बिहार चुनाव परिणाम: तो फिर किन मुद्दों पर लोगों ने दिया वोट

मुद्दों के मामले में बिहार चुनाव परिणाम ने राजनीतिक विश्लेषकों को चौंकाया है, लेकिन जमीन पर इन मुद्दों ने भी काम किया
बिहार चुनाव में महिलाओं ने अच्छी खासी भूमिका निभाई। फोटो: हेमंत कुमार पांडेय
बिहार चुनाव में महिलाओं ने अच्छी खासी भूमिका निभाई। फोटो: हेमंत कुमार पांडेय
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10 नवंबर की देर रात आए बिहार चुनाव-2020 के नतीजों ने तमाम एक्जिट पोल को गलत साबित कर दिया। एक बार राज्य में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सरकार बनने जा रही है। 

चुनाव परिणामों ने उन राजनीतिक विश्लेषकों को भी चौंकाया है, जिनका मानना था कि बिहार चुनाव-2020 में रोजगार एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है और इसके चलते एनडीए की सत्ता में वापसी मुश्किल है। साथ ही, 15 साल की नीतीश सरकार को सत्ता विरोध लहर का भी सामना करना पड़ सकता है।

बीते मार्च में देशव्यापी लॉकडाउन के चलते देश के विभिन्न हिस्सों से बिहार लौटे प्रवासियों के बीच बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा था, इसी आधार पर यह कयास लगाया जा रहा है कि यह चुनाव बेरोजगारी, गरीबी जैसे मुद्दों पर केंद्रित हो जाएगा। यही वजह है कि जहां राष्ट्रीय जनता दल ने 10 लाख लोगों को नौकरी देने का वादा किया, वहीं भाजपा ने 19 लाख रोजगार देने का वादा कर डाला।    

लेकिन चुनाव परिणाम बताते हैं कि इन मुद्दों का असर नहीं दिखाई दिया तो फिर कौन से मुद्दे हावी रहे। दरअसल, बिहार चुनाव-2020 के दौरान लेखक ने सीमांचल और मिथिलांचल की अधिकांश सीटों पर मतदाताओं से बात की थी। इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल थीं। इन दोनों इलाके में दूसरे और तीसरे चरण के तहत मतदान हुए थे और इन्होंने एनडीए की जीत में बड़ी भूमिका निभाई।

मधुबनी जिले की राजनगर विधानसभा सीट की मतदाता सलिता देवी के पति और बेटे दिल्ली-एनसीआर में काम करते थे। लॉकडाउन के कारण इनका काम बंद हो गया और अभी इनके पास कोई काम नहीं है। इसके बावजूद सलिता देवी का कहना था, ‘अगर केंद्र सरकार मुफ्त अनाज नहीं देते तो हमलोग भूखे मर जाते। पिछले सालों में हमको सब योजनाओं का लाभ मिल रहा है, जबकि पहले (राजद कार्यकाल) के दौरान ऐसा नहीं होता था। गैस चूल्हा, बिजली, सड़क, शराबबंदी की वजह से हमारा जीवन आसान हुआ है। उल्लेखनीय है कि इस सीट से भाजपा उम्मीदवार की जीत हुई है।

चुनाव के दौरान रोजगार सहित अन्य मुद्दे भी थे, लेकिन केंद्र सरकार की योजनाएं भी मतदाताओं को लुभा रही थी।

मधुबनी के 21 वर्षीय आजाद कुमार मुखिया लॉकडाउन से पहले बेंगलुरू के एक होटल में खाना बनाने का काम करते थे। लेकिन अभी तक कंपनी की ओर से बुलावा नहीं आया है, जिसके चलते बेरोजगार हैं। आजाद कहते हैं कि लॉकडाउन का फैसला गलत था, लेकिन केंद्र सरकार ने उसके बाद हर संभव मदद की, जिस वजह से हम भूखों मरने से बच गए।

सुपौल के निर्मली में रहने वाले ताराचंद मेहता का कहना था, ‘ये सच है कि लालू यादव के राज में पिछड़ी जातियों की मुंह में बोली आई। ऊंची जातियों का दबदबा कम हुआ। लेकिन हमने तो विकास को नीतीश कुमार के शासन में ही देखा है। अब जनता विकास को देख रही है।’ 

युवाओं के बीच राष्ट्रवाद जैसा मुद्दा भी काम कर रहा था। रानीगंज के रुपेश कुमार पिछले करीब 10 साल से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने बताया, ‘मतदान से पहले कुछ जरूरी मुद्दे हमारे जहन में थे, लेकिन मतदान के दिन लगा कि केंद्र सरकार के साथ मजबूती से खड़ा होना है तो राजग को वोट देना चाहिए।’

पटना स्थित एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के प्रोफेसर डीएम दिवाकर ने कहा, ‘बिहार चुनाव में राष्ट्रवाद व राजद का जंगलराज जैसे मुद्दे हावी हो गए।’  

वहीं, पटना स्थित राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन का मानना है कि यह भी सफलता से कम नहीं है कि बिहार चुनाव में रोजगार जैसे मुद्दे पर बात हुई, इसलिए अब जो भी सरकार बनेगी, उसे रोजगार के मुद्दे पर ध्यान देना होगा। अब केवल बिजली, सड़क और पानी से काम नहीं चलेगा, लोगों को रोजगार भी चाहिए।

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