रोजगार उपलब्ध कराने में विफल रही केंद्र सरकार यूं तो स्वरोजगार के क्षेत्र में भी कुछ खास नहीं कर पाई है, लेकिन बावजूद इसके आगामी बजट 2020-21 में एक बार फिर से सरकार न केवल स्वरोजगार योजनाओं को बढ़ावा दे सकती है। इसमें स्टार्ट-अप्स, मुद्रा, प्रधानमंत्री इम्प्लॉयमेंट जनरेशन प्रोग्राम आदि प्रमुख हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शुरू से ही यह कह रहे हैं कि देश के युवाओं को नौकरी ढूंढ़ने की बजाय नौकरी देने वाला बनना चाहिए। इसलिए उन्होंने कई ऐसी स्कीम लॉन्च की, जिससे युवा अपना कारोबार शुरू कर सकें। सरकार की सबसे बड़ी स्कीम स्टार्ट-अप इंडिया रही। 15 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से इस स्कीम की घोषणा की और 16 जनवरी 2016 को इसे लॉन्च कर दिया गया। लेकिन इस स्कीम के तहत जिन सुविधाओं की घोषणाएं की गई, उसकी प्रक्रिया इतनी जटिल थी कि स्टार्टअप लगाने वालों को इसका लाभ नहीं मिला।
स्टार्टअप इंडिया मिशन के संचालन का जिम्मा वाणिज्य मंत्रालय के अधीन काम कर रहे डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड (डीपीआईईटी) को सौंपा गया था। डीपीआईआईटी की वार्षिक रिपोर्ट (2018-19) के मुताबिक 31 मार्च 2019 तक देश भर में 17390 स्टार्टअप्स की पहचान की गई, लेकिन इनमें से केवल 94 इनकम टैक्स में छूट दी गई।
सरकार ने घोषणा की थी कि स्टार्टअप्स को फंड करने के लिए 10 हजार करोड़ रुपए का कॉरपस फंड बनाया जाएगा। 31 मार्च 2019 तक 2265.70 करोड़ रुपए सिडबी (स्मॉल इंडस्ट्रीज बैंक ऑफ इंडिया) को जारी भी कर दिए गए, लेकिन इसमें से 347 करोड़ रुपए का निवेश करने वाले 196 स्टार्टअप्स को ही फंड जारी किया गया। हालांकि वार्षिक रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि फंड कितना जारी किया गया, बल्कि यह बताया गया है कि इन 196 स्टार्टअप्स में 347 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है।
अब तक स्टार्टअप इंडिया मिशन को सफलता न मिलती देख एक बार फिर से सरकार ने इस ओर ध्यान दिया है और 21 जनवरी 2019 को वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अध्यक्षता में स्टार्टअप एडवाइजरी कौंसिल का गठन किया है। वहीं, यह भी माना जा रहा है कि आम बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण स्टार्टअप्स के लिए कोई खास घोषणा कर सकती हैं।
स्वरोजगार के लिए एक और महत्वपूर्ण योजना प्रधानमंत्री इम्प्लॉयमेंट जनरेशन प्रोग्राम (पीएमईजीपी) पर भी बजट में फोकस होने की उम्मीद जताई जा रही है। बल्कि माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बजट चर्चा के दौरान वित्त मंत्रालय को बताया गया है कि इस स्कीम को बैंक पूरी तरह सपोर्ट नहीं कर रहे हैं, यदि बैंकों पर दबाव बनाया जाए तो स्वरोजगार की दृष्टि से यह स्कीम काफी महत्वपूर्ण हो सकती है।
पिछले बजट में भी सरकार ने पीएमईजीपी पर काफी फोकस किया था और कहा गया था कि 2019-20 में इस स्कीम के तहत 73241 यूनिट्स लगाई जाएंगी, जो 5.80 लाख लोगों को रोजगार देगी, लेकिन मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 20 जनवरी 2020 तक सरकार के पास 3,67,842 आवेदन आए, इसमें से 2,48,565 आवेदन को मंजूरी देकर बैंकों के पास भेजा गया, लेकिन बैंकों ने केवल 42,411 आवेदन को ही लोन सेंक्शन किया, इनमें से भी केवल 34210 को मार्जिन मनी जारी की गई।
अधिकारी ने बताया कि बैंक बड़े कारोबारियों के पास जाकर लोन देते हैं, लेकिन जब कोई बेरोजगार छोटा कारोबार शुरू करने के लिए लोन लेने आता है, तो उसे इनकार कर दिया जाता है, वह भी तब कि उसे जिला प्रशासन द्वारा गठित कमेटी ने मंजूरी भी दे दी है। इस स्कीम की खास बात यह है कि लोन के साथ-साथ सब्सिडी दी जाती है। इसलिए कम पढ़े लिखे बेरोजगारों की पहली पसंद यह स्कीम रहती है।
सरकार के समक्ष प्रधानमंत्री मुद्रा स्कीम की समीक्षा का भी समय है। दावा किया जा रहा है कि इस स्कीम के तहत 18 करोड़ से अधिक लोन बांटे गए हैं, लेकिन यह स्कीम भी बैंक प्रबंधकों की मनमानी का शिकार है। बैंक प्रबंधक नया कारोबार शुरू करने वाले युवाओं या बेरोजगारों को लोन देने से कतराते हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि केवल 20 फीसदी लोन नया कारोबार शुरू करने वालों को दिया गया। बाकी लोन बैंक प्रबंधकों ने अपने टारगेट हासिल करने के लिए अपने व्यवासायिक ग्राहकों को दे दिया। वहीं, इस स्कीम में एनपीए बढ़ने की रिपोर्ट्स आ रही हैं। संभव है कि बजट में इसका समाधान ढूंढ़ने का प्रयास किया जाए।