सिविल सोसायटी सर्वे का दावा, राजस्थान में सरकार बदलने के बाद बंद हुईं कल्याणकारी योजनाएं

राजस्थान के 25 संसदीय क्षेत्रों में से 16 क्षेत्रों में 3,968 लोगों पर यह सर्वे किया गया
फाइल फोटो: राजू सजवान
फाइल फोटो: राजू सजवान
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लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान में एक सिविल सोसायटी फोरम द्वारा किए गए हालिया सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछली सरकार द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं में फेरबदल किया गया है, जिसकी वजह से कई तरह के लाभ मिलने अब बंद हो गए हैं।  

फोरम ने हाशिए पर रहने वाले समुदायों की सहायता के उद्देश्य से चल रहे सरकारी कार्यक्रमों की प्रभावकारिता और पहुंच का आकलन करने के लिए एक जांच शुरू की और पाया कि कई कमजोर वर्गों को अब आवश्यक सहायता नहीं मिल पा रही है।

राजस्थान के 25 संसदीय क्षेत्रों में से 16 क्षेत्रों में 3,968 लोगों पर यह सर्वे किया गया। सर्वे में शामिल लोगों ने बताया कि पिछली सरकार द्वारा प्रदान किए गए पांच में से चार लाभ अब नहीं मिल रहे हैं।

नवंबर 2023 में राज्य विधानसभा चुनाव में गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार हार गई और उसकी जगह वर्तमान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार ने ले ली।

राजस्थान में ग्रामीण आबादी के रोजगार के अधिकारों के लिए काम करने वाली एक नागरिक संस्था सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान के राज्य समन्वयक मुकेश गोस्वामी ने दावा किया कि आधे से अधिक उत्तरदाताओं (56 प्रतिशत) ने वर्तमान भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली सरकार को उन्हें पहले प्रदान किए गए लाभों को बंद करने के लिए दोषी ठहराया। 

उन्होंने दावा किया कि बंद की गई योजनाओं में लगभग 95 लाख लाभार्थियों वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन और लगभग 1.25 करोड़ परिवारों को लाभ पहुंचाने वाली चिरंजीवी योजना शामिल है। इसका नाम बदलकर मुख्यमंत्री आयुष्मान आरोग्य योजना कर दिया गया है।

गोस्वामी ने कहा, "हालांकि मौजूदा राजस्थान सरकार ने कहा है कि कल्याणकारी योजनाओं को निलंबित करने का कोई निर्देश नहीं दिया गया है।"

उत्तरदाताओं ने आरोप लगाया कि 1.1 करोड़ परिवारों के लिए शुरू की गई अन्नपूर्णा खाद्य पैकेट योजना और रोजगार योजनाओं को निलंबित कर दिया गया है।

बांसवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में सबसे लोगों ने योजनाओं का लाभ न मिलने का मुद्दा उठाया। यहां लगभग 90 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने दावा किया कि उन्हें योजनाओं तक पहुंच से वंचित कर दिया गया है। भरतपुर और टोंक निर्वाचन क्षेत्रों में भी यह मुद्दा गंभीर था, जहां 86 प्रतिशत लोगों ने लाभ रुकने का दावा किया था।

अलवर जैसे निर्वाचन क्षेत्रों पर अपेक्षाकृत कम प्रभाव पड़ा, जहां 75 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने दावा किया कि उन्हें लाभ मिलना बंद हो गया है।

गोस्वामी के अनुसार नागरिक समाज ने सर्वेक्षण में भाग लेने के लिए सहमत उत्तरदाताओं से केवल तीन प्रश्न पूछने के लिए स्वचालित टेलीफोन प्रणाली तकनीक का उपयोग किया, जिसे इंटरैक्टिव वॉयस प्रतिक्रिया के रूप में जाना जाता है।

उन्होंने कहा, "सर्वेक्षण में योजना के लाभ बाधित होने की समस्या की सीमा को मापने की कोशिश की गई, यह पूछा गया कि प्रभावित उत्तरदाताओं ने किसे जिम्मेदार ठहराया, और अंत में आगामी लोकसभा चुनाव में उनकी मतदान प्राथमिकता की जानकारी मांगी।"

उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण के दौरान इन उत्तरदाताओं की पृष्ठभूमि के बारे में कोई जानकारी एकत्र नहीं की गई।

उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण उन लोकसभा क्षेत्रों में किया गया, जहां आम चुनाव के पहले और दूसरे चरण के दौरान मतदान होना है। लगभग 60 प्रतिशत प्रभावित उत्तरदाताओं ने पिछली सरकार का समर्थन करने का इरादा व्यक्त किया।

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