस पर निर्भर परिवारों की बेहतरी के लिए जरूरी है कि विकसित देशों की इकोनॉमी में जल्दी से रिकवरी आ जाए। उन्होंने कहा कि विश्व बैंक रेमिटेंस चैनल्स को खुला रखने और सबसे गरीब समुदायों के आर्थिक हितों की रक्षा के लिए जरूरी उपायों पर काम कर रहा है।
मालपास ने कहा कि कोविड-19 द्वारा पैदा वर्तमान आर्थिक संकट के कारण प्रवासियों के लिए अपने पैसे वापस घर भेजना मुश्किल हो गया है।
विश्व बैंक ने कहा है कि वह सदस्य देशों के विभिन्न चैनल्स के माध्यम से रेमिटेंस के फ्लो यानी प्रवाह की निगरानी में मदद कर रहा है। विश्व बैंक रेमिटेंस भेजने की लागत के साथ इसमें कठिनाई न हो, इसमें भी मदद कर रहा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, बैंक जी-20 देशों और विश्व समुदाय के साथ मिलकर रेमिटेंस भेजने की लागत कम करने के साथ ही गरीबों के लिए वित्तीय समायोजन में सुधार के लिए भी कोशिश कर रहा है।